भोपाल। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कहते हैं कि यदि वह मध्य प्रदेश में चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे तो कांग्रेस के वोट कट जाएंगे। इसी के चलते 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह ने परदे के पीछे रहकर काम किया। आम सभा को संबोधित नहीं किया और रैली नहीं निकाली परंतु दिल्ली के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में भी दिग्विजय सिंह का नाम नहीं है। जबकि सिख समाज के विरोध के बावजूद मुख्यमंत्री कमलनाथ को स्टार प्रचारक बनाया गया है। इसे लेकर पॉलिटिकल गॉसिप शुरू हो गए हैं।
मध्यप्रदेश में खुद ही पीछे हट गए थे दिग्विजय सिंह
2018 के विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने खुद ही अपने कदम पीछे ले लिए थे। उन्होंने किसी भी तरह की आम सभा एवं रैलियां करने से मना कर दिया था। उनका कहना था कि उनकी प्रचार करने से प्रत्याशियों को नुकसान हो सकता है। मध्य प्रदेश पर 10 साल शासन करने के बाद 15 साल तक भारतीय जनता पार्टी लोगों में दिग्विजय सिंह का डर दिखाकर वोट मांगती रही। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अभियान चलाया था यदि आप भाजपा को वोट नहीं देंगे तो दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन जाएंगे। इसका फायदा भी हुआ। भाजपा को पूर्ण बहुमत से मध्य प्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही और शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बना लिया।
दिल्ली की लिस्ट में दिग्विजय सिंह का नाम क्यों नहीं
कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह कांग्रेस की उस नेशनल टीम का ऐसा है जो कांग्रेस की नीतियां एवं नियम तय करते हैं। कांग्रेस पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव पूरे देश की हर बड़े नेता का उपयोग करने की कोशिश कर रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि दिल्ली में सभी राज्यों के लोग रहते हैं दिल्ली के मतदाता बन गए हैं। दिग्विजय सिंह में मुस्लिम समाज के वोटों को आकर्षित करने की गजब की क्षमता है। मुस्लिम समाज के लोग दिग्विजय सिंह को अपना नेता मानते हैं। फिर क्या कारण है कि कांग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह का दिल्ली में कोई उपयोग नहीं कर रही है।