Supreme Court upholds the constitutional validity of SC/ST (Prevention of Atrocities) Amendment Act, 2018 that ruled out any provision for anticipatory bail for a person accused of atrocities against SC/STs.
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा बनाए गए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून 2018 को निरस्त कर रहे हैं या उसमें किसी भी प्रकार का संशोधन करने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है। एट्रोसिटी एक्ट 2018 के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी गई परंतु सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस के विवेक पर छोड़ दिया कि वह इस मामले में FIR दर्ज करने के बाद जांच करें या फिर जांच करने के बाद FIR दर्ज करें।
FIR दर्ज हुई तो गिरफ्तारी होगी, अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी
जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस रविंद्र भट की पीठ ने आज फैसला सुनाया। पिछले साल अक्टूबर में, पीठ ने संकेत दिया था कि यह तत्काल गिरफ्तारी और अग्रिम जमानत पर रोक लगाने के लिए एससी / एसटी अधिनियम में केंद्र द्वारा किए गए संशोधनों को बरकरार रखेगा। कोर्ट ने इस दौरान कहा था,'हम किसी भी प्रावधान को कम नहीं कर रहे हैं। इन प्रावधानों को कम नहीं किया जाएगा।
पुलिस को शिकायत झूठी लगती है तो वह FIR से पहले जांच कर सकती है
कानून वैसा ही होना चाहिए जैसा वह था। उन्हें छोड़ दिया जाएगा क्योंकि यह समीक्षा याचिका और अधिनियम में संशोधनों पर निर्णय से पहले था।' अदालत ने इस दौरान यह भी कहा था कि यह भी स्पष्ट किया जाएगा कि एससी / एसटी कानून के तहत किसी भी शिकायत पर कोई कार्रवाई करने से पहले पुलिस प्राथमिक जांच कर सकती है। अगर प्रथम दृष्टया में उसे शिकायतें झूठी लगती हैं।
SC-ST ACT (एट्रोसिटी एक्ट) मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया था
दरअसल, एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के जरिए शिकायत मिलने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान फिर से जोड़ा गया था। कोर्ट में दायर याचिका में इस संशोधन को अवैध करार देने की मांग की गई थी। क्योंकि, मार्च 2018 में कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने वाला फैसला दिया था। कोर्ट ने कहा था कि कानून के दुरुपयोग के बढ़ते मामलों के मद्देनजर शिकायतों की शुरुआती जांच के बाद ही पुलिस को कोई कदम उठाना चाहिए। इस फैसले के व्यापक विरोध के चलते सरकार को कानून में बदलाव कर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान दोबारा जोड़ना पड़ा था। सरकार की दलील है कि अनुसूचित जातियों के लोग अब भी सामाजिक रूप से कमजोर स्थिति में हैं। उनके लिए विशेष कानून जरूरी है।