नई दिल्ली। मंगलवार दिनांक 12 फरवरी 2020 का दिन दिल्ली के लिए तो महत्वपूर्ण है ही लेकिन दिल्ली से कहीं ज्यादा " रिंकिया के पापा" मनोज तिवारी के लिए महत्वपूर्ण है। दिल्ली विधानसभा का चुनाव भाजपा के लिए एक राज्य का चुनाव होगा परंतु मनोज तिवारी के लिए उनके करियर का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट है। यदि भाजपा जीती तो मनोज तिवारी मुख्यमंत्री होंगे लेकिन यदि हार गई तो रिंकिया के पापा क्या करेंगे शायद उन्हें भी नहीं पता।
सीएम कैंडिडेट तो रिंकिया के पापा ही थे, घोषणा नहीं हुई तो क्या
भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी चतुराई से इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में सीएम कैंडिडेट की घोषणा नहीं की थी परंतु चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली की जनता बहुत ठीक तरह से समझ चुकी थी कि भाजपा की तरफ से सीएम कैंडिडेट मनोज तिवारी है। दिल्ली न केवल पार्टी और मुद्दों का चुनाव नहीं किया बल्कि सीएम कैंडिडेट का चेहरा देखकर भी वोट किया है। अरविंद केजरीवाल के सामने मनोज तिवारी ने हमलावर होने की कोशिश तो बहुत की परंतु वह सफल नहीं हो पाए।
लोकसभा के 56% का क्रेडिट लिया था तो विधानसभा का सेहरा भी सजाना पड़ेगा
बात मनोज तिवारी की हो रही है। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री कैंडिडेट नरेंद्र मोदी थे। दिल्ली विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी को 7 सांसद मिले। 56% जनता ने भाजपा को वोट किया। मनोज तिवारी ने स्पोर्ट का क्रेडिट अपने खाते में जमा कराया। अब जबकि लोकसभा चुनाव का क्रेडिट मनोज तिवारी ले गए थे तो विधानसभा चुनाव का क्रेडिट भी मनोज तिवारी के खाते में ही जमा होगा।
लोकसभा में मिला 56% वोट बचेगा या घट जाएगा
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों का कॉन्फिडेंस लोकसभा चुनाव में मिला 56% वोट ही था। बीजेपी थिंक टैंक की स्टडी के बाद 56% वोट पर आया कॉन्फिडेंस कब ओवरकॉन्फिडेंस में बदल गया पता ही नहीं चला। किसी भी विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता राज्य के मुद्दों पर बात करना चाहती है परंतु दिल्ली में CAA/NCR के नाम पर वोट मांगे गए। दिल्ली में दहशत का माहौल पैदा किया गया। उम्मीद थी कि इससे बड़ी संख्या में वोटों की लामबंदी हो पाएगी परंतु एग्जिट पोल के नतीजे बताते हैं कि ऐसा नहीं हो पाया। चुनाव नतीजों के बाद साफ हो जाएगा कि भाजपा की रणनीति सही थी या नहीं।