भारतीय मनोरंजन उद्योग कारोबार को खासी मजबूती मिल रही है। दिल्ली के लाजपत नगर में भूतल में बने एक छोटे से कार्यालय में विषय-वस्तु की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता का एक मोटा अंदाजा लगाया जा सकता है। देश के कई छोटे बड़े स्टूडियो में बिना रुके लगातार काम चल रहा है। औसतन हर एक महीने १००० घंटे से अधिक की सामग्री अंग्रेजी, चीनी, जापानी और स्पैनिश भाषा से हिंदी, तमिल, तेलुगू सहित अन्य भारतीय भाषाओं में रूपांतरित करती है। करीब दो वर्ष पहले हरेक महीने ५० घंटे की सामग्री के विभिन्न भारतीय भाषाओं में रूपांतरण पर काम हो पाता था। अब ये आंकड़े बीते दिनों की बात हो चुके हैं।
अगर आप 'द प्रोटेक्टर', 'ट्रोलहंटर्स' (नेटफ्लिक्स) या 'इट्स नॉट दैट सिंपल' (वूट) या 'परमानेंट रूममेट्स' (टीवीएफ) सहित अन्य कार्यक्रमों पर ध्यान दें तो इनके लिए दिल्ली के एक सन्गठन को श्रेय दिया जाता है। दिल्ली के दूसरे इलाकों या चेन्नई, हैदराबाद और मुंबई जैसे शहरों में भी ऐसी कई कंपनियां दिख जाएंगी, जो प्रोडक्शन बाद की गतिविधियों या डबिंग का काम करती हैं। सामग्री सृजन में आई जबरदस्त तेजी का सबसे पहला खुशनुमा प्रभाव यह हुआ है कि इससे उन सभी चीजों की मांग बढ़ी है, जिनकी मदद से 'सैक्रेड गेम्स' या 'द फैमिली मैन' जैसे कार्यक्रम पूरी दुनिया में लाखों टीवी, मोबाइल और अन्य उपकरणों तक पहुंच पाते हैं।
इस जबरदस्त बदलाव का एक दूसरा असर यह हुआ है कि प्रतिभाओं की पूछ बढ़ी है और इनका मूल्यांकन भी खासा बढ़ा है। एक तीसरा अहम बदलाव यह हुआ है कि इससे भारत में १,६७ ४०० करोड़ रुपये के मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग में युवा एवं मध्य स्तर पर प्रतिभाओं के प्रशिक्षण पर ध्यान अधिक दिया जाने लगा है। पहले प्रतिभाओं के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था। गूगल, एमेजॉन, एटीऐंडटी, डिज्नी, कॉमकास्ट, ऐपल और नेटफ्लिक्स सहित दूसरी कंपनियां दर्शकों का अपने साथ जोडऩे के लिए दुनिया भर में नए कार्यक्रम शुरू कर रही हैं। इससे किसी भी देश में बैठा व्यक्ति दूसरे देश की सामग्री अपनी भाषा में देख सकता है।
भारत में लोग नार्कोज (स्पैनिश, कोलंबिया), फ्रांस के लोग सैक्रेड गेम्स (हिंदी, भारत) या तुर्की के लोग डार्क (जर्मन, जर्मनी) सहित अन्य देशों के लोग दूसरे देशों के कार्यक्रम अपनी भाषा में देख सकते हैं। दर्शकों की यह खोज इन कंपनियों को भारत की तरफ खींच लाई है। भारत एक ऐसा बाजार है, जहां इन कंपनियों को दर्शकों के साथ ही कहानी कहने वाले भी मिल जाते हैं। कोरिया के बाद भारत उन कुछ बाजारों में शुमार है, जहां स्थानीय स्तर पर सामग्री मौजूद हैं और यहां एक बाजार भी है, जो इन सामग्री का प्रस्तुतीकरण बेहतर ढंग से करता है। ९० प्रतिशत से अधिक भारतीय जो कुछ सुनते या देखते हैं वह स्थानीय होता है।
जुलाई २०१८ में एक हिंदी कार्यक्रम 'सैक्रेड गेम्स' दुनिया के १९० देशों में नेटफ्लिक्स के १२.५ करोड़ उपभोक्ताओं के बीच दिखाया जाने लगा। करीब एक साल से अधिक समय बीतने के बाद सितंबर २०१९ में 'लस्ट स्टोरीज' (नेटफ्लिक्स) और 'द रीमिक्स-इंडिया' (एमेजॉन प्राइम वीडियो) कार्यक्रमों सहित 'सैक्रेड गेम्स' इंटरनैशनल एमी अवाड्र्स के लिए नामित किए गए। उन्हें सफलता भले ही नहीं मिली, लेकिन 'सैक्रेड गेम्स' द न्यू यॉर्क टाइम्स के दशक के ३० इंटरनैशनल सीरीज की सूची में जगह बनाने में सफल रहा।
एमेजॉन प्राइम वीडियो के अनुसार भारतीय कार्यक्रम देखने वाले इसके प्रत्येक तीन दर्शकों में एक भारत से बाहर के हैं। कलाकार, निर्देशक से लेकर लेखक तक भारतीय प्रतिभाओं को आकर्षित किया जा रहा है और इसमें हैरान होने की बात भी नहीं है। वर्ष २०१८ में शीर्ष १० ओटीटी पर वास्तविक सामग्री की अवधि बढ़कर करीब ४०० घंटे हो गई, जो २०१६ में महज २० घंटे हुआ करती थी। २०२० के अंत तक यह आंकड़ा बढ़कर १००० घंटे तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत में औसतन १६०० से अधिक फिल्में बनती हैं और यह दुनिया में फिल्म निर्माण करने वाला सबसे बड़ा देश है|लेकिन यह ओहदा हासिल करने के बाद भी विभिन्न भाषाओं एवं विभिन्न सोच रखने वाले लोगों के लिए अतिरिक्त ५०० उच्च गुणवत्ता वाली फिल्में तैयार करना एक अहम चुनौती है। कुल मिलाकर भारत का सृजनात्मक क्षेत्र तेजी से प्रगति कर रहा है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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