सिंधिया ने निजी जमीन बेची या सरकारी: हाई कोर्ट में बहस खत्म, फैसला सुरक्षित | GWALIOR NEWS

ग्वालियर। ग्वालियर के राजस्व खातों में सर्वे क्रमांक 1211 एवं 1212 सिंधिया राजघराने की जमीन है या फिर सरकारी इसका फैसला आने वाला है। ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं उनके ट्रस्ट ने इस जमीन को निजी बताकर नारायण बिल्डर को बेच दी थी। अब इस जमीन पर बहुमंजिला इमारत खड़ी है। याचिकाकर्ता का दावा है कि यह जमीन सरकारी है। सिंधिया राजघराने के वकीलों का दावा है कि जमीन राजघराने की है लेकिन इसके मालिकाना हक को लेकर विवाद है। 

शुरुआत में जवाब देने से बचता रहा सिंधिया राजपरिवार

उपेन्द्र चतुर्वेदी ने वर्ष 2014 में एक जनहित याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ललित मौजे के हलके का सर्वे क्रमांक 1211 व 1212 भूमि शासकीय है। इस जमीन का विक्रय नहीं हो सकता है, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया व उनके ट्रस्ट ने जमान को नारायण बिल्डर्स को बेच दिया है। बिल्डर ने जमीन पर बहुमंजिला इमारत खड़ी कर दी है। जमीन की रजिस्ट्री को शून्य घोषित की जाए और मामले की जांच कराई जाए। कोर्ट ने शासकीय भूमि के विक्रय पर ज्योतिरादित्य सिंधिया, माधवी राजे सिंधिया, चित्रांगदा राजे सिंधिया को जवाब पेश करने का आदेश दिया था, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आ रहा था। कोर्ट चेतावनी भी दी, लेकिन अनसुना कर दिया। उनके वकील बार-बार समय ले रहे थे। इसके चलते कोर्ट ने 26 जून 2019 को ज्योतिरादित्य सिंधिया, चित्रांगदा राजे सिंधिया, माधवी राजे सिंधिया पर 10 हजार का हर्जाना लगा दिया है। 

दस्त का दावा: जमीन राजघराने की है, मालिकाना हक को लेकर विवाद है

हर्जाने के बाद प्रतिवादियों ने जवाब पेश किए गए। कमलाराजा चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से तर्क दिया कि एक याचिका के निराकरण में महल की बाउंड्री बाहर की जमीन को सरकारी माना था, लेकिन पुर्न विचार याचिका में कोर्ट आदेश को बदल दिया था। स्वामित्व का विवाद माना गया था। सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वामित्व का विवाद माना था। सिविल सूट के तहत सुलझाने का आदेश दिया। इसका सिविल सूट लंबित है। याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। 

प्र संविदा में यह जमीन दर्ज नहीं, जमीन सरकारी है: याचिकाकर्ता

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आजादी के बाद एक प्रसंविदा तैयार की गई। इस प्रसंविदा में उन संपत्तियों का उल्लेख किया गया, जो राज के पास छोड़ी गई। प्र संविदा में जो संपत्तियां दर्ज नहीं हुई, वह शासकीय मानी गई। सर्वे क्रमांक 1211 व 1212 प्र संविदा की सूची में नहीं है। हाईकोर्ट ने बहस के बाद याचिका पर फैसला सुरक्षित कर लिया।

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