भोपाल। मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने के बावजूद 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर पाई और सरकार बनाने से चूक गई। यह तो सभी जानते हैं लेकिन एक नई खबर आ रही है। यदि 2018 के चुनाव में भाजपा को बहुमत प्राप्त हो भी जाता तब भी शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं होते।
शिवराज सिंह चौहान का पार्टी के भीतर ही भारी विरोध था
2018 में जब भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली ऑफिस में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति तैयार की जा रही थी तब भी अमित शाह को कई बार बताया गया कि शिवराज सिंह चौहान का पार्टी के भीतर भारी विरोध है। यदि शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया तो हार खतरा है। इस चुनाव को नजदीक से देखने वालों को याद होगा कि इसी समस्या के कारण टिकट वितरण के काम में देरी हो गई थी।
अमित शाह ने दो नाव की सवारी की थी
सूत्रों का कहना है कि अमित शाह ने एक साथ दो नाव की सवारी की थी। एक तरफ शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री होने के नाते कुछ इस तरह से महत्व दिया कि वह पार्टी का चेहरा नजर आए और दूसरी तरफ शिवराज सिंह के विरोधियों को गुपचुप तरीके से विश्वास दिलाने की कोशिश की गई कि भाजपा को बहुमत मिलने के बाद शिवराज सिंह चौहान को विधायक दल का नेता नहीं चुना जाएगा।
शिवराज सिंह को भनक थी, धोखा हो सकता है
शायद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी भनक थी कि धोखा हो सकता है इसलिए विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान एक दो बार वह नरम भी पढ़े। सबसे बड़ी बात यह है कि कमलनाथ की दमदार दावेदारी के बावजूद शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें टारगेट नहीं किया। शिवराज सिंह चौहान के टारगेट पर दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया रहे। 1 साल बाद सवाल यह है कि क्या यह शिवराज सिंह चौहान की चूक थी या फिर कोई रणनीति।
शिवराज सिंह नहीं तो फिर मुख्यमंत्री कौन होता
इस सवाल का जवाब सागर जिले की रहली विधानसभा में हुई सभा में मिला। इस सभा को नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि चुनाव में यदि 2-4 विधायक और मिल जाते तो आप के बीच का व्यक्ति मुख्यमंत्री होता है। यानी उन्होंने बता दिया कि फैसला हो चुका था विधायक दल का नेता हो नहीं चुना जाना था। यदि भाजपा पूर्ण बहुमत में आती वहीं भाजपा विधायक दल के नेता और मुख्यमंत्री बनते। लोग कह सकते हैं यह उनका एक अनुमान मात्र है परंतु राजनीति में मंच से ऐसे शब्द तभी निकलते हैं जब दर्द बहुत तेज हुआ हो।