कैलाश विश्वकर्मा। "गरीबी में गीला आटा" कहावत यहां चरितार्थ होती नजर आ रही है। मध्यप्रदेश के शासकीय स्कूलों में 12 वर्षों से सेवा देने का परिणाम उन्हें भुगतना पड रहा है पूरा मामला शिक्षक भर्ती परीक्षा का है। शिक्षक भर्ती में अतिथि शिक्षकों के साथ बहुत बड़ा धोखा हो रहा है, कायदे अनुसार अतिथियों को बोनस अंक का प्रावधान किया जाना चाहिए था किंतु षड्यंत्र पूर्वक उन्हें केवल 25% पदों पर ही समेट दिया गया। केवल 25 % पदों में पूरे मध्यप्रदेश के अतिथियों को कैद कर देना अन्याय पूर्ण हैं।
वे अतिथि जो एकीकृत प्रवीणता सूची में आ रहे हैं उन्हें अनारक्षित में स्थान नही दिया गया और सिर्फ 25 प्रतिशत आरक्षण कोटे में ही लिया गया यह अन्याय है। जबकि आरक्षण या कोटा व्यवस्था लाभ देने के लिये किया जाता है जिससे निचले क्रम के अतिथि शिक्षकों को भी मौका मिले क्योंकि उन्होने सरकार की सेवा की हेै।
इस व्यवस्था में तो अतिथियों का 25% आरक्षण ना होकर गैर अतिथियों का 75% आरक्षण हो गया।किसी भी आरक्षण का उद्देश्य उस वर्ग को हित पहुंचाना होता है ना कि उसका अहित करना। इस व्यवस्था से अतिथियों का अहित हुआ है। जितने पद विज्ञापित नहीं हुए आज मध्य प्रदेश के स्कूलों में उससे अधिक अतिथि कार्यरत हैं। सरकार यदि वास्तविक भला करना चाहती है तो उन्हें भी अतिथि विद्वानों की तरह बोनस अंक का प्रावधान करना था।
दैनिक मजदूरी से भी कम मजदूरी लेकर अतिथियों ने अच्छा परीक्षा परिणाम दिया । 10:00 से 5:00 तक संस्थाओं में उपस्थित रहकर दिए गए दायित्व का निर्वाहन किया। जिससे उनकी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी प्रभावित हुई। इस तरह की प्राविधिक सूची जारी कर उनके साथ धोखा किया जा रहा है।