भोपाल। पिछले 10-15 सालों में मध्य प्रदेश बाहरी विद्यार्थी और बाहरी उम्मीदवारों का गढ़ बन गया है। यदि पूरे डेटाबेस को समराइज्ड किया जाए तो एक चौंकाने वाली स्थिति सामने आएगी और वह यह कि मध्यप्रदेश में ज्यादातर नौकरियां बाहरी उम्मीदवारों को दी जा रही है और मध्य प्रदेश की यूनिवर्सिटी में ज्यादातर महत्वपूर्ण कोर्सों की सीटें बाहरी विद्यार्थियों को दी जा रही है। मध्य प्रदेश शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में भी कुछ ऐसा ही हो गया है। अधिकारियों ने ऐसी तिकड़म लगाई है कि आधे से ज्यादा बाहरी उम्मीदवार भर्ती हो जाएंगे।
RTI के कारण घोटाला नहीं करते, पॉलिसीज बदल देते हैं
सूचना का अधिकार लागू होने और व्यापम घोटाला के खुलासे के बाद मध्यप्रदेश के अफसरों ने एक सबक सीख लिया है। अब वह चोरी चुपे कोई घोटाला नहीं करते बल्कि किसी भी घोटाले की पहले से प्लानिंग की जाती है और फिर उस घोटाले के लिए पॉलिसी बदल दी जाती है। कई बार तो प्रक्रिया के बीच में नए नियम बना दिए जाते हैं। शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में भी कुछ ऐसा ही किया जा रहा है। कांग्रेस ने चुनाव के समय वचन कुछ और दिया था। सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने संकल्प कुछ और लिया और अब जब की भर्ती हो रही है तो नीतियां किसी साजिश का संकेत दे रही है।
क्या कोई माफिया है जिसके लिए ब्यूरोक्रेट्स काम कर रहे हैं
अब तक कोई जांच नहीं हुई है। ऐसा कोई खुलासा नहीं हुआ है। व्यापम घोटाले में सीबीआई से उम्मीद थी परंतु सीबीआई की जांच उन लोगों को भी निराश कर ली जिन्होंने सीबीआई जांच की मांग की थी लेकिन एक डाउट लगातार बना हुआ है। कहीं कोई तो रैकेट है, कोई तो माफिया है जो मध्यप्रदेश में पैदा होने वाले अवसरों का बाहरी राज्यों के उम्मीदवारों को लाभ दिलाता है। वरना ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी भी भर्ती परीक्षा में बाहरी उम्मीदवारों की संख्या उम्मीद से बहुत ज्यादा हो।