नई दिल्ली। " दिल्ली को पसंद बा रिंकिया के पापा" थीम सॉन्ग के साथ दिल्ली विधानसभा चुनाव का कैंपेन चलाने वाले भाजपा के सीएम कैंडिडेट मनोज तिवारी ने वोटिंग के बाद आए एग्जिट पोल को गलत करार देते हुए दावा किया था कि जीत उनकी ही होगी लेकिन अब चुनाव परिणाम के बाद जो आपने सामने आ रहे हैं और भी ज्यादा चौंकाने वाले हैं। रिंकिया के पापा नहीं मनोज तिवारी को दिल्ली के मतदाताओं ने तो नापसंद किया ही, रिंकिया के मामा और चाचा (पुरबिया) तक के वोट भी नहीं मिले।
उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों ने भी भाजपा को वोट नहीं किया
दिल्ली में पूर्वांचल के वोटरों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखकर भाजपा ने भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी को दिल्ली की कमान सौंपी है। पार्टी को उम्मीद थी कि तिवारी के सहारे वह विधानसभा चुनाव में पुरबिया वोटरों को साधने में सफल रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बुराड़ी, संगम विहार, किराड़ी, द्वारका, उत्तम नगर सहित लगभग उन सभी सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा जहां उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग ज्यादा हैं।
मनोज तिवारी: मुख्यमंत्री तो बन नहीं पाए प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी खतरे में
पूर्वांचल के लोगों का समर्थन नहीं मिलने और विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन से प्रदेश अध्यक्ष की मुश्किल भी बढ़ेगी, क्योंकि उनके विरोधियों को एक मौका मिल गया है। पहले भी कई नेता उनके नेतृत्व पर सवाल उठाते रहे हैं। अब इस हार के लिए वह उन्हें जिम्मेदार ठहराते हुए नेतृत्व बदलने की मांग कर सकते हैं।
2016 में संभाली थी दिल्ली की कमान
भाजपा ने नवंबर, 2016 में तिवारी को दिल्ली की कमान सौंपी थी। लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल वोटरों का साथ भाजपा को मिला था, लेकिन विधानसभा चुनाव में ऐसा नहीं हुआ। पूर्वांचल से संबंधित भाजपा के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए।
भाजपा की गठबंधन पार्टियों को भी वोट नहीं मिले
इसके साथ ही पार्टी ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) से समझौता करके चुनाव में उतरी थी। बुराड़ी और संगम विहार सीट पर जदयू और सीमापुरी से लोजपा के प्रत्याशी मैदान में उतरे थे, लेकिन इसमें से किसी को भी जीत नसीब नहीं हुई।
केंद्र सरकार ने लालच दिया था, वह भी काम नहीं आया
इसी तरह से अनधिकृत कॉलोनियों में लोगों को उनके घर का मालिकाना हक देने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले का लाभ भी भाजपा को नहीं हुआ। इस फैसले से 40 लाख से ज्यादा लोगों को फायदा पहुंचने का दावा किया जा रहा है। इन कॉलोनियों में भी अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग रहते हैं।