कर्ज में डूबे व्यक्ति के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण विन्दु यह सुनिश्चित करना है कि कहीं उनके कुलदेवता उनसे रुष्ट तो नहीं हैं। हर हिन्दू कुल में, एक कुलदेवता अवश्य ही होते हैं। अपने कुलदेवता का पता करें और यदि उनकी पूजा, किसी कारण से बन्द हो गई हो तो आगामी श्रावण शुक्ल सप्तमी को उनकी विधिवत पूजा-आराधना अवश्य ही करें। यह पूजा हर वर्ष इसी तिथि को, हर हिन्दू के घर में होती ही है, होनी भी चाहिए।
कुलदेवता के घोस्ट होने से मनुष्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है
कुलदेवता के रुष्ट होने से भाग्य साथ छोड़ देता है और नाना प्रकार की विपत्तियां टूट पड़ती हैं। कर्ज, रोग, मुकदमें, मारपीट, गृहदाह, लड़ाई-झगड़े और न जाने क्या क्या। मतिभ्रम भी हो जाता है। निर्णय गलत होने लगते हैं। तात्पर्य यह कि, हर ओर से असफलता और निराशा ही मिलती है। कुलदेवता को अविलम्ब प्रसन्न करें। उनकी पूजा तो श्रावण माह में ही होगी, किन्तु तत्काल में, उनकी प्रसन्नता प्राप्ति के लिए, किसी विद्वान ब्राह्मण से एक हवन करा लें, जिसमें यह संकल्प भी शामिल हो कि आगामी श्रावण शुक्ल सप्तमी से प्रारम्भ करके, हर वर्ष की इसी तिथि को उनकी विधिवत पूजा आदि करते रहेंगे।
पितृदोष के कारण मनुष्य के जीवन पर क्या असर पड़ता है
दूसरी बात, जो ध्यान देने योग्य है, वह यह है कि कहीं आपके परिवार में पितृदोष तो नहीं है। एक विद्वान ज्योतिषी आपकी कुण्डली देख कर इसके बारे में बता सकते हैं। उसका निवारण भी करें। पितरों को, उनका अंश न मिल पाने के कारण भी, हमें अनेक प्रकार की परेशानियों से जूझना पड़ता है। गया, हरिद्वार, काशी, प्रयाग, पुष्कर या पुरी में जाकर उनका पिण्डदान/ श्राद्ध अवश्य ही करें।
कुलदेवता एवं पितृ संतुष्ट हो तो कर्ज लेने की नौबत ही नहीं आई
ऊपर बताई गई इन दो कमियों को यदि आप दूर कर देते हैं तो विश्वास रखिये, आपके पितर और कुलदेवता इतने शक्तिशाली हैं कि जीवन भर और पीढ़ी दर पीढ़ी आपको किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहेगा। कर्ज भी उतरेगा और जीवन में फिर कभी ऐसी स्थिति आयेगी ही नहीं कि कर्ज लेना पड़े।
कर्ज से मुक्ति का सरल एवं उत्तम उपाय
कर्ज से मुक्ति के लिए कुलदेवता की आराधना करें। कोई भी देवता, आपके पितरों के माध्यम से ही आपको कुछ दे सकता है। आपके और देवता के मध्य में पितर ही हैं। उनकी सेवा और पूजा अर्चना से जब वे प्रसन्न हो जाते हैं तो देवता भी आनन्दित होते हैं। देवताओं के लिये किये जा रहे यज्ञ, हवन आदि भी पितरों के माध्यम से ही देवताओं को मिलते हैं।