नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट के अनुसार अब दलित उत्पीड़न एक्ट (एससी, एसटी एक्ट) के मामलों में अब अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल किया जा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बाबत गुरुवार को फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति बीके नारायण की कोर्ट ने कहा- अग्रिम जमानत के लिए एससी, एसटी की संशोधित धारा 18 बाधा नहीं बनेगी। एससी, एसटी के मामलों में भी अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल करने को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 में बराबर का अधिकार है। कोई भी आरोपी, जिस पर एससी-एसटी एक्ट लगा है, वह अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल करने का अधिकारी है।
एससी/एसटी एक्ट के आरोपी ने अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की थी
न्यायमूर्ति ने निर्णय संजय कुमार बिंद उर्फ संजय और तीन अन्य बनाम यूपी सरकार के मामले की सुनवाई के क्रम में दिया। दरअसल, भदोही जिले के कपूरचंद पासी ने संजय कुमार बिंद उर्फ संजय समेत चार अन्य के खिलाफ 30 अक्तूबर 2019 को मारपीट, गाली-गलौच और एससी, एसटी एक्ट में एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोपी पक्ष संजय कुमार बिंद उर्फ संजय ने मामले में अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल की थी।
सरकारी वकील ने कहा विशेष अधिनियम इसलिए अग्रिम जमानत का अधिकार नहीं
अर्जी पर याची पक्ष की ओर से अधिवक्ता कल्पनाथ बिंद, विवेकानंद ने सुप्रीम कोर्ट के एक अक्तूबर 2019 के आदेश का हवाला दिया। सरकार की ओर से एजीए मंजू ठाकुर ने अग्रिम जमानत अर्जी का विरोध किया। कहा कि विशेष अधिनियम होने की वजह से अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया।
कब बना कानून, क्या है प्रावधान?
अनुसूचित जाति और जनजाति के साथ भेदभाव, अत्याचार को रोकने के लिए 1989 में कानून बनाया गया था। इसमें आरोपी पर सख्त कार्रवाई की बात कही गई थी। लेकिन 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बिना जांच के एफआईआर और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने तर्क दिया था, इसका दुरूपयोग हो रहा है। इसके बाद देशभर में प्रदर्शन हुए। इसके बाद कोर्ट ने एक अक्टूबर 2019 को पुराना फैसला वापस लेते हुए तत्काल एफआईआर व गिरफ्तारी बहाल की।