यकीन मानिये जनाब इतने आनंद उत्साह से भर गए थे जब आपने यह कहा था कि आपको संविदा प्रथा पसंद नहीं है उसको समाप्त करना चाहते है मैने भी तय कर लिया था कि जब तक जियूँगा आपको ही चुनुँगा, पर कहते है झूठ के तो पाँव ही नहीं होते मतलब आपके किये वादे महज घोषणा से ज्यादा क्या थे क्यूंकि न्याय में देरी भी अन्याय से कम नहीं होती है।
कब तक आप फण्ड कि कमी और अफसरशाही को एक कारण के रूप में बेचते रहेगे ? हम भी ये समझते है कि ये आसान काम नहीं है लेकीन जो दृढ़ इच्छा शक्ति एवं सकारात्मक छवि आपकी पहचान है (कि आप जरुरतमंदो कि जितनी हो सके मदद करते है ) से थोडा विचलित करने वाली स्थिति निर्मित हो रही है।
आप भी तो 5 वर्ष के कार्यकाल हेतु नियुक्त होते है, शायद आप हमारी परिस्थितियों से थोडा इत्तेफाक रखते हो, लेकिन हमारे पास नहीं है तो धन, सुरक्षित भविष्य और क्षमा चाहूँगा मरने के बाद उपादान कि भी व्यस्था नहीं है क्या इससे भी इस विकृत रुपी युवा भक्षिनी संविदा व्यवस्था कि भयावहता आपको दिखाई नहीं पड़ती। जहां आप लोग सत्ता में होते हुए अपने वेतन भत्तो को कम बढती महंगाई को देखते हुए कम आंकते हुए बिना किसी चर्चा के सदन में बढ़वाते है वही जब बात संविदा को नियमित करने या उचित वेतन प्रदान करने कि बातें कभी आपकी चर्चाओ में (जब तक चुनाव नजदीक न हो) नहीं आती।
बातें कडवी जरुर है लेकिन सत्य है। जहां सरकार कुछ वर्ष देश में गुजारने वाले को नागरिकता देने को तैयार हो जाती है वही वर्षो से प्रदेश के विभिन्न विभागों में सेवारत संविदा कर्मचारियो को आप इन्सान समझकर उनका हक दिलाने को अपना सर्वोपरि कर्त्तव्य क्यों नहीं समझ सकते। ये आप भी भली भातीं समझते है, कि जिस उद्देश्य से संविदा व्यवस्था को लाया गया था प्रदेश में उस रूप में तो वह व्याप्त नहीं है बल्कि इसे उस विकृत स्वरुप में लाया गया है। जिससे केवल नए शोषित वर्ग कि रचना होगी। जैसा कि प्राचीन काल में हुआ था और ऐसे शोषितों को आज भी मुख्य धारा में लाने के लिए योजनाये चलानी पड़ती है अथवा यह समझा जाये कि इस व्यवस्था से शोषितों में किसी उच्च राजनीतिज्ञ को एक वोट बैंक नजर आ गया है, क्यूंकि समाज या सिस्टम परफेक्ट बन गया तो आप किसे सुधरने कि पैरवी करेंगे ? लेकिन मैं चाहता हूं कि आप मुझे गलत साबित करें विश्वास को टूटने मत दीजिये।
आपके प्रदेश का एक संविदा सेवक