BJP के नेता सेलिब्रिटी की तरह हो गए हैं | MY OPINION by PRAVESH SINGH

Bhopal Samachar
@PraveshBhadoria | दिल्ली में आम चुनाव के नतीजे आ गये और लोगों के भरोसे को जीतकर फिर से "आम आदमी" पार्टी ने सरकार बना ली। पिछले कुछ दिनों से देश में, विशेष रुप से उत्तर भारत में , ऐसा माहौल बनाया जा रहा था जैसे ये किसी राज्य का चुनाव ना होकर "मुगल-मराठाओं" का युद्ध हो रहा हो जिसमें कमजोर मराठाओं के खिलाफ पूरी मुगलिया सल्तनत खड़ी हो गयी हो। जिसमें चुनाव के वक्त जनता ने "कमजोर मराठाओं" के शासन को स्वयं के लिए चुना हो। 

केंद्र और दिल्ली के नगर निगम में काबिज भाजपा दहाई का अंक भी पार नहीं कर पायी।इसका एक कारण "आप" का शांति से प्रचार करना और भाजपा का "आक्रामकता" से प्रचार करना भी है जहां "गोली" से लेकर "गाली" और "पाकिस्तान" से लेकर "बांग्लादेश" तक के मुद्दे भाजपा के चुनाव अभियान के हिस्से थे लेकिन "रोटी-कपड़ा-मकान" जैसी मूलभूत सुविधाओं की बात को उन्होंने दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया था। 

एक अन्य कारण "आप" के नेताओं का सुलभता से जनता से मिलना भी है।उनके मुख्यमंत्री पेंट-शर्ट पहनकर परिवार के साथ किसी आम आदमी की तरह फिल्में देखने जाते हैं,अपनी बिटिया के परीक्षा में अच्छे अंक आने पर सबको बताते हैं वहीं भाजपा के सांसद-नेतागण किसी से मिलना तो दूर बात करना भी पसंद नहीं करते हैं। वो सब एक सेलिब्रिटी की तरह हैं जिन्हें ट्वीटर या टीवी पर ही देखा जा सकता है। 

किसी राज्य की जनता का पेट कश्मीर के आर्टिकल 370 से या राम मंदिर से नहीं भर सकता है और ना ही इन मुद्दों से उन्हें साफ पानी मिल सकता है। दिल्ली असल में दो भागों में विभक्त है एक "आर्थिक संपन्न" और दूसरी "रोजी-रोटी" के लिए भागती दिल्ली। प्रतिदिन धूप, बारिश,सर्दी से बेपरवाह रोजी-रोटी की तलाश में निकली दिल्ली को "गद्दार" और "गोली मारना" भाजपा को आम आदमी की पहुंच से दूर करता जा रहा है। 

एक विद्यार्थी हर परीक्षा की तैयारी के लिए अलग रणनीति बनाता है लेकिन भाजपा के शीर्ष नेता उत्तर प्रदेश में जीत के बाद उसी रणनीति को लगातार हार के बाद भी बनाये रखें हैं। हालांकि यही शीर्ष नेता जब "गुजरात" में थे तब "कट्टर हिंदुत्व" के बजाय "विकास" को केंद्रीय धुरि पर रखकर चुनाव जीता करते थे। 

भाजपा को अब "आत्ममुग्धता" से बाहर निकलकर "आत्ममंथन" करना चाहिए वरना उनकी स्थिति वामपंथियों की तरह हो जायेगी जिनको "सुनने" में तो अच्छा लगता है लेकिन "चुनने" में नहीं। 
pravesh singh Bhadouriya | @PraveshBhadoria

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