प्रवेश सिंह भदोरिया। जब समाज के दो समूह चाहे वह कोई भी हो और किसी भी कारण से विवाद के लिए उपस्थित हो जाती है तो सरकारें बीच में आती है। सरकारों का मंत्रिमंडल जनता को समझाने का काम करता है परंतु आप तो हालात बेहद गंभीर है। यहां तो सरकारें ही लड़ रही है। इन्हें समझाने कौन आएगा। जी हां, संदर्भ नागरिकता संशोधन कारण ही है।
सरकार के समर्थकों ने ही जहर उगलना शुरू कर दिया था
आखिर ऐसा क्यों हुआ जो देश के नागरिकों को सड़क पर बैठना पड़ रहा है? आखिर ऐसा क्या हुआ जो पूरी सड़क को महीने भर के लिए बंद कर दिया गया? इसमें किसकी गलती है? संसद ने जब देश में नागरिकता संशोधन बिल को मंजूरी दी तब लोगों के अंदर असम के एनआरसी से जन्मा रोष और डर दोनों खुलकर सामने आ गये। असल में इसमें चूक राजनीतिक और सामाजिक दोनों रुप में सत्ता पक्ष से हुई है क्योंकि जब सदन ने नागरिकता बिल को कानून के रुप में मंजूरी दी थी तब सरकार के समर्थक लोगों ने, जिसमें जाने-माने चेहरे भी थे, एक धर्म विशेष या सीधे बोले तो मुस्लिम वर्ग के लिए जहर उगलना शुरू कर दिया था।
एससी-एसटी एक्ट मामले में भी ऐसा ही हुआ था
ऐसा ही अप्रैल 2018 में हुआ था जब एससी-एसटी एक्ट को संशोधित किया था। लेकिन तब की "आग से जली हुई" सरकार ने कोई सबक नहीं लिया और फिर एक बार उसी तरह से राष्ट्र को आग में झोंकने का काम किया गया।
लोगों को समझना सरकार की जिम्मेदारी है
एक बार चुनने के बाद सरकार और उसके मंत्रीगण किसी राजनीतिक दल के नहीं रह जाते हैं और उनकी जवाबदेही और जिम्मेदारी प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान रहती है। किसी को कोई बात समझ नहीं आई तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वो बात सरल शब्दों में समझायी जाये। मुंह मोड़ना किसी समस्या का "क्षणिक समाधान" हो सकता है लेकिन "स्थायी" नहीं।
मुख्यमंत्री भी व्यवस्था का अंग होते हैं, वो पार्टी के नेता नहीं होते
लेकिन इसमें पूरी गलती सत्ता पक्ष की नहीं है। विपक्ष की भी सामाजिक सौहार्द बनाने में भूमिका होती है। हर बार सरकार के हर फैसले के खिलाफ जहर उगलना जरुरी नहीं होता है। संसद द्वारा पारित ऐसे कानून जो संविधान में "संघ सूची" में है उसे प्रत्येक राज्य को मानना ही पड़ता है। यही तो लोकतंत्र है जिसमें प्रत्येक राज्यों से आने वाले सांसदों द्वारा बिल को कानून के रुप में अंगीकृत किया जाता है।
जो खाई मुगल और अंग्रेज नहीं बना पाए वो बनती नजर आ रही है
अंततः सरकार को सभी वर्गों के साथ बैठकर बातचीत कर इस समस्या का समाधान निकालना ही होगा वरना समाज में जितनी खाई मुगल और अंग्रेज नहीं बना पाते उससे ज्यादा खाई अगले कुछ वर्षों में बन जायेगी जिसे पाटना भविष्य की पीढ़ी के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा।