दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम के आने पूर्व ही लगभग सभी को आप पार्टी के ऐसे ही ऐतिहासिक परिणाम लाने की उम्मीद थी जो आज साकार भी हुआ है। इस जीत का श्रेय विद्वान विश्लेषक मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल की नीतियों को देगे जिसके वे हकदार भी है। लेकिन आप की इस ऐतिहासिक जीत की मुख्य सूत्रधार या तुरुप का एक्का कहे तो वह थी आप सरकार की सरकारी शिक्षा नीति में अकल्पनीय परिवर्तन करना।
आज से चार पांच वर्ष पहले तक दिल्ली में दैनिक मजदूरी करने वाला व्यक्ति भी अपने बच्चो को किसी अच्छे निजी स्कूल में पढ़ाने के लिए मशक्कत करता था यदि उसे सफलता नही मिलती थी तभी वह मजबूरी में सरकारी स्कूलों की तरफ जाता था। मेने दिल्ली को बहुत करीब से देखा है इसलिए यह कह सकता हु कि दिल्ली के पांच वर्ष पूर्व के सरकारी स्कूलों में से 60% सरकारी स्कूलों के पास पर्याप्त जमीन व अन्य संशाधन थे शिक्षक थे किंतु शिक्षा व्यवस्था इस कदर लचर ओर दयनीय स्थिति में थी कि स्वयं दिल्लीवासियों ने भी शायद ही कभी यह स्वप्न में सोचा होगा कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों की सीरत बदलेगी ओर अरविंद केजरीवाल व शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया की जिद की वजह से दिल्ली प्रदेश के सरकारी स्कूल देश विदेश के राज्यो के लिए एक आदर्श रोल मॉडल बनेंगे।
पिछले विधानसभा में बम्पर बहुमत पाने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ओर शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया ने सबसे पहले ओर सबसे बड़ी सर्जरी दिल्ली की लचर दयनीय सरकारी शिक्षा को सुधारने की थी। पूर्व के उन्ही सारे संसाधनों व शिक्षको का ईमानदारी से प्रयोग कर अपने पछले शासनकाल के दूसरे वर्ष में ही केजरीवाल ऐंड टीम ने सरकारी शिक्षा के नए ढाचे व व्यवस्था को इस कदर खड़ा किया कि दिल्ली के पाश इलाको में रहने वाले तो ठीक नार्थ ब्लाक साउथ ब्लॉक व रायसीना हिल्स पर काम करने वाले अधिकारी कर्मचारी भी दिल्ली की सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था से प्रभावित होकर अपने बच्चो को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने की कल्पना करने लगे।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल & टीम ने दिल्ली की सरकारी शिक्षा में जो ऐतिहासिक सुधार किया है उसी का यह परिणाम है कि आज दिल्ली के लोग निजी स्कूलों में एडमिशन के लिए नही बल्कि सरकारी स्कूलों में अपने बच्चो के एडमिशन के लिए कतार में खड़े रहते है या रिकमेंड लगवाते है। दिल्ली में निजी स्कूलों पर नकेल कसकर केजरीवाल सरकार ने उनकी हालत यह कर दी है वह अब निजी स्कूल के लोग पालकों के दर पर खड़े रहकर बच्चो को अपने स्कूल से जोड़ने की विनती करते देखे जा सकते है। सरकारी शिक्षा में सुधार के केजरीवाल के करिश्मे का लोहा देशभर की जनता और राज्य की सरकारों में बैठे लोगों ने भी माना है और तो ओर विदेश के लोगो ने भी केजरीवाल के इस जादू को देखकर अपने यहां यह जादू चलाने का गुर सीखकर गए है।
राजनीति दृष्टि से विश्लेषण करेंगे तो केजरीवाल की दूसरी महाविजय का अधिकांश श्रेय फ्री की बिजली, पानी आदि अन्य योजनाओं को माना जायेगा वह है भी लेकिन यदि केजरीवाल मुफ्त की योजना नही भी लागू करते तो भी सरकारी शिक्षा के बूते ही केजरीवाल को इस विधानसभा मे दिल्लीवासी पूर्ण बहुमत देते क्योंकि दिल्ली के सभी धर्म व अमीर गरीब वर्ग के लोगो की एक ही चाहत थी कि उनके बच्चो को आने वाली पीढ़ी को दिल्ली सरकार की सरकारी शिक्षा अनवरत मिलती रहे क्योंकि आज से पाँच साल पहले तक दिल्लीवासियों की मासिक आय का 50 % के लगभग अपने बच्चो की निजी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर खर्च हो जाता था। आज दिल्लीवासी दिल्ली सरकार की शिक्षा नीति से बेहद खुश है क्योंकि उनकी आमदनी की आधी कमाई अब बच्चो के भविष्य के रूप में उनके पास बचने लगी है। प्राइवेट स्कूलों की मोनोपॉली पर लगाम लगा दिया गया है फीस निर्धारण सरकार द्वारा तय किये गए पैमाने के अनुसार होता है ओर फिर केजरीवाल सरकार ने राज्य की सरकारी शिक्षा व्यवस्था को ही इतना बेहतर ओर गुणवत्तायुक्त कर दिया है कि उनकी चकाचोंध के आगे निजी स्कूलों की रौनक भी दिल्लीवासियों को फीकी लगने लगी है।
