भोपाल: आखिरकार मध्य प्रदेश में राजनीतिक भारी गहमागहमी के बीच आज मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफ़ा दे दिया। जैसा कि उम्मीद की जा रही थी कमलनाथ के मंजे हुए नेता के तौर पर फैसला करेंगे और उन्होंने किया भी वैसा ही, समझदारी दिखाते हुए कमलनाथ ने फ्लोर टेस्ट से पहले ही अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। ऐसा करके कमलनाथ में ना केवल राजनैतिक सूझबूझ दिखाई साथ ही अपने आत्मसम्मान को भी बचा लिया क्योंकि वे बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि यदि वे फ्लोर टेस्ट में जाते हैं तो उनके पास में जरूरी आंकड़े नहीं है और उनकी सरकार गिर जाएगी।
आज फ्लोर टेस्ट से पहले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करना इस बात का साफ इशारा था कि कमलनाथ फ्लोर टेस्ट के लिए शायद ही जायेंगे और उसके पहले ही अपना इस्तीफा सौंप देंगे। तमाम अटकलों के बीच हुआ भी वैसा ही अपनी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अपनी 15 महीनों की सरकार को शिवराज सिंह चौहान की 15 साल की सरकार से बेहतर बताया। पिछले 15 महीने जहां अपनी सरकार में उन्होंने छिंदवाड़ा मॉडल की चर्चा पूरे प्रदेश भर में की वहीं उन पर यह आरोप भी लगते रहे कि वे केवल छिंदवाड़ा के मुख्यमंत्री हैं पूरे प्रदेश पर उनकी नजर नहीं है।
इतना ही नहीं राजनीतिक गलियारों में कमलनाथ की छवि जहां एक ओर मिस्टर मैनेजमेंट के तौर पर जानी जाती थी उस पर भी सवालिया निशान खड़ा हो गया। कमलनाथ की सरकार पर बीजेपी लगातार यह आरोप लगाती थी कि यह एक अल्पमत की सरकार है, ज्यादा दिन नहीं चल सकेगी। इसके बावजूद लोगों में यह विश्वास था कि 'कमलनाथ है तो मुमकिन है' यह सरकार जरूर 5 साल पूरे करेगी लेकिन कमलनाथ की मैनेजमेंट गुरु की छवि यहां पर धूमिल हो गई और 15 महीने में ही सरकार धराशाई हो गई।
राजनीतिक में मिस्टर मैनेजमेंट के तौर पर पहचान रखने वाले कमलनाथ की सरकार पर बीजेपी लगातार यह आरोप लगाती थी कि यह एक अल्पमत की सरकार है इसके बावजूद सत्ता के गलियारों में यह विश्वास जताया जा रहा था कि 'कमलनाथ है तो मुमकिन है' यह सरकार जरूर 5 साल पूरे करेगी लेकिन कमलनाथ की मैनेजमेंट गुरु की छवि यहां पर धूमिल हो गई और 15 महीने में ही सरकार धराशाई हो गई।
आज के बाद कल भी आता है और कल के बाद परसों भी आता है
जाते-जाते कमलनाथ यह भी कह गए कि आज के बाद कल भी आता है और कल के बाद परसों भी आता है यानी आप अब परसों का इंतजार कीजिए उनकी इस एक बात का क्या मतलब है? अब मध्य प्रदेश की राजनीति के जानकार खोजने में जुटे हैं। उनकी इस बात का सीधा सीधा मतलब मध्यप्रदेश में संभावित उपचुनाव की ओर इशारा करता है जहां कमलनाथ को शायद यह उम्मीद है कि वे फिर से सत्ता में वापसी करेंगे।आज फ्लोर टेस्ट से पहले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करना इस बात का साफ इशारा था कि कमलनाथ फ्लोर टेस्ट के लिए शायद ही जायेंगे और उसके पहले ही अपना इस्तीफा सौंप देंगे। तमाम अटकलों के बीच हुआ भी वैसा ही अपनी इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अपनी 15 महीनों की सरकार को शिवराज सिंह चौहान की 15 साल की सरकार से बेहतर बताया। पिछले 15 महीने जहां अपनी सरकार में उन्होंने छिंदवाड़ा मॉडल की चर्चा पूरे प्रदेश भर में की वहीं उन पर यह आरोप भी लगते रहे कि वे केवल छिंदवाड़ा के मुख्यमंत्री हैं पूरे प्रदेश पर उनकी नजर नहीं है।
भाजपा को 15 साल मिले। मुझे 15 महीने मिले।
कमलनाथ ने कहा कि मेरे 40 साल के राजनीतिक जीवन में मैंने हमेशा विकास में विश्वास रखा है। भाजपा को 15 साल मिले। मुझे 15 महीने मिले। ढाई महीने लोकसभा चुनाव और आचार संहिता में गए। प्रदेश का हर नागरिक गवाह है कि भाजपा को प्रदेशहित में किए गए मेरे काम रास नहीं आए। आज हमारे 22 विधायकों को प्रलोभन देकर बंधक बनाने का काम किया है। करोड़ों रुपए खर्चकर प्रलोभन का खेल खेला गया। आज पूरा प्रदेश इसका गवाह है।इतना ही नहीं राजनीतिक गलियारों में कमलनाथ की छवि जहां एक ओर मिस्टर मैनेजमेंट के तौर पर जानी जाती थी उस पर भी सवालिया निशान खड़ा हो गया। कमलनाथ की सरकार पर बीजेपी लगातार यह आरोप लगाती थी कि यह एक अल्पमत की सरकार है, ज्यादा दिन नहीं चल सकेगी। इसके बावजूद लोगों में यह विश्वास था कि 'कमलनाथ है तो मुमकिन है' यह सरकार जरूर 5 साल पूरे करेगी लेकिन कमलनाथ की मैनेजमेंट गुरु की छवि यहां पर धूमिल हो गई और 15 महीने में ही सरकार धराशाई हो गई।
छिंदवाड़ा की जनता का दिल टूटा
मध्य प्रदेश के इस राजनीतिक घटनाक्रम और कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद छिंदवाड़ा की जनता का दिल जरूर टूटा है, छिंदवाड़ा की जनता जहां एक और कमलनाथ पर गर्व करती थी वही मुख्यमंत्री के तौर पर कमलनाथ के इस्तीफे के बाद छिंदवाड़ा की जनता की भावनाओं को ठेस लगी है।राजनीतिक में मिस्टर मैनेजमेंट के तौर पर पहचान रखने वाले कमलनाथ की सरकार पर बीजेपी लगातार यह आरोप लगाती थी कि यह एक अल्पमत की सरकार है इसके बावजूद सत्ता के गलियारों में यह विश्वास जताया जा रहा था कि 'कमलनाथ है तो मुमकिन है' यह सरकार जरूर 5 साल पूरे करेगी लेकिन कमलनाथ की मैनेजमेंट गुरु की छवि यहां पर धूमिल हो गई और 15 महीने में ही सरकार धराशाई हो गई।