जबलपुर। जबलपुर के पुलिस अधीक्षक कार्यालय के प्रवेश द्वार पर एक युवक द्वारा की जा रही इस तरह की बातें और उसकी हरकत देखकर राह चलते लोग ठहर गए। युवक बार-बार भागने की कोशिश कर रहा था और माता-पिता उसे पकड़ने का प्रयास करते रहे। इस बीच छात्र ने अपनी मोपेड चालू की और माता-पिता को धक्का मारकर भागने की कोशिश की। कई लोगों ने मोपेड को पकड़ा और उसकी चाबी निकाल ली। माता-पिता ने स्वीकार किया कि वीडियो गेम खेलने के चक्कर में उनके बेटे की यह दशा हुई है।
नरसिंहपुर के गाडरवारा निवासी माता-पिता ने कहा कि बड़े अरमान से उन्होंने अपने बेटे को जबलपुर पढ़ने के लिए भेजा था, लेकिन गेम खेलने के चक्कर में उसने अपना मानसिक संतुलन बिगाड़ लिया है। नम आंखों से माता-पिता ने कहा कि मोबाइल पर गेम खेलने के चक्कर में उनका बेटा 5-6 दिनों से सोया नहीं है। सिविल लाइन क्षेत्र स्थित एक महाविद्यालय में बीकॉम प्रथम वर्ष के छात्र की मनोदशा वीडियो गेम ने बिगाड़कर रख दी है। लगातार 5-6 दिनों तक न सोने कारण उसकी हालत विक्षिप्तों जैसी हो गई है। मंगलवार को जूते-चप्पल पहने बगैर छात्र कॉलेज पहुंच गया और वहां भी विक्षिप्तों जैसी हरकत करने लगा। हरकत से परेशान कुछ छात्रों ने उसकी धुनाई कर दी।
घटना के दौरान कॉलेज पहुंचे छात्र के माता-पिता ने सबसे पहले उसका मोबाइल छीना और कुछ लोगों की मदद से पुलिस अधीक्षक कार्यालय परिसर पहुंचे। लेकिन यहां भी वह बवाल करने लगा और दौड़ लगाकर परिसर से बाहर निकल गया। वह बार-बार अपने मोबाइल की मांग कर रहा था। माता-पिता ने बमुश्किल उसे नियंत्रित किया और अस्पताल ले गए। जहां चिकित्सक ने बताया कि कई दिनों तक नींद न आने की वजह से छात्र की मनोदशा बिगड़ी है। अस्पताल में भर्ती कर उसका उपचार किया जा रहा है।
विक्टोरिया अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. रत्नेश कुररिया ने कहा कि ड्रग एडिक्ट मरीज से भी ज्यादा कठिन उपचार मोबाइल/गेम एडिक्ट का रहता है। वीडियो गेम के कारण इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिस पर सरकार को रोक लगानी चाहिए। उन्होंने कहा कि गेम एडिक्ट मरीज का शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और वह हर तरह की मानसिक बीमारी यहां तक कि विक्षिप्तता की चपेट में आ सकता है। उत्तेजना, असामान्य व्यवहार, किसी की न सुनना गेम एडिक्ट मरीज का मुख्य लक्षण होता है। माता-पिता को भी चाहिए कि वे बच्चों को तब तक मोबाइल फोन न दें जब तक उसकी बहुत आवश्यकता न हो।