भोपाल। शिवराज सिंह शासनकाल के समाप्त हो जाने के बाद उम्मीद थी कि पत्रकारिता सिखाने वाला भारत का सबसे प्रतिष्ठित संस्थान " माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय" पुरानी परंपराओं की तरफ लौटेगा लेकिन कमलनाथ शासनकाल में उल्टा हो गया। दिलीप मंडल नाम के व्यक्ति को अस्थाई प्रोफेसर बनाकर नियुक्त किया गया और उसने MCU को JNU बना दिया। सही और गलत की समीक्षा बाद में करेंगे। ताजा खबर यह है कि पत्रकारिता के गुरुकुल में अब सन्नाटा है। कक्षाएं नहीं लग रही। छात्रों में दहशत है।
बता दें कि शुक्रवार को कुछ छात्रों ने अस्थाई शिक्षक दिलीप मंडल के खिलाफ प्रदर्शन किया था। दिलीप मंडल ने जातिवाद को बढ़ावा देने वाला ट्वीट किया था। वह पत्रकारिता में योग्यता के बजाय जातिवाद की पैरवी कर रहे थे। शायद अगला कदम मीडिया संस्थानों में आरक्षण की मांग होता लेकिन उससे पहले प्रदर्शन शुरू हो गया। जिस यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता के छात्रों को लोकतंत्र की रक्षा का पाठ पढ़ाया जाना था उस यूनिवर्सिटी में प्रबंधन ने पुलिस बुलाई। यह प्रबंधन का फैलियर ही है कि पुलिस यूनिवर्सिटी के कैंपस में घुसी। एमपी नगर पुलिस ने 10 छात्रों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया। रात भर ने थाने में रखा गया।
शनिवार सुबह से ही पुलिस ने यूनिवर्सिटी केंपस को अपने कब्जे में ले लिया। हर आने जाने वाले से पूछताछ की जा रही थी। जिस विश्वविद्यालय में सांप्रदायिकता और जातिवाद के खिलाफ पत्रकारिता के पाठ पढ़ाए जाने चाहिए थे वहां शनिवार को जातिवाद के कारण पुलिस तैनात थी। पुलिस को देख इस पचड़े से दूर छात्र यूनिवर्सिटी से भी दूर चले गए। कक्षाएं खाली रही। इक्का-दुक्का छात्र जिनमें अदम्य साहस था या फिर जिनके पेरेंट्स शक्तिशाली थे अंदर गए।
JNU की तरह राजनीति का अड्डा बनाया जा रहा है MCU
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी विख्यात है कि यहां पढ़ने वाले छात्र राजनीति सीख जाते हैं परंतु माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय राजनीति नहीं पत्रकारिता सिखाने वाला संस्थान है। एक साजिश के तहत इसे राजनीति का अड्डा बनाया जा रहा है। छात्र और प्रोफेसर की आपसी लड़ाई कैंपस से बाहर निकल आई है। एक तरफ संस्कृति बचाओ मंच के अध्यक्ष चंद्रशेखर तिवारी में एमसीयू की घटना की निंदा की है। उन्होंने कुलपति से अपील की है कि ऐसे प्रोफेसरों को तत्काल बर्खास्त कर देना चाहिए जो छात्रों के साथ भेदभाव और समाज को बांटने का कार्य कर रहे हैं। तो दूसरी तरफ भीम आर्मी ने ऐलान किया है कि वह पूरे लाव लश्कर के साथ आएंगे और प्रोफेसर दीपक मंडल को बचाने के लिए भोपाल में प्रदर्शन करेंगे।
शांतिपूर्ण धरना दे रहे छात्रों को पुलिस ने पांचवे तल से नीचे तक घसीटा
एमसीयू की एडजंक्ट फैकल्टी दिलीप मंडल और मुकेश कुमार पर जातिगत टिप्पणी करने का आरोप लगाकर छात्र गुरुवार से आंदोलन कर रहे थे। दोनों फैकल्टी को हटाने की मांग को लेकर छात्र शुक्रवार को भी आंदोलित रहे थे। विवि भवन के पांचवें तल पर कुलपति कार्यालय के बाहर धरना दे रहे छात्रों को प्रशासन के कहने पर पुलिस ने शाम 5 बजे सीढ़ियों से घसीटते हुए उन्हें खदेड़ा। छात्र बिलखते रहे लेकिन ना तो कुलपति दीपक तिवारी बाहर आए और न ही रजिस्ट्रार दीपेंद्र सिंह बघेल। 50 मिनट तक सीढ़ियों पर ही संघर्ष चलता रहा। इस दौरान पुलिस छात्रों को पांचवे से तीसरे तल तक ही ला सकी। एक छात्र बेहोश हुआ तो एक की नाक से खून निकला। बेहोश छात्र को जेपी में भर्ती कराया गया है।
कुलपति ने घर जाने के लिए पुलिस बुलाई, दिलीप मंडल और मुकेश कुमार के प्रवेश पर रोक
पुलिस द्वारा छात्रों पर बल प्रयोग करने के बाद शाम 5.54 बजे रजिस्ट्रार चर्चा करने आए। उन्होंने कहा कि जांच के चलते दिलीप मंडल व मुकेश कुमार के विवि प्रवेश पर रोक रहेगी। जांच समिति में 5 छात्रों को रखा जाएगा। छात्र कुलपति द्वारा बयान का खंडन करने की मांग को लेकर अडे रहे। इसके बाद रजिस्ट्रार ने दोनों प्रस्तावों को लागू करने से भी इनकार कर दिया। इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा कि कुलपति दीपक तिवारी ने यूनिवर्सिटी से अपने घर जाने के लिए पुलिस की सुरक्षा मांगी। कुलपति रात 8.45 बजे पुलिस की सुरक्षा में बाहर निकले।
दिलीप मंडल की गलती क्या है
दिलीप मंडल अस्थाई ही सही लेकिन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में शिक्षक हैं। एक शिक्षक और वह भी पत्रकारिता विश्वविद्यालय का, जातिवादी नहीं हो सकता। पत्रकारिता योग्यता के आधार पर चलती थी, चलती है और चलती रहेगी। दिलीप मंडल ने आवाज उठाई कि पत्रकारिता ब्राह्मणवादी है। देश के ज्यादातर बड़े मीडिया संस्थानों में प्रमुख पदों पर ब्राह्मण बैठे हुए हैं। दिलीप मंडल की सोशल मीडिया प्रोफाइल देखने पर पता चलता है वह काफी लंबे समय से जातिवाद की राजनीति कर रहे हैं। माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के नियोक्ताओं को दिलीप मंडल की नियुक्ति से पहले उनका बैकग्राउंड चेक कर लेना चाहिए था। माखनलाल चतुर्वेदी यूनिवर्सिटी और राजनीति की समीक्षा कर सकती है राजनीति का अड्डा नहीं बन सकती। दिलीप मंडल यदि जाति विशेष के हित में काम करना चाहते तो बेहतर होता कि वह जाति विशेष के छात्रों को स्पेशल क्लास में कोचिंग देते, उन्हें योग्य बनाते, इतना योग्य कि देश का कोई भी संस्थान उन्हें आमंत्रित करने उनके घर आता। डिजिटल मीडिया के इस युग में पत्रकारिता के लिए किसी संस्थान के दरवाजे पर माथा टेकने की जरूरत भी नहीं रह गई है। लेकिन उन्होंने राजनीति की। यह गलत है।