भोपाल। मप्र में कक्षा पांचवीं, आठवीं बोर्ड पैटर्न से 2020 में परीक्षा का निर्णय स्वागत योग्य है लेकिन दौहरी व्यवस्था षड़यंत्र। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार, प्रांतीय सचिव द्वय जगमोहन गुप्ता, यशवंत जोशी व शिक्षक नेता मुरारी लाल सोनी ने संयुक्त प्रेस नोट में बताया कि शिक्षा विभाग ने चालू सत्र में बोर्ड पैटर्न पर परीक्षा पद्धति लागू की है, उसका स्वागत है पर स्कूल शिक्षा विभाग की दौहरी व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा है कि "केवल शासकीय विद्यालयों के लिए बोर्ड पैटर्न लागू कर अशासकीय विद्यालयों को इससे मुक्त रखना षड़यंत्र का हिस्सा नहीं है ?"
शासकीय विद्यालयों में नवीन व्यवस्था से "पेपर राज्य शिक्षा केंद से", "पर्यवेक्षक, परीक्षा केंद्र, केंद्राध्यक्ष अन्य विद्यालयों से", मूल्यांकन अन्य विकासखंड/जिलों में कराने के साथ शिक्षार्थियो के कमजोर प्रदर्शन पर फेल करने का प्रावधान तो है ही साथ ही अस्सी फीसदी से कम परिणाम पर शिक्षकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई प्रस्तावित की है। उक्त प्रतिबंधों से शासन द्वारा मान्यता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों को मुक्त रखते हुए पेपर से लेकर परीक्षा संचालन एवं परिणाम घोषित करने में मनमर्जी के लिए आजाद रखा गया है।
कर्मचारी नेताओं का मानना है कि शासकीय व अशासकीय विद्यालयों में दौहरी परीक्षा व्यवस्था से एक ओर तो अशासकीय संस्थाओं के परीक्षा परिणाम पूर्वानुसार शत-प्रतिशत रहेंगे, वहीं नवीन व्यवस्था में शिक्षार्थियो को बोर्ड पैटर्न पर फेल करने व शिक्षकों पर अस्सी फीसदी से कम परिणाम पर अनुशासनात्मक कार्रवाई से डर का माहौल बनाते हुए शासकीय विद्यालयों को हतोत्साहित व अशासकीय विद्यालयों को प्रोत्साहित करने का षड़यंत्र है। इससे शासकीय विद्यालयों में अध्ययनरत वंचित, आरक्षित व कमजोर वर्गों के बच्चों को निशाना बनाया गया है।
कर्मचारी नेताओं ने मप्र शासन स्कूल शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों से मांग की है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत शासकीय व अशासकीय विद्यालयों पर सभी नियमों व एक समान परीक्षा पैटर्न लागू किया जाना न्यायसंगत होगा । उक्त निर्णय शासकीय विद्यालयों में ताले लटकाने व विद्यार्थियों को पलायन के लिए मजबूर करने का शासकीय षड़यंत्र नहीं है तो दौहरी परीक्षा पद्धति पर तत्काल रोक की दरकार है । दौहरी परीक्षा व्यवस्था से अशासकीय संस्थाओं के संचालक गदगद है, वहीं "कमजोर, वंचित व आरक्षित वर्गों के साथ शासकीय शिक्षकों" में भारी आक्रोश व नाराजगी व्याप्त है जो चिंताजनक है।