नई दिल्ली। देश भर में आजकल सबसे ज्यादा जो किताब खोजी जा रही है, उसका नाम ‘रेमिनिसेंस ऑफ़ नेहरू एज’ है। यह किताब पंडित पंडित नेहरू के निजी सचिव एम ओ मथाई ने लिखी है। इसकी खोज एक अन्य खोज की प्रतिक्रिया स्वरूप हुई है। राजनीति इन दिनों गड़े मुर्दे उखाड़ने की प्रतियोगिता हो रही है। जिसकी कोई हद नहीं है, उखाड़े गये मुर्दे की जांत-पांत उसके दोष की चर्चा सार्वजनिक करके हम देश को कहाँ ले जा रहे हैं? इस पर कोई विचार नहीं कर रहा है। इससे समाज जुड़ेगा का या टूटेगा इसकी भी किसी को कोई चिंता नहीं है। समाज को बाँटना इनका उद्देश्य है। इस गंदी प्रवृत्ति और उसे फैला रहे लोगों के मुंह पर केरल के लोगों ने तमाचा मारा है।
यह खबर कहने को बहुत छोटी है पर उसमे छिपा संदेश बहुत बड़ा है। केरल की एक मस्जिद में 19 जनवरी को एक शादी हिन्दू रीति रिवाज से हो रही है। इस शादी का जिम्मा मुस्लिम जमात समिति ने उठाया है, वर वधु दोनों हिन्दू हैं। यह खबर बड़ी होते हुए भी छोटे आकर में छपी। नैतिक औचित्य की सभी मान्य वर्जनाओं को तोड़ने वाली विनायक सावरकर पर गन्दी पुस्तिका और एम ओ मथाई की ‘रेमिनिसेंस ऑफ़ नेहरू एज’ खोज कर उनका गहन अध्ययन कर देश के राजनीतिक दल विकास की कौन सी अवधारणा खोज रहे है? एक सवालिया निशान है।
गिरती अर्थ व्यवस्था, बढती बेरोजगारी, कुपोषित बच्चे, अस्पतालों में मरते नवजात राजनीति की प्राथमिकता के विषय नहीं है। किसी का पसंदीदा विषय 60 साल में कुछ नहीं हुआ तो किसी की प्राथमिकता गोडसे के बहाने समाज के एक हिस्से को गरियाना है। जरा सोचिये इसमें किसका भला है ? अब थोडा मध्यप्रदेश। प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा की राजनीति खेमों में बंटी हुई है। कांग्रेस के अपने खेमे हैं भाजपा के अपने। इन खेमों के एक समानता भी है। जिस दिन प्रदेश में कमलनाथ सरकार की कोई उपलब्धि प्रकाशित होती है दूसरे दिन ही दिल्ली के सिख विरोधी दंगे की बात उछलने लगती है। इसके विपरीत शिवराज सिंह के एक दो दौरों के बाद व्यापम खदबदाने लगता है।
न तो वे केंद्र सिख विरोधी दंगे की बात करता है और न कमलनाथ सरकार व्यापम में किसी को फांसी पर चढाती है। ये सारे खेल नूराकुश्ती की तर्ज पर चलते आये हैं और चलते रहेंगे। कांग्रेस के खेमे में जब सिख दंगों की बात होती है तो उसके काउन्टर में एक बड़े नेता के निजी जीवन को सार्वजनिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। इतनी गंदगी क्यों है? जरा इस पर विचार कीजिए।
पंडित नेहरु या सावरकर के पक्ष विपक्ष में लिखी गई किताबों के परायण करने वालों को 25 अप्रैल 1955 बांडुंग आफ्रो-एशिया सम्मेलन की कार्यवाही भी खोज कर पढना चाहिए। जो पंडित नेहरू से जुडी एक घटना के दूसरे पहलू को उजागर करती है 27 मई 1964 को पंडित नेहरू के निधन पर आये शोक संदेशों में एक यूरोपियन राष्ट्र के राजनयिक की युवा पत्नी ने लिखा था, ‘मेरे सतीत्व की रक्षा नेहरू ने की थी, तब मेरे पति जकार्ता में राजदूतावास में कार्यरत थे। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति अहमद सुकर्णों की नजर मुझपर पड़ी। उन्होंने जकार्ता से बाहर मेरे जाने पर अवैध रोक लगा दी थी। तब मेरी याचना पर भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने जहाज में बैठाकर मुझे आजाद कराया था।” पंडित नेहरू के व्यक्तित्व का यह भी एक पक्ष था। राजनीति में विरोध सीखने के लिए डॉ राममनोहर लोहिया द्वारा नेहरु जी बचाव देखिये, कि “यदि वर्षों से विधुर रहा कोई पुरुष एक नारी मित्र के आगोश में सुकून पाता है, तो नाजायज कैसे है?”
अफ़सोस हमने अपने बड़ों से यह सब नहीं सीखा। तो अब सीखिये, केरल भारत में ही है। केरल की एक मस्जिद में 19 जनवरी को होने वाली हिंदू लड़के-लड़की की शादी इन दिनों सुर्खियों में है। इसका जिम्मा चेरुवल्लि मुस्लिम जमात समिति ने उठाया है। समिति के सचिव नुजुमुद्दीन अलुमुट्टिल ने बताया, "लड़की के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। परिवार ने हमसे मदद का अनुरोध किया था। इसके बाद हम आगे आए।" इस शादी का कार्ड भी वायरल हो रहा है।
22 साल की दुल्हन अंजू की शादी शरत शशि से होगी। एक साल पहले दुल्हन के पिता अशोकन का निधन हो गया था। परिवार इतना सक्षम नहीं था कि वह शादी का खर्च उठा सके। मस्जिद समिति अंजू को 10 तोला सोना और दो लाख रुपए उपहार के रूप में देगी। विवाह हिंदू रीति-रिवाजों से होगा। समिति ने एक हजार लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था भी की है। कुछ इस तरह भी सोचिये, अच्छा लगेगा ।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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