नई दिल्ली। भारत में 10 करोड़ लोग यौन हिंसा को पसंद करते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इन 10 करोड़ लोगों में 3 करोड़ बच्चे हैं। यह लोग नियमित रूप से इस तरह के वीडियो देखते हैं जिसमें यौन संबंध के दौरान हिंसा की जाती हो। इन्हीं में से कई वीडियो में दिखाई गई और हिंसा को असल में करने की कोशिश करते हैं। इसके चलते कई विवाह संबंध टूट रहे हैं। इसी के चलते हैं अपहरण बलात्कार और उसके बाद हत्या के मामले सामने आ रहे हैं। हाल ही में देशभर को हिला देने वाला हैदराबाद रेप एंड मर्डर केस इसी से प्रेरित था। पुलिस की केस डायरी में इसका उल्लेख है। यह दलीलें एडवोकेट कमलेश वासवानी ने सुप्रीम कोर्ट में दी। उन्होंने इंटरनेट पर इस तरह की सभी वीडियो हटाने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की है। एक जानकारी के अनुसार फिलहाल इंटरनेट पर इस तरह के 20 लाख से ज्यादा वीडियो उपलब्ध है।
पॉर्न विडियो देखने की लत शराब और ड्रग्स की तरह है
सुप्रीम कोर्ट के तीन साल पहले के आदेश के बावजूद अभी भी इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी से संबंधित कंटेंट मौजूद हैं। कमलेश वासवानी ने कहा कि वेब सिरीज के जरिए भी सेक्सुअल और हिंसा का कंटेंट परोसा जा रहा है। हैदराबाद के रेप और मर्डर केस का भी हलफनामे में उन्होंने जिक्र किया है। वासवानी ने कहा है कि पॉर्न विडियो देखने की लत शराब और ड्रग्स की तरह है।
वेब सिरीज के जरिए पॉर्न से लेकर हिंसा परोसी जा रही है
वासवानी ने कहा कि अभी इंटरनेट पर ऑनलाइन स्ट्रीमिंग के जरिए करोड़ों की कमाई की जा रही है। वेब सिरीज के जरिए पॉर्न से लेकर हिंसा परोसी जा रही है। इसके लिए कोई नियम भी नहीं है। इस तरह के कंटेंट के कारण देह व्यापार आदि को बढ़ावा मिल रहा है। ऐसे में पोर्नोग्राफी और चाइल्ड पोर्नोग्राफी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश पर अमल की जरूरत है।
हर इंटरनेट यूजर के सामने पोर्न कंटेट जरूर आता है
पोर्नोग्राफी पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में आदेश पारित किया था। कमलेश वासवानी ने बताया कि 2013 में इस मामले में उन्होंने दाखिल अर्जी में कहा था कि इंटरनेट-कानून के अभाव में पॉर्न विडियो को बढ़ावा मिल रहा है। मार्केट में 20 लाख पॉर्न विडियो उपलब्ध हैं। बच्चे आसानी से ये कंटेंट देख सकते हैं। इस कारण उनके दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है।