भारतीय परिवारों में एक परंपरा है, भोजन की थाली में हमेशा दो रोटियां ही रखी जाती है। इसके बाद माने जाने पर अतिरिक्त रोटियां दी जाती है। यह परंपरा सदियों से चली आई है। यह परंपरा इतनी स्थापित हो गई है कि घर परिवारों के अलावा यदि आप रास्ता में जाएं तो वहां भी आपको थाली में सबसे पहले दो ही रोटियां मिलेंगी उसके बाद अतिरिक्त रोटियां लाई जाएगी। सवाल यह कि थाली में दो ही रोटियां क्यों रखी जाती है। एक साथ तीन या तीन से ज्यादा रोटियां क्यों नहीं रखी जाती। क्या यह एक कोरी परंपरा है। क्या इसके पीछे कोई अंधविश्वास है या फिर विज्ञान।
भोजन की थाली में तीन रोटी नहीं रखते, यह अंधविश्वास है
सबसे पहले वह बात करते हैं जो सबसे आसान है। किसी से भी सवाल कीजिए वह आसानी से जवाब दिया यह एक अंधविश्वास है। भारत में 3 के अंक को अशुभ माना जाता है इसलिए भोजन की थाली में 3 रोटियां नहीं रखी जाती। ऐसे बहुत सारे अंधविश्वास भारतीय समाज में प्रचलित है। इनका अपना कोई आधार नहीं है। इनके पीछे कोई लॉजिक नहीं है।
भारतीय भोजन की थाली का विज्ञान
दरअसल भारतीय भोजन की थाली का एक मजबूत और तर्कसंगत विज्ञान है। करोड़ों लोगों को यह बात समझाई जा सकती इसलिए इसे श्रद्धा और धर्म से जोड़ दिया गया। लोग शुभ अशुभ को ज्यादा मानते हैं इसलिए भोजन की थाली में दो रोटी को बता दिया गया। यह तो सभी मानते हैं कि भारत में भोजन की थाली मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अनुकूल तैयार की जाती है। भोजन की थाली में वह सब कुछ होता जो स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। भोजन में बहुत सारी आयुर्वेदिक औषधियां होती है। भोजन के लिए अन्न और मसालों का चुनाव से लेकर थाली के परोसे जाने तक हर चीज के पीछे विज्ञान है।
भोजन की थाली में दो रोटी का विज्ञान
किसी भी डॉक्टर या डाइटिशियन से पूछिए वह आपको बताएगा कि भोजन में आपको दो रोटी, एक कटोरी दाल, 50 ग्राम चावल, एक कटोरी मौसमी सब्जी और चटनी होना चाहिए। भारत के सामान्य मनुष्य के लिए यह अनिवार्य है। इससे कम होने पर पौष्टिकता कम हो जाती है। इससे अधिक होने पर भोजन व्यर्थ हो जाता है। संतुलन बिगड़ गया तो वह शारीरिक एवं मानसिक विकास नहीं करेगा। यही कारण है कि भोजन की थाली में दो रोटियां रखी जाती है। इसके बाद भोजन करने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है। यदि वह पहलवान। अत्यधिक शारीरिक श्रम करता है तो उसे अधिक ऊर्जा की जरूरत होगी। ऐसे में रोगियों की संख्या बढ़ा दी जाती है।
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