क्या आप जानते हैं, देश में अब कुल १.५ करोड़ लोग ही आयकर चुकाते हैं ? २०१९ के पहले यह संख्या ६ करोड़ थी | जरा इस आंकड़े को भी देखिये देश में कुल मिलाकर १८ करोड़ दोपहिया वाहन हैं। सबसे सस्ता दोपहिया भी ५०,००० रुपये का मिलता है और ज्यादा लोकप्रिय ब्रांड की कीमत तो बहुत अधिक हैं। सहज सवाल है अगर कोई स्कूटर या मोटर साइकिल रखने लायक पैसे कमाता है तो उसे आय कर चुकाना चाहिए। दुर्भाग्य की बात है कि १० प्रतिशत से भी कम लोग आय कर देते हैं।नागरिकों को दोषदेने से पहले २०१९ के वित्त मंत्री को भी नहीं बख्शना चाहिए जिन्होंने लोक सभा चुनाव वाले वर्ष में ५ लाख रुपये तक की आय अर्जित करने वाले सभी व्यक्तियों को आय कर चुकाने से मुक्त कर दिया था। उनकी घोषणा के चलते तीन चौथाई करदाता कर दायरे से बाहर हो गए। करदाताओं की संख्या ६ करोड़ से घटाकर १.५ करोड़ करने का काम सरकार ही था।
आयकर की अंतरराष्ट्रीय तुलनाएं बहुत कुछ कहती हैं। अमेरिका में लोग १२००० डॉलर की आय के स्तर पर आयकर चुकाना शुरू कर देते हैं। यह गरीबी रेखा के स्तर से लगभग समांतर होता है। यदि कोई युगल एक साथ रिटर्न दाखिल करता है तो उसे कर चुकाने के पहले उक्त आय का दोगुना कमाना होता है। अहम बात यह है कि चार सदस्यों वाले परिवार के लिए आयकर चुकाने की सीमा २५००० डॉलर है। देखा जाए तो ऐसे परिवार की गरीबी रेखा के स्तर के आसपास है। इन आंकड़ों के पीछे एक सिद्घांत यह नजर आता है कि एक बार गरीबी रेखा के ऊपर जाने के बाद आपको कर चुकाना चाहिए। ब्रिटेन में भी ऐसा ही है। वहां गरीबी की कई परिभाषाएं हैं लेकिन कर चुकता करने का सिलसिला कमोबेश गरीबी रेखा के स्तर की आय से शुरू होता है जो करीब १२००० पाउंड है।हमारे यहां कर चुकाने की सीमा किसी परिवार के गरीबी रेखा के स्तर पर आय के गुणक से तय होती है। औसतन चार लोगों के परिवार में यह उनकी औसत आय से दोगुना यानी करीब २.५ लाख रुपये है। एक वर्ष पहले तक कर सीमा का स्तर यही था लेकिन उसके बाद इसे बढ़ाकर ५ लाख रुपये कर दिया गया। ऐसे में प्राथमिक समस्या करदाताओं में नहीं बल्कि कर नियमों में है जिन्होंने कर चुकाने की सीमा को बहुत ऊंचा कर दिया। यदि कर सीमा को पुराने स्तर पर कर दिया जाए तो कर चुकाने वालों की तादाद स्वत: चार गुना हो जाएगी।
भारत में कर की शुरुआत ५ प्रतिशत के स्तर से होती है। जबकि ब्रिटेन में सबसे निचली कर दर २० प्रतिशत है। अमेरिका में यह संघीय स्तर पर १० प्रतिशत तथा विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। यहां ताजा नियमों के २० प्रतिशत की दर से कर चुकाने के पहले १० लाख रुपये के आय स्तर पर पहुंचना होता है यानी चार लोगों के औसत परिवार की औसत सालाना आय का चार गुना। सच यह है कि देश में आयकर का स्तर काफी ऊंचे आय स्तर पर और अस्वाभाविक रूप से कम दर पर शुरू होता है।
एक बात और संबंधित व्यक्ति के कर रिटर्न को उसके व्यय और बचत की आदत, विदेश यात्राओं, वाहन स्वामित्व और बिजली की खपत के स्तर से दोबारा मिलान या जांच में चूक करती है। चूंकि उच्च मूल्य के ज्यादातर लेनदेन में स्थायी खाता संख्या देना जरूरी है इसलिए प्रभावी ढंग से जांच होने पर अधिकांश कर वंचक पकड़े जाने चाहिए थे। यह सच है कि नोटबंदी और अन्य उपायों के बाद कर रिटर्न दाखिल करने वालों की तादाद बढ़ी है लेकिन कुल मिलाकर आज हालात निराशाजनक हैं। यह समस्या सरकार की खड़ी की हुई है। हालात को बदलना भी सरकार के हाथ में है। बशर्ते कि सरकार मध्य वर्ग के विरोध के साथ सबकुछ पारदर्शी करने का माद्दा हो | सरकार कोई भी हो अपने वोट बैंक को साधने के लिए आयकर का इस्तेमाल एक औजार की तरह करती है | इस औजार के इस्तेमाल से होने वाली शल्य क्रिया अर्थात विकास भी उन विदेशों की भांति परिलक्षित होना चाहिए जिनकी नकल में सरकार यह कर मांगती है | विश्व में १० से अधिक देश ऐसे भी जिनमे आयकर जैसी व्यवस्था नहीं है और उनका विकास भारत से अच्छा है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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