भोपाल। छठवें वेतनमान में विसंगतियों को लेकर दायर 130 से अधिक याचिकाओं पर माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में माननीय जज श्री सुबोध अभ्यंकर की कोर्ट में अन्तिम सुनवाई हुई। लगभग 3घंटे तक चली बहस के बाद माननीय न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। ट्रायबल वेलफेयर टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्य़क्ष डी के सिंगौर ने बताया कि याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट के सी घिल्डियाल, डी के दीक्षित, अमित चतुर्वेदी, स्वप्निल गांगुली, प्रणब चौबे आदि ने पैरवी की।
याचिकाकर्ताओं की ओर से मुख्य पैरवी करते हुए एडवोकेट के सी घिल्डियाल ने कोर्ट को बताया कि अध्यापकों को 1 जनवरी 2016 से देय छठवें वेतनमान में विद्द्मान वेतनमान की गलत गणना करने से छठवें वेतनमान की गणना सही नहीं हो रही है और अध्यापकों को आर्थिक नुकसान हो रहा है । अध्यापक संवर्ग में सन्विलयन के समय शिक्षाकर्मी सेवा अवधि के मिले 3और 2 इंक्रिमेंटस छठवें वेतनमान की गणना में नहीं जोड़े गए हैं । अध्यापकों को अप्रैल 2013 से 3% की दर से वेतनवृद्धि का लाभ मिला है जबकि पूरी टेबल में विद्दमान वेतन की गणना वेतनवृद्धि 100-125और 175 के मान से की गईं है अतः टेबल 3% वेतनवृद्धि के रेट से बनना था ऐसा न करने से 2006 के बाद नियुक्त अध्यापकों के वेतन में भी विसंगति आ गईं।
अक्टूबर 2013 के वेतन वृद्धि को भी विद्द्मान वेतन की गणना में नहीं लिया गया है । जिन अध्यापकों को ग्रीनकार्ड आदि की अतिरिक्त वेतनवृद्धि का लाभ मिला था वह भी छठवें वेतनमान की गणना में नहीं आने से ग्रीनकार्ड धारी और गैर ग्रीनकार्ड धारी का वेतन एक समान हो गया है । अध्यापक संवर्ग की सेवा अवधि की गणना करते समय 6माह से अधिक की सेवा अवधि पूर्ण वर्ष नहीं होने के कारण गणना में नहीं ली गईं है जिससे अध्यापकों को एक वेतनवृद्धि का नुकसान हुआ है । एडवोकेट के सी घिल्डियाल ने ग्वालियर खंडपीठ के उस निर्णय पर भी बहस की जिसमें अध्यापकों की इसी प्रकार की समरूप याचिका में अध्यापकों के विरुद्ध निर्णय आया है । एडवोकेट के सी घिल्डियाल ने बताया कि ग्वालियर खंडपीठ का निर्णय शिक्षाकर्मियों की सेवा को नियमित नहीं मानते हुए दिया है जबकि शिक्षाकर्मियों की सेवा नियमित वेतनमान में हुई थी । इसलिए ग्वालियर बेंच के निर्णय को उदाहरण मानकर हमारे केसों पर लागू नहीं किया जा सकता।
मप्र शासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता ने जो भी तर्क रखे, याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने उसके तर्क संगत जवाब दिए । कुलमिलाकर याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने कोर्ट में मांगी गईं रिलीफ के लिए कोर्ट के समक्ष तर्कपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किए जिससे कोर्ट सहमत होते दिखी अध्यापक कोर्ट में हुई बहस से खुश हैं अध्यापकों को कोर्ट के निर्णय का यह इंतजार है कि यदि फैसला अध्यापकों के पक्ष में आता है तो विद्द्मान वेतन पर 1.86 के गुणांक का लाभ मिलता है या फिर विद्द्मान वेतन की सही गणना कर लाभ दिया जाता है । उल्लेखनीय है कि छठवें वेतनमान में व्याप्त विसंगतियों की ओर अध्यापक संगठनो द्वारा विरोध जताए जाने के बाद भी सरकार द्वारा ध्यान नहीं दिए जाने पर मण्डला जिले के अध्यापकों द्वारा वर्ष 2017 में डी के सिंगौर की अगुवाई में याचिका दायर कर 7जुलाई 2017 के छठवें वेतनमान के आदेश में स्टे लिया था जिससे वेतन कम हो रहा था । उसके बाद उक्त याचिका को उदाहरण मानकर हजारों अध्यापकों ने कोर्ट की शरण ली थी । मुख्य याचिकाकर्ता डी के सिंगौर ने कोर्ट में बहस के दौरान उपस्थित थे और उस दिन हुई सुनवाई के आधार पर निर्णय अध्यापकों के पक्ष में होने की उम्मीद जताई है।