नई दिल्ली। न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ हाल ही में अमेरिकी सरकार ने जो रिपोर्ट साझी की है,अत्यंत गंभीर है। उस रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना महामारी डेढ़ साल तक चल सकती है। हालांकि कुछ भी निश्चित तौर पर कहना मुश्किल है, कोविड-19 प्रसार की दुनिया भर में अनेक तरंगें उठ सकती हैं। भविष्यवाणियां अस्पष्ट हैं, फिर भी वे सतर्कता और समझदारी की मांग तो करती ही हैं। यह समझदारी केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों के लिए भी हमें हमें प्रदर्शित करना है। इस महामारी के संक्रमण से खुद को फिर अपने आसपास को सुरक्षित रखना है। भूमंडलीकरण अर्थात ग्लोबलाइजेशन अब एक ऐसे काल से गुजर रहा है, जो इस महामारी कोविड-19 के साथ समूची दुनिया में आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक ढांचों को उलट-पुलट देगा । इस परिवर्तन में अनेक बुनियादी कारक भी उभरेंगे। ऐसे में, हमको विशेष कर भारतीयों को सूझ-बूझ के साथ आने वाले समय के लिए खुद को ढालना होगा।
चिकित्सकों की माने तो अधिकांश लोगों में कोविड-19 के लक्षण साधारण फ्लू की तरह ही हैं , केवल लक्षणों के आधार पर इस रोग को फ्लू से अलग नहीं किया जा सकता। इसके लिए विशिष्ट जांच की आवश्यकता होगी । भारत में गंभीर रूप से संक्रमित रोगियों की आबादी भी बहुत बड़ी हो सकती है। देश में, जहां उचित स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से ही सबको उपलब्ध नहीं हैं, वहां इस रोग की मार दोहरी दिखाई दे रही है । सीमित संसाधनों वाले इस देश में रोकथाम का महत्व, उपचार से बहुत-बहुत बड़ा होता जा रहा है, विशेषकर तब, जब इस रोग के लिए कोई विशिष्ट एंटीवायरल दवा अब तक उपलब्ध हो न पाई हो।
यह एक संक्रामक रोग है और संक्रामक रोगों का फैलाव अपने साथ अनिश्चितता, भय और घृणा भी सह उत्पाद की तरह लाता है। समाज अपने ही वर्ग-विशेष या व्यक्ति-विशेष को बलि का बकरा चुन लेता है और उसे शाब्दिक-शारीरिक प्रताड़ना देने पर उतर आता है। यूरोप में ब्लैक डेथ (प्लेग महामारी) के समय का दुर्व्यवहार जैसी ही इसकी परिणति दिख रही है। भारत के बड़े वर्ग में जो प्रतिक्रियाएं उभरी हैं उन्हें चंद सवालों में कुछ इस तरह बाँधा जा सकता है।
जैसे पूरी दुनिया कोविड-19 से प्रभावित हो रही है, वहीं चीन में वुहान के अलावा यह क्यों कहीं नहीं फैला? चीन की राजधानी आखिर इससे अछूती कैसे रह गयी? प्रारंभिक अवस्था में चीन ने पूरी दुनिया से इस वायरस के बारे में क्यों छुपाया? कोरोना के प्रारंभिक सैंपल को नष्ट क्यों किया?इसे सामने लाने वाले डॉक्टर और पत्रकार को खामोश क्यों किया? पत्रकार को तो गायब ही कर दिया गया है?दुनिया के अन्य देशों ने जब चीन से सूचना साझा करने को कहा तो उसने सूचना साझा क्यों नहीं की मना क्यों किया? चीन को मालूम था कोरोना मानव से मानव में फैलता है, तो इस जानकारी को विश्व स्वास्थ्य सन्गठन से क्यों छिपाई गई ?
चीन की जानकारी पर विश्व स्वास्थ्य संगठन 11 जनवरी जनवरी तक यह ट्वीट क्यों करता रहा कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए कोई गाइडलाइन जारी करने की जरूरत नहीं है और यही एक कारण इसके वैश्विक फैलाव का बना।
इटली में तो 7 फरवरी तक यह मामूली बात थी। एकाएक चीनी 'हम चीनी हैं वायरस नहीं। हमें गले लगाइए।' प्लेकार्ड के साथ 'सिटी ऑफ लव' के नाम से मशहूर इटली के लोगों को गले लगाने चीन के लोग पहुंचे, लोगों के साथ यह सौगात पहुंची और नतीजा सब जानते हैं।
वुहान (चीन) से इस विषाणु ने फैलना आरंभ किया है, यह सत्य है। जंगली पशुओं के मांस के सेवन के कारण जूनोटिक विषाणु मनुष्य में प्रवेश पाकर फैलने लगा, इसके भी पर्याप्त प्रमाण हैं। लेकिन इंटरनेट पर कोरोना विषाणु से भी अधिक तेजी से फैलती षड्यंत्रकारी कटुता के कारण संसार के हरेक चीनी अथवा चीनी-सा दिखने वाले व्यक्ति के प्रति शाब्दिक व शारीरिक दुर्व्यवहार बढ़ता जा रहा है। षड्यंत्रकारी-सिद्धांतों का ध्येय भी यही होता है। वे समाधान नहीं बताते, वे रोकथाम की बात नहीं करते, बस बलि के लिए पशु की तलाश करते हैं या उन्हें दोष मढ़ने से ही सारी संतृप्ति मिल जाती है।
आज सोशल मीडिया पर तरह-तरह के इलाज और दवाएं भी सुझाई जाने लगी हैं। इनसे समस्या तो दूर नहीं होगी, लेकिन खतरे बढ़ सकते हैं। अभी अनेक एंटीवायरल व अन्य दवाओं पर दुनिया भर के डॉक्टर शोध में लगे हैं, किंतु अभी तक कुछ भी पुख्ता तौर पर वर्तमान कोरोना-विषाणु को रोकने के लिए उपलब्ध नहीं है। अनेक दवाओं के इस्तेमाल से कुछ आरंभिक सफलता चाहे हाथ लगी हो, किंतु यह काफी नहीं है। टीका-निर्माण करने वाली कंपनियों को भी अभी लंबी दूरी तय करनी है। जब ऐसे इलाज सुझाए जा रहे हों, तो उनसे दूर रहने के अलावा कई दूसरी सावधानियां भी बहुत जरूरी हैं। आप जानते ही है, मगर फिर दोहराता हूँ अगर अति-आवश्यक न हो, अपने घर से बाहर न निकले| आज हमें सामाजिक दूरी बनाते हुए सामाजिक सहृदयता का परिचय देना है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।