नई दिल्ली। झारखंड राज्य के हाई कोर्ट ने आदेश (jharkhand High Court order) दिया है कि लोक सेवा आयोग (public Service Commission) द्वारा जारी विज्ञापन के सभी नियम व शर्तें (advertisement terms and condition) दोनों पक्षों के लिए बाध्यकारी (mandatory) होंगे। आयोग प्रबंधन और उम्मीदवार दोनों में से कोई भी नियमों का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं रखता और ना ही नियमों को अपनी तरह से परिभाषित करने की कोशिश की जा सकती है। मामला एक परीक्षा (recruitment exam) में जाति प्रमाण पत्र (caste certificate) का था। उम्मीदवार जिस जाति प्रमाण पत्र का उपयोग कर रहे थे विज्ञापन के नियमों में उसका उल्लेख ही नहीं था अतः सभी उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी में माना गया। फैसला हाईकोर्ट के जस्टिस डॉक्टर एसएन पाठक ने सुनाया।
दरअसल, JPSC और JSSC ने लगभग आधा दर्जन नियुक्तियों के लिए विज्ञापन निकाला था। ऑनलाइन आवेदन में वादियों की जाति प्रमाण के आधार पर आरक्षित कोटि में परीक्षा ली गई और उन्हें सफल घोषित किया गया। प्रमाणपत्र सत्यापन के दौरान पता चला कि वादियों के पास विज्ञापन की शर्तों के अनुसार जाति प्रमाण पत्र नहीं है। इसमें ऐसे भी अभ्यर्थी थे, जिन्होंने ऑनलाइन आवेदन देने के बाद जाति प्रमाण पत्र बनवाया था। वहीं, SDO से नीचे स्तर के अधिकारी से प्रमाण पत्र जारी किया गया था। इसके बाद लोक सेवा आयोग ने इनके जाति प्रमाण पत्र को खारिज करते हुए इन्हें सामान्य श्रेणी में रखा। इसके कारण कई अभ्यर्थी फेल हो गए।
लोक सेवा आयोग के इस फैसले को को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सुनवाई के दौरान वादियों का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुसार आयोग का निर्णय गलत है। वहीं, जेपीएससी की ओर से संजय पिपरवाल, राकेश रंजन और प्रिंस कुमार सिंह ने वादी की दलील का विरोध करते हुए कहा कि विज्ञापन में दी गई शर्तों में बदलाव नहीं किया जा सकता है और सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस मामले में लागू नहीं होता है। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि भर्ती परीक्षा के मामले में विज्ञापन के नियम व शर्तें सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी होती है। याचिका को खारिज कर दिया गया।