भोपाल। साल 2019 गुज़रने को है। देश प्रदेश जश्न में माहौल में डूबा है। सभी नववर्ष की पूर्वसंध्या पर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते दिखाई दे रहे है। 2020 के स्वागत के लिए घरों और होटलों में बड़ी-बड़ी पार्टियां आयोजित की गई है। इन त्योहार जैसे मौसम में समाज का एक तबका ऐसा भी है, जो उच्च शिक्षित होने के बावजूद आज बेहाल, परेशान है। क्योंकि उसका और उसके पूरे परिवार का भविष्य सुरक्षित नही है। ये प्रदेश के उच्च शिक्षित बेटे और बेटियां हैं जो अपने भविष्य के संरक्षण के उद्देश्य से भोपाल के शाहजहानी पार्क में विगत 1 माह से आंदोलनरत हैं। सूबे के सरकारी कालेजों में पिछले दो दशकों से अध्यापन कार्य करने वाले अतिथिविद्वानों से कमलनाथ सरकार ने रोज़ी रोटी तक छीन ली है। कांग्रेस सरकार ने अपने वचनपत्र में अतिथिविद्वानों से नियमितीकरण का वादा किया था किन्तु इससे उलट सरकार ने उनकी बची कुची नौकरी तक छीन कर अतिथिविद्वानों को सड़क पर ला दिया है।
यहां तक कि उनका परिवार भी बिना नौकरी और वेतन के भूखों मरने की कगार पर पहुँच चुका है। अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजकद्वय डॉ देवराज सिंह एवं डॉ सुरजीत भदौरिया में अनुसार कांग्रेस पार्टी ने नियमितीकरण का वचन हमें दिया था, जबकि नौकरी तथाकथित चयनितों को दी। सहायक प्राध्यापक परीक्षा की जांच की मांग की गई। जबकि सत्ता प्राप्त करते ही जिस भर्ती को व्यापम2 कहा था, वह पाक साफ हो गई। यह स्पष्तः दर्शाता है कि सरकार की कथनी और करनी में कितना अंतर है।
कफन ओढ़ने को मजबूर अतिथिविद्वान
अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रांतीय प्रवक्ता डॉ मंसूर अली के अनुसार कमलनाथ सरकार के आधीन अतिथिविद्वान बदहाल हैं। सरकार ने हमें ऐसे दोराहे पर लाकर छोड़ा है कि हम अब किसी लायक नही बचे। 20 साल नौकरी करवाने के बाद सरकार हममे योग्यता ढूंढ रही है। लगभग 2700 अतिथिविद्वानों को फालेन आउट करके सेवा से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। अब हमारे पास मृत्यु का वरण कर लेने के अलावा कोई रास्ता नही बचा है। इसी के विरोधस्वरूप जब समूचा प्रदेश नववर्ष में जश्न में डूबा हुआ है। मंत्री और अधिकारी घरों में छुट्टियां मना रहे है। उच्च शिक्षित अतिथिविद्वान सर पर कफन बांध कर शाहजाहानी पार्क में आंदोलन कर रहे है। सरकार की संवेदनहीनता से आहत अतिथिविद्वान कफन ओढ़ कर नववर्ष का स्वागत किया।
डॉ मंसूर अली ने आगे बताया कि कहां राहुल गांधी जी ने विधानसभा चुनावों के पूर्व इन्दौर के कार्यक्रम में कहा था कि आपके नाम के साथ अतिथि शब्द अच्छा नही लगता। हमारी सरकार आई तो हम आपको सहायक प्राध्यापक बनाएंगे। कमलनाथ जी ने तो नियमितीकरण का वचन ही दिया था। तत्कालीन कांग्रेस विधायक और वर्तमान उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने घोषणा की थी यदि हमारी सरकार बनी और मैं उच्च शिक्षा मंत्री बना तो जो पहली फ़ाइल में मैं दस्तखत करूँगा, वो अतिथिविद्वानों के नियमितीकरण की फ़ाइल होगी। लेकिन चुनाव के साथ ही ये सभी वादे हवा हो गए।अब सरकार भी कांग्रेस की है और जीतू पटवारी ही उच्च शिक्षा मंत्री हैं, लेकिन अब भी अगर कोई बेहाल और परेशान है तो वो अतिथिविद्वान है। उनकी स्थिति जस की तस बनी हुई है। और इसकी ज़िम्मेदार वादाखिलाफी करने वाली कमलनाथ सरकार है।
नेताओं के घर जश्न तो अतिथिविद्वानों के घर सन्नाटा है
अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ जेपीएस चौहान एवं डॉ आशीष पांडेय के अनुसार समूचा प्रदेश जब नववर्ष के स्वागत की तैयारी में लगा हुआ है। अतिथिविद्वानों के घर मायूसी और सन्नाटा है। सरकार की वादाखिलाफी और नौकरी चले जाने से आहत अतिथिविद्वान अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे है। हमने कांग्रेस पार्टी पर विश्वास किया और पार्टी ने हमारे साथ विश्वासघात किया है। स्थिति इतनी विस्फोटक है कि महिला साथियों को इस भीषण ठंड में अपने छोटे होते बच्चो को साथ लेकर आंदोलन में उतरना पड़ रहा है। 1 माह से लगातार जारी इस आंदोलन में कई अतिथिविद्वान गंभीर रूप से बीमार पड़ गए है। कुछ को हॉस्पिटल में भी दाखिल कराया गया है। किन्तु सरकार की संवेदनाएं लगता है समाप्त हो चुकी है कि वे हमारी सुध ही नही लेना चाहती है। हाल जो भी हो, अतिथिविद्वान अपने रुख से पीछे हटते नज़र नही आते है। जबकि सरकार ने भी नियमितीकरण के नाम पर चुप्पी साथ रखी है। अब आगे क्या हालात होंगे ये तो भविष्य के गर्भ में छुपा है किंतु अतिथिविद्वानों के मुद्दे पर प्रदेश की सियासत कौन कौन से करवट लेगी यह आगे देखना दिलचस्प होगा।