भोपाल। 2019 का लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की लोकप्रियता पर प्रश्नचिन्ह तो लगी गया था कमलनाथ के तीखे 3 शब्द (तो उतर जाए) न रही सही कसर भी पूरी कर दी। कांग्रेस पार्टी में लोग अब ज्योतिरादित्य सिंधिया की लोकप्रियता और योग्यता पर भी सवाल उठाने लगे हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने योग्यता के दम पर पहला चुनाव लड़ा था, हार गए
अलका लांबा को मध्य प्रदेश की राजनीति से कोई सरोकार नहीं है फिर भी उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ना केवल तंज कसा बल्कि यह बताने की कोशिश भी की थी अब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास जो कुछ था उनके पिता के नाम और कांग्रेस की लहर के कारण था। अब जबकि दोनों चीजें खत्म हो चुकी है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया भी खत्म होते जा रहे हैं। अलका लांबा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम तो नहीं लिखा लेकिन बड़े ही तीखे शब्दों में लिखा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके पिता के नाम पर टिकट मिला था। अब तक वह कांग्रेस के कारण जीतते आ रहे थे। उनके कारण कांग्रेस नहीं जीत रही थी। पहली बार अपने दम पर चुनाव लड़ने की बात आई तो ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने ही बागी समर्थक से हार गए। चुनाव हारना इतना कष्टकारी नहीं होता जितना कि अपने बागी समर्थक से चुनाव हार जाना।
राजमाता वाली बात ज्योतिरादित्य सिंधिया में नहीं
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जैसे ही सिंधिया के नाम पर दो 2 प्रतिक्रिया दी। मध्य प्रदेश की राजनीति के इतिहास को समझने वाले लोग चौक उठे थे। ज्यादातर पुराने नेताओं को लगा कि 1967 वाला घटनाक्रम दोहराया जा सकता है। 1967 में राजमाता विजयराजे सिंधिया कांग्रेसमें थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के साथ उनके ठीक इसी प्रकार के मतभेद थे जैसे कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच है। पचमढ़ी की मीटिंग में सी एम डीपी मिश्र ने अप्रत्यक्ष रूप से राजघरानों को लेकर एक टिप्पणी कर दी थी। इतनी सी बात सही राजमाता सिंधिया नाराज हो गई। मीटिंग से उठ कर चली गई और फिर उन्होंने सरकार का तख्तापलट कर दिया। राजमाता सिंधिया ने गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनाया था। मध्य प्रदेश के इतिहास की वह पहली 'संविद सरकार' थी। उसके बाद अब तक ऐसा कोई मौका नहीं आया। पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास उतने ही विधायक है लेकिन शायद लोगों का अनुमान गलत है क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया में राजमाता वाली बात नहीं।