भोपाल। सूबे के शासकीय महाविद्यालयों में कार्यरत अतिथिविद्वान भोपाल स्थित शाहजहांनी पार्क में सरकार को वचनपत्र अनुसार नियमितीकरण की नीति बनाने की मांग को लेकर पिछले 28 दिनों से आंदोलन और धरने पर है। किंतु लगभग एक माह का समय बीत जाने के बावजूद अब तक सरकार की ओर से कोई सकारात्मक जवाब अतिथि विद्वानों को प्राप्त नही हुआ है।
अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ जेपीएस चौहान एवं डॉ आशीष पांडेय के अनुसार हालिया सम्पन्न कैबिनेट की बैठक में भी अतिथिविद्वानो को लेकर सरकार किसी सार्थक परिणाम तक नही पहुँच सकी है। केवल नए पदों का श्रृजन किया जाना हमारी समस्या का हल नही है बल्कि सरकार को वचनपत्र अनुसार स्पष्टतः नियमितीकरण की नीति बनाकार अतिथिविद्वानों को नियमित किया जाना चाहिए।
कैबिनेट बैठक में सरकार का अतिथिविद्वानों के मसले पर किसी अंतिम परिणाम तक न पहुँच पाना एवं मंत्रीगण में अतिथिविद्वानों के नियमितीकरण को लेकर असमंजस, कहीं न कहीं हमारे मामले पर सरकार का एक राय पर न हो पाना ही स्पष्ट कर रहा है। यह बेहद दुर्भावयपूर्ण स्थिति है की वचन देने के बाद भी सरकार अपनी बात पर खरी नही उतरी है।
अतिथिविद्वानों ने रक्त से लिखी चिट्ठी मुख्यमंत्री को प्रेषित की
अतिथिविद्वानों नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा में प्रांतीय प्रवक्ता डॉ मंसूर अली के अनुसार सरकार की वादाखिलाफी एवं लगभग 2700 अतिथिविद्वानों को सेवा से फालेन आउट करके नौकरी से बाहर कर दिए जाने से पूरा अतिथिविद्वान समुदाय व्यथित है एवं अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। सरकार की इस वादा खिलाफी के विरोध और अपनी पीड़ा बताने के लिए आज अतिथिविद्वानों ने अपने रक्त से नियमितीकरण की प्रार्थना की चिट्ठी लिखकर मुख्यमंत्री कमलनाथ को चिट्ठी प्रेषित की है।
डॉ मंसूर अली ने आगे कहा कि अतिथिविद्वानों ने इस प्रदेश की उच्च शिक्षा को विगत 20 वर्षों से अपने खून पसीने से सींचा है। हमने अपने अथक प्रयासों से कांग्रेस पार्टी को पुनः इस प्रदेश की सत्ता की कमान सौंपी है। अब सरकार को यदि हमारे रक्त की भी आवश्यकता हो तो हम नियमितीकरण और आपने भविष्य के संरक्षण हेतु अपने रक्त की अंतिम बूंद भी सरकार को अर्पण करने के लिए तैयार हैं।
धरना व आंदोलन 30वें दिन की ओर अग्रसर
अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजकद्वय डॉ देवराज सिंह एवं डॉ सुरजीत भदौरिया के अनुसार हमारा आंदोलन 1 माह की अवधि को पूर्ण करने की ओर अग्रसर है, किन्तु यह सरकार की असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है की 1 माह का समय बीत जाने के बाद भी अब तक हमारी मांगों पर कोई चिंतन सरकार द्वारा नही किया गया है। हमारी महिला साथी खुले पंडाल में कड़ाके की ठंड में कष्टप्रद समय बिता रही है। कई बीमार होकर अस्पतालों में भर्ती हो चुकी है। किंतु सरकार पर इसका कोई असर नही पड़ रहा है। हमने संवैधानिक दायरे में अंदर अपनी मांगे सरकार के समक्ष रखी है।