प्रवेश सिंह भदोरिया। अंतत: मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष के चुनाव का पटाक्षेप दिल्ली से आये एक पत्र ने कर दिया जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आये हुए खजुराहो सासंद को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। इससे लंबे अरसे बाद ना केवल क्षत्रियों का अध्यक्ष के रुप में चल रहा एकाधिकार टूटा बल्कि प्रभात झा जी के बाद एक ब्राह्मण पुनः संगठन शीर्ष पर पहुंचने में कामयाब रहा।
हालांकि दिमाग में ये सवाल जरूर आ सकता है कि विष्णु दत्त शर्मा ही क्यों? इसका जबाव संघ को जानने वाले और भाजपा की राजनीति को समझने वाले अच्छे से जानते होंगे। विधानसभा चुनाव हारने के बाद "सत्ता की चाशनी" से छिटकी भाजपा को एकजुट रखने में असफल राकेश सिंह और मुख्यमंत्री पद का ख्वाब पालने वाले गोपाल भार्गव को शांत रखने और नियंत्रण में रखने के लिए संगठनात्मक रुप से अनुशासित व्यक्ति की ही तलाश थी जो "शिव-नरेंद्र" की स्वीकृति के बाद अंततः पूर्ण हुई व इस नियुक्ति से पुनः बिखरी व गुटीय राजनीति की शिकार भाजपा को एकीकृत करने में मदद मिलेगी।
मेहनत और किस्मत के मिश्रण हैं विष्णु दत्त शर्मा
एक वर्ष पूर्व तक जो व्यक्ति विधानसभा टिकट व फिर लोकसभा टिकट के लिए जूझ रहा था वो अब स्वयं ही सुनिश्चित करेगा कि किसे चुनाव लड़ना है, किसे नहीं। लेकिन करता ये किस्मत थी? यक़ीनन नहीं क्योंकि विद्यार्थी परिषद में रहते हुए इन्होंने जिस तरह से संगठनात्मक तौर पर मजबूती दी थी उसी का फल आज अध्यक्ष के तौर पर मिला है।
नये अध्यक्ष पर "भाजपा" के दिमाग से सत्ता के लोभ को निकालना भी एक चुनौती होगी क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल के जीतने की कुंजी संगठनात्मक मजबूती होती है और ये नियुक्ति कितनी सही है ये "काल के गाल" में ही छुपा है।