भोपाल। अंतत: एमपी नगर में गुरुदेव गुप्त तिराहे के पास खाली 200 करोड़ की जमीन के विवाद का निपटारा हो ही गया। भोपाल की विशेष न्यायलय ने इस जमीन पर दावा जताने वालों को 10 साल जेल की सजा सुनाई है। खुलासा हुआ है कि इस मामले का मास्टरमाइंड भोपाल कलेक्टर का चपरासी बाबूलाल सुनहरे था। उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। इस मामले में कोर्ट की महिला कर्मचारी रूपश्री जैन भी शामिल थीं। उन्हे 7 साल की सजा सुनाई गई है। सजा सुनाने के बाद सभी आरोपियों को हिरासत में लेकर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
किसे कितनी सजा मिली
शनिवार को विशेष न्यायाधीश संजीव पाण्डेय ने मास्टर माइंड बाबूलाल सुनहरे को उम्रकैद व 4 लाख जुर्माने की सजा सुनाई। आरोपी संजीव बिसारिया, उनकी मां माया बिसारिया और बहनों अमिता, अल्पना व प्रीति बिसारिया के अलावा शैलेंद्र जैन को दस साल की जेल और 3-3 लाख के जुर्माने की सजा सुनाई है। अदालत ने सावित्री बाई और अदालत में कर्मचारी रहीं रूपश्री जैन को 7-7 साल जेल और तीन लाख जुर्माना तथा मोहम्मद अनवर को पांच साल और एक लाख जुर्माने की सजा सुनाई। आरोपी रवींद्र बाथम को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।
कलेक्टोरेट में भृत्य था बाबूलाल
2003-2007 के बीच बाबूलाल सुनहरे कलेक्टोरेट में भृत्य यानी चपरासी था। इस दौरान उसने राजस्व भूमि के मामलों में फर्जी पट्टे तैयार किए और राजस्व विभाग की फर्जी नोटशीट तैयार कर करोड़ों की संपत्ति आरोपियों (सावित्री बाई, संजीव बिसारिया, उनकी मां माया बिसारिया, उनकी मां अमिता, अल्पना व प्रीति बिसारिया के अलावा शैलेंद्र जैन) के नाम करने में मदद की। बाबूलाल ने सरकारी जमीनों के फर्जी पट्टे तैयार कर नामांतरण कराने के लिए फर्जी दस्तावेज उपलब्ध कराए। आरोपियों ने अदालत में चल रहे सिविल के मामलों में कॉपिंग सेक्शन में पदस्थ कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जी दस्तावेज को असल के तौर पर फाइलों में लगवाकर उनकी सर्टिफाइड कॉपी निकलवा लीं। अदालत की सर्टिफाइड कॉपी को बाद में दूसरे केसों में असल दस्तावेजों के तौर पर पेश किया गया। अदालत में कर्मचारी रहीं रूपश्री जैन ने इस काम में उनका साथ दिया।
घोटाले का खुलासा तत्कालीन जिला जज रेणु शर्मा ने किया था
तत्कालीन जिला जज रेणु शर्मा के मुताबिक सिविल केसों में फर्जी दस्तावेज और पट्टे पेश कर सर्टिफाइड कॉपियां निकलवाने की बात सामने आई थी। उन्होंने ईओडब्ल्यू में शिकायत की। इस पर ईओडब्ल्यू ने केस दर्ज कर जांच की थी। इसमें राजस्व न्यायालय के कर्मचारी, सिविल कोर्ट के कर्मचारी और पक्षकारों के अधिवक्ता की भूमिका भी सामने आई थी।
उर्दू में था मूल दस्तावेज, इसी का फायदा उठाया गया
जिस खसरा नंबर पर फर्जीवाड़े का प्लान तैयार किया गया था उसका मूल दस्तावेज उर्दू में था। इसमें खसरा नंबर पर महकमा म्युनिसिपल बोर्ड दर्ज था। महिला ने अनुवाद करते समय मेंगूलाल लिख दिया था। सावित्री बाई ने जमीन पर अपना कब्जा यह कहते हुए पेश कर दिया था कि उसे मेंगूलाल की वसीयत से यह जमीन मिली है।