भोपाल। मध्य प्रदेश में इस बार बजट का आकार घट सकता है। इसके दो लाख करोड़ रुपए से भी कम रहने के आसार है। देश आर्थिक सुस्ती के नाम पर बजट में कटौती की तैयारी कर ली गई है। आरोप है कि सरकार ने सरकारी खजाने के बजाए निजी हित वाले अभियानों पर फोकस किया इसलिए सरकारी खजाना अब भी खाली है। कुल मिलाकर मप्र के लिए अगला वित्तीयवर्ष कड़की में बीतने वाला है।
यहां याद दिलाना जरूरी है कि विधानसभा चुनाव के समय जब कांग्रेस नेता कमलनाथ से पूछा गया था कि वो इतनी सारी घोषणाएं कर रहे हैं परंतु इसके लिए पैसा कहां से लाएंगे तो कमलनाथ ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा था कि पैसा कहां से लाना है मुझे अच्छी तरह से आता है। सरकार बनने के बाद वही कमलनाथ बजट की कमी के नाम पर कई योजनाएं बंद कर चुके हैं।
राज्य के मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती की अध्यक्षता में बजट को लेकर हुई पहली बैठक में बताया गया कि जो मौजूदा हालात हैं उनमें मुठ्ठी थोड़ा बंद करके चलनी पड़ेगी। जो मौजूदा बजट दिया गया है, उसमें भी कटौती होगी। अधिकारी स्वयं ऐसी योजनाओं को छांट लें, जिनमें कटौती कर सकते हैं। विभागों को इस बार बजट की सीमा भी 10 से 15 प्रतिशत घटाकर दी गई है।
चालू वर्ष का 2.33 लाख करोड़ का है बजट
वर्ष 2019-20 में सरकार ने दो लाख 33 हजार 605 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तुत किया था। इसमें दो लाख 14 हजार 85 करोड़ रुपए शुद्ध व्यय के लिए रखे गए। सरकार को उम्मीद थी कि केंद्र और राज्य के कर और सहायता अनुदान के तौर पर एक लाख 79 हजार 353 करोड़ रुपए हासिल होंगे। राज्य के कर में 23.69 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था, लेकिन आर्थिक सुस्ती ने सारे गणित गड़बड़ा दिए।
वित्त विभाग के सूत्रों का कहना है कि अब इस लक्ष्य को हासिल कर पाना मुश्किल है। केंद्र सरकार से जो कर प्राप्त होना था, उसमें अकेले जीएसटी में ही अभी 3600 करोड़ रुपए राज्य को कम मिले हैं। केंद्रीय करों के हिस्से में से दो हजार 700 करोड़ रुपए पहले ही घटाए जा चुके हैं।
अधिकांश केंद्रीय योजनाओं में 60:40 का अनुपात कर दिया है यानी केंद्र सरकार सिर्फ 60 प्रतिशत राशि देगी। इससे राज्य पर अतिरिक्त भार पड़ा है। फरवरी अंत तक पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी। उधर, राज्य से प्राप्त होने वाले करों में भी 14 प्रतिशत की कमी का आकलन किया गया है। ज्यादातर विभाग तय लक्ष्य से काफी पीछे चल रहे हैं, हालांकि मौजूदा वित्तीय वर्ष के तीन माह बाकी हैं।
वहीं, प्राकृतिक आपदा की मार खजाने पर बड़ी करारी पड़ी है। साढ़े छह हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का केंद्र सरकार से राहत पैकेज मांगा गया था, लेकिन अभी तक सिर्फ एक हजार करोड़ रुपए ही मिले हैं। राज्य को अपने संसाधनों से किसानों को सहायता मुहैया करानी पड़ रही है। सूत्रों का कहना है कि वित्तीय स्थिति को देखते हुए विभागों को 2020-21 के लिए बजट की सीमा 10 से 15 प्रतिशत घटाकर दी गई है। साथ ही कहा है कि प्रस्ताव बजट की सीमा के भीतर ही बनाकर भेजे जाएं।
कर्जमाफी, वेतन-भत्तों व वचन पत्र का रहेगा बोझ
दरअसल, सरकार कर्जमाफी का आखिरी दौर एक अप्रैल से शुरू करने की रणनीति बना रही है। इस चरण में किसानों की संख्या भले ही कम रहेगी पर राशि अधिक लगेगी, क्योंकि दो लाख रुपए तक का कर्ज इसमें माफ करना है। वहीं, कर्मचारियों और पेंशनर्स के वेतन-भत्ते आदि पर 75 हजार करोड़ रुपए से अधिक सालभर में खर्च करने का अनुमान है।
वचन पत्र के वचनों को पूरा करने के लिए भी राशि की जरूरत रहेगी, इसलिए सभी विभागों से कहा गया है कि पुरानी ऐसी योजनाएं, जिनमें हितग्राहियों की संख्या चंद हजार ही है और उनका मकसद अब पूरा हो चुका है, उन्हें बंद किया जाए। दूसरी योजनाओं से मिलती जुलती योजनाओं को भी समाहित कर दिया जाए।