भोपाल। मध्य प्रदेश के करीब एक लाख आंगनवाड़ी केंद्रों में कुपोषित बच्चों को अंडा वितरण का मुद्दा देश भर की सुर्खियों में है। कोई कमलनाथ सरकार के फैसले के साथ है तो कोई विरोध में। सबके अपने-अपने तर्क हैं परंतु मजेदार बात यह है कि सरकारी खजाने में अंडा खरीदने के लिए पैसे ही नहीं है। अब जब मध्यप्रदेश में मुर्गी ही कुपोषण का शिकार है तो फिर नेतागण अंडे पर डंडे क्यों चला रहे हैं।
तमाम विरोध के बावजूद कमलनाथ सरकार ने आंगनवाड़ी में अंडा वितरण योजना पर मुहर लगा दी थी परंतु महिला एवं बाल विकास विभाग ने इसके लिए अलग से बजट मान लिया। वित्त विभाग में अंडे के फंडे बड़ी सवाल खड़ा कर दिया। फाइनली महिला बाल विकास से कहा गया कि जितना पैसा दिया गया है उतने में काम चलाओ। कमलनाथ सरकार के मंत्रियों की हालत ऐसी है कि वह बिना ट्रे वाले अंडे की तरह कभी इधर कभी उधर लुढ़क रहे हैं। कभी-कभी कोई कह देता है कि आगामी वित्त वर्ष से अंडा वितरण शुरू हो जाएगा लेकिन बजट के मामले में मध्यप्रदेश के खजाने के क्या हाल हैं यह सब जानते हैं।
एक बार फिर शुरू हो गए अंडे पर डंडे
दरअसल पिछले दिनों मुख्यमंत्री कमलनाथ दिगंबर जैन समाज के परम पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज से मिलने गए थे। विद्यासागर जी ने उन्हें एक सुझाव दिया और उसके पीछे संदेश यह था कि आंगनवाड़ियों में अंडा वितरण नहीं किया जाना चाहिए। सभी जानते हैं कि जैन समाज मांसाहार का विरोध करता है। विद्यासागर जी का सुझाव अपनी जगह उचित था परंतु उसके बाद तो राजनीति शुरू हो गई। विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव ने यह कहकर लोगों को चौंका दिया कि अंडे खाने वाले बच्चे आगे चलकर नरभक्षी हो सकते हैं। इधर अंडे को प्यार करने वाले भी कम नहीं है। राइट टु फूड अभियान ने कमलनाथ सरकार को 17 जिलों के 1,18,000 लोगों के हस्ताक्षरों वाला पत्रक सौंपते हुए भोजन सूची में अंडे शामिल करने की मांग की है। विद्वान भी सक्रिय हो गए हैं अपने अपने आंकड़े लेकर मैदान में आ गए हैं। अपने राम समझ नहीं पा रहे हैं, सरकारी मुर्गी कुपोषण का शिकार है, उसका पेट खाली है। दो लाख करोड़ का कर्जा है। 5 साल में ब्याज नहीं चुका पाएंगे अंडा खरीदने के लिए पैसा कहां से लाएंगे। मुद्दा ही नहीं है भैया।