भोपाल। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने 2020 में बड़ी संख्या में रिटायर होने जा रहे कर्मचारियों को रिटायरमेंट फंड देने से बचने के लिए एक नई युक्ति निकाली है। रिटायर होने वाले कर्मचारियों को सशर्त संविदा नियुक्ति दी जाएगी। शर्त यह होगी कि उन्हें तत्काल रिटायरमेंट फंड नहीं दिया जाएगा। इससे सरकार को दो फायदे होंगे। पहला लंबे समय से बढ़ती ना होने के कारण कर्मचारियों का टोटा जो पड़ गया है, बिना नई भर्ती किए काम चल जाएगा और दूसरा खाली खजाने पर बड़ा बोझ नहीं आएगा।
सरकारी सूत्र बताते हैं कि 2020 में रिटायर होने वाले कर्मचारियों को पहली बार एक साल के लिए संविदा पर रखा जा सकता है। इसके बाद संविदा अवधि बढ़ाई जाएगी। संविदा अवधि समाप्त होने के बाद कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले फायदे सामान्य दर से ब्याज के साथ देने पर भी विचार चल रहा है।
पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी है। इससे कामकाज प्रभावित हो रहा था तो शिवराज सरकार ने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा दो साल बढ़ाकर 62 कर दी। यह अवधि मार्च में खत्म हो रही है।
यानी 31 मार्च को प्रदेशभर में चार हजार से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी एक साथ रिटायर होने वाले हैं। उधर, सुप्रीम कोर्ट में भी राज्य सरकार की सशर्त पदोन्नति देने की अर्जी पर सुनवाई शुरू नहीं हुई है। इसे देखते हुए राज्य सरकार विकल्प तलाश रही है। पिछले दिनों कैबिनेट बैठक में वित्त विभाग ने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 62 से बढ़ाकर 65 साल करने का प्रस्ताव रखा था।
बैठक में प्रस्ताव पर चर्चा के बजाय विकल्पों पर मंथन हुआ। यहां सरकार ने मार्च के बाद सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को संविदा नियुक्ति देने के संकेत दिए हैं। सरकार यह व्यवस्था अगले एक साल जारी रख सकती है। इतने में पदोन्नति में आरक्षण मामले का फैसला आता है या सुप्रीम कोर्ट सशर्त पदोन्नति देने की मांग मंजूर करता है, तो ठीक, वरना संविदा अवधि बढ़ाई भी जा सकती है।
आठ हजार कर्मचारी रिटायर्ड होंगे
मार्च से दिसंबर 2020 तक प्रदेशभर से करीब आठ हजार अधिकारी-कर्मचारी रिटायर्ड हो जाएंगे। इसका सीधा असर सरकारी कामकाज पर पड़ेगा, क्योंकि इन पदों पर काम करने वाले नहीं हैं। कनिष्ठ अधिकारी व कर्मचारी इन पदों का वेतन तो ले रहे हैं, लेकिन पदोन्नति न मिलने के कारण वेतन के मुताबिक काम नहीं कर रहे।
उल्लेखनीय है कि 30 अप्रैल 2016 को मप्र हाईकोर्ट ने 'मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम 2002" खारिज कर दिया है। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यथास्थिति रखने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद से प्रदेश में पदोन्नतियों पर रोक लगी है।
इनका कहना है
सरकार को युवाओं का भविष्य और कर्मचारी हित दोनों को ध्यान में रखकर फैसला लेना चाहिए।
- वीरेंद्र खोंगल, सदस्य, राज्य कर्मचारी आयोग