जबलपुर। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग एवं अन्य भर्तियों में पिछड़ा वर्ग को दी गई 27% आरक्षण की सुविधा का लाभ नहीं लिया जा सकेगा। हाई कोर्ट में इसके खिलाफ जारी स्टे आर्डर के विरुद्ध कमलनाथ सरकार ने पिटिशन फाइल की थी परंतु हाई कोर्ट ने सरकार को किसी भी तरह की राहत देने से इंकार कर दिया है। पिछड़ा वर्ग के 27% आरक्षण पर स्थगन आदेश जारी रहेगा। चीफ जस्टिस एके मित्तल व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने सरकार की गुहार ठुकराते हुए मामले पर अंतिम सुनवाई करने का निर्देश दे दिया। अगली सुनवाई 27 फरवरी को होगी।
ये है मामला
जबलपुर की छात्रा आकांक्षा दुबे सहित अन्य ने याचिका में राज्य सरकार के 8 मार्च 2019 को जारी संशोधन अध्यादेश को चुनौती दी है। इसमें उन्होंने कहा कि संशोधन के कारण ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसद करने पर आरक्षण का कुल प्रतिशत 50 से बढक़र 63 हो गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं किया जा सकता। अन्य याचिका में कहा गया कि MPPSC ने नवंबर 2019 में 450 शासकीय पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया में 27 प्रतिशत पद पिछड़ा वर्ग हेतु आरक्षित किए थे।
वहीं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को दिए जा रहे 10 फीसद आरक्षण से एससी, एसटी व ओबीसी को वंचित रखे जाने व मप्र हाईकोर्ट की नियुक्तियों में बढ़ा हुआ ओबीसी आरक्षण न लागू करने के खिलाफ भी याचिकाएं दायर की गई हैं।
बुधवार को महाधिवक्ता शशांक शेखर के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने भी आदेश वापस लेने का आग्रह किया। सरकार की ओर से उपमहाधिवक्ता प्रवीण दुबे, शासकीय अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा ने भी पक्ष रखा। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी, सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता, जानवी पंडित, रामेश्वर पी सिंह ने पैरवी की।