भोपाल। भोपाल स्थित शाहजहानी पार्क में अतिथिविद्वान पिछले 3 सप्ताह से धरने और आंदोलन में बैठे है, किन्तु उनकी सुध लेने वाला कोई नही दिख रहा है। बावजूद इसके अतिथिविद्वानों के हौसले कम नही हुए है। अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजकद्वय डॉ देवराज सिंह एवं डॉ सुरजीत भदौरिया के अनुसार सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वो अपना वचन निभाये। सरकार याद रखे कि उन्हें अभी अगला चुनाव भी लड़ना है।
अगर सरकार की यही रीति-नीति रही तो कौन कांग्रेस पार्टी पर विश्वास करेगा। अगली बार जब राहुल गांधी मध्यप्रदेश आएंगे, उन्हें अतिथिविद्वानों का भी सामना करना होगा। राहुल गांधी को बताया जाएगा कि प्रदेश सरकार राहुल गांधी के वचनपत्र की किस प्रकार धज्जियां उड़ा रही है। यह आंदोलन हमने अंतिम संघर्ष मानकर प्रारम्भ किया है। अब सरकार या तो हमें नौकरी दे या फिर जेल में डाल दे। हम सबके लिए तैयार है। क्योंकि हमने अपनी युवावस्था के स्वर्णिम दो दशक इस प्रदेश की उच्च शिक्षा को संवारने में लगा दिए। चुनाव पूर्व कांग्रेस पार्टी ने नियमितीकरण का वचन हमें दिया जबकि नौकरी तथाकथित चयनितों को बांट दी। अब अधेड़ उम्र पर पहुंच रहे हम लोग कहां जाएं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सारी योग्यताएं होने के बावजूद सरकार हमारी ओर तवज्जो नही दे रही है। क्या इसी दिन के लिए हमने कांग्रेस पार्टी को सूबे की कमान सौंपी थी। कांग्रेस पार्टी का राजनैतिक वनवास दूर करने में हमने भी अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया है। अब हम कहां जाएं।
भीषण ठंड भी पस्त नही कर सकी अतिथिविद्वानों का हौसला
अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ जेपीएस चौहान एवं डॉ आशीष पांडेय के अनुसार भीषण ठंड में भी महिला साथी सपरिवार आंदोलन में शामिल हैं। यहां तक कि छोटे छोटे बच्चे भी हमारे आंदोलन का हिस्सा हैं। अपने भविष्य के प्रति चिंता इतनी बड़ी है कि कोई साथी घरों की ओर लौटना नही चाहता है। बल्कि हर हाल में सरकार से नियामियिकरण का वचन पूरा करने की गुहार लगा रहा है। हमने अपनी मांगों में कोई नई बात नही जोड़ी बल्कि सरकार ने जो वचन हमें दिया था, हमने उसी वचन को पूरा करने का आग्रह किया है। और हमारी इस लड़ाई में पारा प्रदेश हमारे साथ खड़ा है। हमारे आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है।
अतिथिविद्वानों का मुद्दा प्रदेश का सर्वाधिक चर्चित मुद्दा रहा
सूबे के सरकारी कालेजों में पिछले दो दशकों से पढ़ा रहे अतिथिविद्वानो का मुद्दा वर्ष भर छाया रहा, और साल का अंत होते होते यह मुद्दा प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों में शामिल हो गया यहां तक कि प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र इसी मुद्दे की भेंट चढ़ गया एवं सरकार को किरकिरी से बचने के लिए विधानसभा सत्र का एक दिन पूर्व ही समापन कर देना पड़ा है। अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रांतीय प्रवक्ता डॉ मंसूर अली के अनुसार मध्यप्रदेश का अतिथिविद्वान समुदाय अपने आस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।
सरकार से हर तरह से अनुनय विनय के बावजूद हमें केवल निराशा ही हाथ लगी है। उच्च शिक्षा विभाग लगातार ऐसे पत्र जारी करता जा रहा है जिससे अतिथिविद्वान इस असमंजस में है कि सरकार ने नियमितीकरण का वचन दिया था अथवा अतिथिविद्वान बनाये रखने का। कुछ भी हो लेकिन अतिथिविद्वानों के हालिया आंदोलन से पूरे प्रदेश की राजनीति गरमा गई है। जहाँ एक ओर विपक्ष ने शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार को अतिथिविद्वानों के मुद्दे पर घेरा, वहीं विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी, सामाजिक,धार्मिक एवं राजनैतिक संगठनों में अतिथिविद्वानो के पक्ष में आने से प्रदेश में सरकार की वचन पत्र के प्रति प्रतिबद्धता पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा है।
प्रसिद्ध चिंतक एवं लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघु ठाकुर ने तो सरकार को वादाखिलाफी नही करने तक कि नसीहत दे डाली है। कुछ भी हो लेकिन अतिथिविद्वानों के मुद्दे पर कहीं न कहीं सरकार बैकफुट पर जाती प्रतीत हो रही है। विभागीय मंत्री जीतू पटवारी की विधानसभा सत्र के दौरान झल्लाहट इस ओर भी इशारा कर रही है कि वे अतिथिविद्वानों के मुद्दे पर असहज हैं तथा वे इस मुद्दे को सही तरीके से डील नही कर पा रहे हैं।