प्रिय विद्यार्थियों, मैं एक अतिथि विद्वान (प्राध्यापक) हूँ और आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। शासकीय महाविद्यालयीन अतिथि प्राध्यापक के मेरे जैसे हज़ारों अतिथि विद्वान आपसे कुछ कहना चाहते हैं। आप उन्हें मेरी आवाज़ में सुनें। हम प्राध्यापक नहीं, दरअसल अस्थायी शिक्षक (प्राध्यापक) हैं। हम शिक्षक होते हुए भी हर दिन बेहद अमानवीय परिस्थितियों में जीते हैं। हम आपसे अपना दर्द साझा कर रहे हैं। उच्चशिक्षा और प्रदेश सरकार के भीतर की खोखली हालात का एक पहलू बयां कर रहे हैं।
हम मध्यप्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों में 25-30 वर्षों से पढ़ा रहे हैं। हम वे शिक्षक हैं, जिन्हें पता ही नहीं होता कि अगले पीरियड के बाद हम शिक्षक रहेंगे भी या नहीं। हम कई बार एक ही कॉलेज में हर साल आवेदन करते हैं, इंटरव्यू देते हैं, सभी न्यूनतम् मापदंडों के अनुसार राज्य स्तरीय मेरिट बनती है। हमारे कई साथी सेमेस्टर/सत्र ख़त्म होते ही कॉलेजों से निकाल दिए जाते हैं। कई विद्वान/शिक्षकों को एक बार निकाल दिये जाने के बाद दुबारा कहीं मौका ही नहीं मिलता। सत्ता, टीचर-इंचार्ज से लेकर प्रिंसिपल बदलने से भी हमारे ऊपर तलवार चल जाती है।
सत्ता हमारी इसी अनिश्चितता का फायदा उठाती है। डर में चुपचाप रहने वाले हम शिक्षकों/कर्मी का दर्द आज फूटकर आपसे साझा हो रहा है। हमारा दर्द केवल निजी दर्द नहीं है, इसी से पूरी उच्चशिक्षा की बुनियाद प्रभावित होती है। इसीलिए आज हम आपसे कुछ कहने आए है क्योंकि आज हमारी रोज़ी-रोटी/नौकरी ख़त्म की जा रही है। उम्र और कैरियर की सभी संभावनाओं को छोड़कर प्रोफ़ेसर बनने का ख़्वाब देख हमने क्या कोई गुनाह कर दिया ?
म.प्र. सरकार की कार्यकारी परिषद ने १९९० में एड्हॉक शिक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान किया, जिससे पठन-पाठन का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे। प्रावधान यह है कि एड्हॉक शिक्षकों की नियुक्ति तीन माह के लिए होगी और इनकी संख्या कुल स्वीकृत शैक्षणिक पदों के विरुध्द हो सकती है।
पिछले कई सालों से स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया कमोबेश बंद हो गई है। जिससे शासकीय महाविद्यालयों में १९९३ से काम करने वाले अस्थायी महाविद्यालयीन शिक्षकों की संख्या 1500 से बढ़कर आज 2019 में कमोबेश 5200 हो गई है। आज जब प्रदेश में नियमित प्राध्यापकों की नियुक्ति हो रही है, ऐसे में हम महाविद्यालयों में कितने दिनों तक सुरक्षित हैं। एक डरा हुआ बेचैन शिक्षक किसी भी मुल्क के लिए त्रासदी है इसलिए अब हम बोल रहे हैं। क्योंकि अब हम अतिथि विद्वान भी नहीं रहे।
महाविद्यालय में स्वीकृत हज़ारों पदों के लिए कई बार विज्ञापन आ चुके हैं। कभी यूजीसी थर्ड अमेंडमेंट के नाम पर तो कभी विभागवार (13 प्वाइंट) रोस्टर लागू करके स्थाई नियुक्तियों में बाधा पैदा की जाती रही। हम लगातार अपने आज को बचाने में ही लड़ते रहे, हमारा कल तो कभी बन ही नहीं पाया। वहीं हमारा आज भी ख़त्म कर दिया गया। अब हम आज कहीं नहीं हैं।
'गुलाम' होकर भी अपने हक़ के लिए बोल पड़े तो नौकरी से निकाल दिया। जी हाँ ! हम 'गुलाम' बना दिए गए। सरकार और उच्च शिक्षा विभाग तक हमारी 'गुलामी' को बनाए रखकर अपना 'हित' साधते हैं। हमारे हित और हमारे पढ़ाए गए बच्चों के हित की चिंता किसे है। हम नई पीढ़ी को उनके हक़ के लिए सजग करते हैं, लेकिन जब अपने हक़ के लिए बोलते हैं, तो सज़ा पाते हैं। अपने डर से ऊबकर अब हम बोल रहे हैं। आप सुन व समझ रहे हैं, तो आइये, हमारा साथ दीजिए।
हम अतिथि विद्वान(प्राध्यापक) हर दिन अपनी कक्षाओं में मुल्क के भविष्य को रचते हैं, लेकिन आज हमारा ही भविष्य ख़तरे में है। सरकारें एवं उच्च शिक्षा, शिक्षा को बेचने पर आमादा हैं। अगर ऐसा हुआ, तो कल कक्षाओं में नाकाबिल रखे गए 'स्थायी गुलाम' मुल्क के भविष्य को पढ़ाएँगे। 'गुलामी' किसी भी लोकतान्त्रिक मुल्क के लिए ख़तरनाक़ होती है। इसलिए हमारी लड़ाई उच्च शिक्षा के साथ-साथ पूरे मुल्क को बचाने की कोशिशों का एक हिस्सा है।
हमने आपको सालों साल पढ़ाया है। अपना बेहतरीन देकर इन महाविद्यालयों व प्रदेश को बनाया है। क्या आप नहीं मानते कि हमारे साथ बहुत ग़लत हो रहा ? क्या आप नहीं चाहते कि आपके शासकीय महाविद्यालयों की कक्षाओं में एक निडर, निश्चिंत व आत्मविश्वासी स्थायी शिक्षक खुले मन से पढ़ाएँ ? अगर हाँ ! तो आज हमारा साथ दीजिए।
प्रिय विद्यार्थियों, इसीलिए हम आंदोलित होने जा रहे हैं। आशा है इसे पढ़ने के बाद हमारे आंदोलन पर जाने को आप ग़लत नहीं समझेंगे और हमारा साथ देंगे।
हम अतिथि विद्वान(प्राध्यापक) कोई भीख या ख़ैरात नहीं माँग रहे, अपना हक़ माँग रहे हैं ।
देश भर के शिक्षकों/छात्रों जागो, कल तुम्हारी बारी आने वाली है ।
शिक्षा बचाओ, संविधान बचाओ, देश बचाओ ।
बिना समय गँवाये, संगठित हो आवाज बुलंद करो,
लड़ोगे तो जरुर जीतोगे, चुप रहोगे तो हारोगे ।
अपनी बारी आने तक प्रतीक्षा ना करो ।।
आपका
डॉ. अनुराग मिश्र
रीवा, मध्यप्रदेश ; भारत