भोपाल। मध्यप्रदेश में दशकों पुरानी परंपरा है। होली के दिन कुछ ऐसी खबरों को अफवाह बनाकर उड़ाया जाता है जो सच नहीं होती लेकिन जिनका लोगों को इंतजार होता है। मध्यप्रदेश में ऐसी खबरों को होली बुलेटिन कहा जाता है। 2020 की होली पर कुछ अफवाह खबर बन गई। सोमवार को सुबह से शाम तक करीब 22 विधायकों ने इस्तीफे दे दिए। देखते ही देखते मुख्यमंत्री कमलनाथ की मजबूत सरकार अल्पमत में आ गई। कई दौर की मीटिंग के बाद भी कोई समाधान नहीं निकला। ज्योतिरादित्य सिंधिया देश की सबसे बड़ी खबर बन गए। अब हर कोई जानना चाहता है कि इसके बाद क्या होगा।
क्या मध्यप्रदेश में फिर से विधानसभा चुनाव होंगे
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और उनके गुट के विधायकों के विधानसभा सदस्यता से इस्तीफे के बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई है। ऐसे में अब मध्यप्रदेश की सियासत में 5 समीकरण बन रहे हैं। हर समीकरण में भाजपा को फायदा और कांग्रेस को नुकसान होता दिख रहा है। सबकी नजर विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति पर रहेगी। तकरीबन हर समीकरण में विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होगा। अगर बहुमत परीक्षण से पहले कमलनाथ इस्तीफा दे देते हैं तो फ्लोर टेस्ट की संभावना कम होगी। जो कुछ भी होगा लेकिन मध्यप्रदेश में फिर से विधानसभा चुनाव होने की संभावना कतई नहीं है। मध्यप्रदेश में सत्ता का परिवर्तन होगा। कुछ लोग इसे तख्तापलट कहेंगे, हालांकि यह तख्तापलट नहीं है। इन समीकरणों से जुड़े के सवालों के जवाब दिए संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने।
पहला समीकरण: यदि सभी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिए जाएं तब क्या होगा
मध्यप्रदेश के 2 विधायकों के निधन के बाद कुल सीटें = 228
इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के विधायक = 22
ये इस्तीफे स्पीकर ने मंजूर किए तो सदन में सीटें (228-22) = 206
इस स्थिति में बहुमत के लिए जरूरी = 104
भाजपा = 107 (बहुमत से 3 ज्यादा)
*कांग्रेस+ = 99 (बहुमत से 5 कम)
इस स्थिति में भाजपा फायदे में रहेगी। उसके पास बहुमत के लिए जरूरी 104 से 3 ज्यादा यानी 107 का आंकड़ा रहेगा। वह सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है।
*कांग्रेस के 92 विधायक हैं। सात विधायक निर्दलीय या दूसरी पार्टियों के हैं।
दूसरा समीकरण: यदि विधायकों के इस्तीफे स्वीकार नहीं किए गए और उपचुनाव हुए तब क्या होगा
भाजपा के पास 107 विधायक हैं। 4 निर्दलीय उसके समर्थन में आए तो भाजपा+ की संख्या 111 हो जाती है।
कांग्रेस विधायकों की छोड़ी 22 सीटों और 2 खाली सीटों को मिलाकर 24 सीटों पर उपचुनाव होने पर भाजपा को बहुमत के लिए 5 और सीटों की जरूरत होगी।
अगर निर्दलीयों ने भाजपा का साथ नहीं दिया तो उपचुनाव में पार्टी को 9 सीटें जीतनी होंगी।
वहीं, कांग्रेस को निर्दलियों के साथ रहने पर उपचुनाव में 17 और निर्दलियों के पाला बदलने पर 21 सीटें जीतनी होंगी।
तीसरा समीकरण: बसपा के 2 और सपा के 1 विधायक भी भाजपा के साथ आ जाएं तब क्या होगा
भाजपा के पास 107 विधायक हैं। 4 निर्दलीय, 2 बसपा और 1 सपा का विधायक भी साथ आ जाएं तो भाजपा+ की संख्या 114 हो जाती है।
उपचुनाव होने पर भाजपा को बहुमत के लिए सिर्फ 2 और सीटों की जरूरत होगी।
वहीं, कांग्रेस को निर्दलीय विधायकों का साथ मिलने पर 20 सीटों की जरूरत होगी। निर्दलीय विधायक अलग हो गए तो कांग्रेस को सभी 24 सीटें जीतनी होंगी।
चौथा समीकरण: कमलनाथ या कांग्रेस के पास अब क्या विकल्प है
मुख्यमंत्री कमलनाथ या कांग्रेस पार्टी के पास अब सिर्फ बदले की कार्रवाई करने का विकल्प बचा है। विधानसभा के सभापति इस्तीफा देने वाले सभी विधायकों को अयोग्य करार दे सकते हैं। ऐसी स्थिति में सब कुछ वैसा ही होगा जैसा ऊपर बता दिया गया है बस इतना परिवर्तन हो जाएगा कि अयोग्य करार दिए गए नेता दूसरी बार चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
पांचवां समीकरण: मध्यप्रदेश में क्या मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं
कांग्रेस पार्टी के यदि सभी विधायक एक साथ इस्तीफा दे दें तो मध्य प्रदेश में मध्यावधि चुनाव की संभावना बन जाएगी। इस स्थिति में राज्यपाल तय करेंगे कि मध्यावधि चुनाव कराने हैं या उपचुनाव। उपचुनाव होने की स्थिति में भाजपा फायदे में रहेगी और राज्यपाल उसे सरकार बनाने का मौका देंगे।
क्या स्पीकर इन विधायकों को अयोग्य करार दे सकते हैं?
स्पीकर इन विधायकों को बुलाकर पूछेंगे कि क्या ये इस्तीफे उन्होंने अपनी मर्जी से दिए हैं। अगर ऐसा है तो इस्तीफा स्वीकार करने के अलावा स्पीकर के पास कोई विकल्प नहीं रहेगा। हालांकि, कर्नाटक में विधानसभा अध्यक्ष ने विधायकों को करार दे दिया था और उन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा था।