नई दिल्ली। यूँ तो पिछले कई वर्षों से, बल्कि कई दशकों में एक से ज्यादा वित्त मंत्री कई बार यह कह चुके हैं कि वे देश की अर्थ-नीति में बजट की महत्ता धीरे-धीरे कम हो जाएगी । इस बार कोशिश की गई है राम जाने कितनी सफल होगी। राष्ट्रपति भवन से अधिसूचना जारी हो चुकी है। साल 2020-21 के बजट के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। अब फरवरी के पहले दिन बजट आ जायेगा और ऐसी चर्चा भी है कि अभी यह और आगे आ सकता है। अब देश का वित्त वर्ष भी अप्रैल की बजाय जनवरी में शुरू होने लगेगा। यानी कैलेंडर वर्ष और वित्त वर्ष एक समान हो जायेगा।
देश के वित्त मंत्री बजट के दिन कुबेर की भूमिका निभाते रहें हैं। वैसे इस मामले में सरकार अगर नियम-कानून बनाने का काम सलीके से हो, तो निश्चिंत भाव से कारोबारहोगा, योजना बनेगी और हर साल किसी अनहोनी की आशंका या किसी उपहार के इंतजार में बजट की प्रतीक्षा नहीं करना होगी। यदि सरकारी नीतियां जल्दी-जल्दी बदलती न रहें, तो फिर बजट सिर्फ सरकार की कमाई और खर्च का हिसाब ही तो रह जाएगा। यह चिंता हर बार बजट के साथ नहीं करनी होगी कि इस बार न जाने किस चीज पर टैक्स बढ़ जाए और न जाने हमें मिलने वाली कौन सी राहत गायब हो जाए। एक मोर्चे पर तो यह काम हो गया है। जीएसटी आने के बाद अब बजट का वह हिस्सा समाप्त हो गया है, जिसमें अप्रत्यक्ष कर और ड्यूटी में कटौती-बढ़ोतरी के इमकान हुआ करते थे। इस लिहाज से उद्योग-व्यापार में लगे एक बहुत बड़े तबके के लिए अब बजट कोई त्योहार का दिन नहीं रह गया है, क्योंकि जीएसटी की दरें तय हो गई हैं और उसमें शामिल चीजों को ऊपर-नीचे करने या फिर स्लैब बदलने का भी फैसला करना हो, तो उसके लिए जीएसटी कौंसिल है।
आपको यह मतलब नहीं निकालना चाहिए कि बजट का कोई अर्थ ही नहीं रह गया। मिडिल क्लास और उससे ऊपर के इनकम टैक्स चुकाने वाले लोग तो आज भी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि वित्त मंत्री के पिटारे से उनके लिए कोई खुशखबरी निकलेगी, यानी उन्हें टैक्स में राहत मिलेगी। ऐसी ही उम्मीद उद्योगों और व्यापारियों को भी है। उद्योग संगठनों ने तो वित्त मंत्रालय को बाकायदा अपनी मांगों की सूची भी सौंप दी है। उनकी लिस्ट में भी सबसे ऊपर यही मांग है कि आयकर में छूट दी जाए। मांग यह है कि अब पांच लाख रुपये तक की सालाना कमाई को टैक्स फ्री कर दिया जाए। वे कॉरपोरेट टैक्स में और ज्यादा कटौती, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स में कमी, कंपनियों के लाभांश पर टैक्स खत्म या कम करने, कस्टम ड्यूटी का ढांचा सरल करने, एसईजेड पर टैक्स छूट का वक्त बढ़ाने जैसी मांगों के अलावा इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि सरकार जल्दी से जल्दी ‘डायरेक्ट टैक्स कोड’ लागू करे।
उद्योग संगठनों की मांगों में भी इनकम टैक्स में कटौती की मांग न सिर्फ शामिल है, बल्कि सबसे ऊपर है। इसके साथ यह बात समझनी जरूरी है कि उद्योग और व्यापार संगठनों को आम करदाता की इतनी फिक्र क्यों है। यह मांग क्या इसलिए की जा रही है कि उद्योगपति और व्यापारी ही इनकम टैक्स देते हैं? आम तौर पर यह वर्ग काफी बड़ी रकम चुकाता हैं और उन्हें खुद के लिए भी राहत चाहिए?
सही मायने में जो भी किसी तरह की राहत मांग रहा है, वह इस उम्मीद में ही मांग रहा है कि किसी तरह अर्थव्यवस्था में वापस जान डाली जा सके। टैक्स कटौती की मांग भी उद्योगपति और व्यापारी इसीलिए कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि अगर ढाई से पांच लाख रुपये सालाना कमाने वाले लोग जो अभी पांच फीसदी टैक्स देते हैं, उन्हें यह टैक्स न देना पडे़, तो वे यह पैसा खर्च करेंगे। इससे बाजार में सभी तरह की चीजों की मांग पैदा होगी, बिक्री बढ़ेगी और कारोबार का लड़खड़ाता चक्र चल पडे़गा।
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सरकार के सामने मांगों और सुझावों की जितनी भी लिस्ट पहुंची है, उन सबमें यही उम्मीद की गई है कि सरकार टैक्स में राहत दे और खर्च तेजी से बढ़ाए। खर्च बढ़ाने के अलावा और कोई रास्ता ऐसी हालत में होता भी नहीं है अर्थव्यवस्था में जान फूंकने का। समस्या यह है कि खर्च बढ़ाने के लिए कमाई का बढ़ना भी जरूरी है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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