विडम्बना कहे या राजनीति की मजबूरी कहे इसे देश की किसी भी राज्य सरकार ने या किसी भी राजनीतिक दल ने अरविंद केजरीवाल की सरकारी शिक्षा के सुधार को न तो अपने यहा अपनाया और न खुले दिल से इसकी तारीफ की है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाए तो ठीक होगा कि देश की कई राज्य सरकारे अपनी राजनीति मजबूरी के चलते केजरीवाल की अंतराष्ट्रीय स्तर पर रोल मॉडल बनी दिल्ली सरकार की सरकारी शिक्षा सुधार को अपने यहां लागू नही किया बल्कि राज्य सरकारों ने शिक्षा सुधार हेतू विदेश जाकर वहा पर सरकार के करोड़ो रूपये खर्च कर शिक्षा सुधार टिप्स ढूढने हेतू अपने शैक्षणिक अमले को खूब विदेशी सैर करवा शिक्षा की गुणवत्ता की खोज की है उसके बाद भी शिक्षा में गुणवत्ता का नतीजा सिफर ही रह रहा है। क्योंकि देश की राज्य सरकारो के मुखियाओ ओर उनकी टीम ने अपने अपने राज्यो की सरकारी शिक्षा को सुधारने का कभी जिम्मेदारी से ईमानदारीपूर्वक प्रयास किया ही नही है।
आज दिल्ली को छोड़कर देश के अमूमन सभी राज्यो में सरकारी शिक्षा कि दयनिता का सबसे प्रमुख कारण राज्यो की सरकारों में ऐसे लोगो के हाथों में शिक्षा व्यवस्था की कमान सोप रखी है जिनका शिक्षा से कभी कोई दूर दूर तक का वास्ता रहा ही नही है। ऐसे लोग शिक्षा की नीतिया बनाते है जिन्होंने कभी स्कुलो मे अध्यापन करवाया ही नही है जिनको स्कूल व्यवस्था का कोई ज्ञान ही नही है ओर तो ओर कुछ शैक्षणिक अमले के जो लोग जो ऊपरी स्तर पर जिम्मेदार पदों पर बैठे है उन लोगो ने अपने पूरे शैक्षणिक सेवाकाल में एक पैकेट चाक ब्लेक बोर्ड पर खत्म नही किया है उन्हें तो शायद यह भी पता नही कि एक पैकेट में कितने चाक आते है। ऐसे लोगो के हाथों में राज्यो की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की जिमनेदारी यदि राज्य सरकारे देगी तो कहा से शिक्षा में गुणवत्ता आएगी चाहे राज्य सरकारे शिक्षा सुधार के नाम पर कितने भी विदेशी दौरे करवा लें चाहे तो सम्पूर्ण ब्रमांड का दौरा भी करवा दे अपने शिक्षा सुधार अमले के प्रमुखों को कभी भी शिक्षा में गुणवत्ता नही आएगी। ऐसे अधिकारी लोग सिर्फ एक शिक्षक को ही गुणवत्ता के नाम पर बलि का बकरा बनाकर इतिश्री करते आये है और ऐसे ही शिक्षको की बलि चढ़ाते रहेंगे। जबकि दिल्ली राज्य में शिक्षा व्यवस्था इन सबके उलट है किसी भी स्कूल में किसी भी प्रकार की कमी के लिए जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को नापते है शिक्षक तो आखरी में अपनी खुद की लापरवाही से नपता है।
निसन्देश अरविंद केजरीवाल की मेहनत का फल उन्हें इस विधानसभा मे दिल्लीवासियों ने दिल खोलकर दिया है। तीसरी बार दिल्ली की कमान संभालने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम को बधाई और शुभकामनाये। अंत मे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से एक शिक्षक होने के नाते यही कहना चाहूंगा चाहे जो भी राजनीतिक नफे लाभ हानि की परिस्थियों रहे दिल्ली की सरकारी शिक्षा का स्तर आप ओर आपकी सरकार कभी कम मत होने देना। क्योंकि शिक्षा ही किसी देश या राज्य की सम्प्पनता ओर प्रगति का मुख्य आईना होती है आप इस आईने की चमक को सदैव बरकरार रखियेगा।
अरविंद रावल
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