भोपाल। राजनीति मध्यप्रदेश की, होली पर हो गई। एक दल रंगीन तो एक दल रंगहीन हो गया। खरीद-फरोख्त, लानत-मलामत, इस्तीफों और मंत्रिमंडल से बाहर करने की चिठ्ठी के बीच सवाल यह खड़ा हुआ है कि जनता को क्या मिला? जिस जनमत को सर पर धारण करके कांग्रेस सत्ता में आई थी उसे कांग्रेस की गुटबाजी ने फुटबाल बना दिया। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी से निष्काषित कर सका वो भी इस्तीफे के बाद। विधायक जो जनता के प्रतिनिधि [विधान सभा में] थे वे जनता को बताये बगैर इस्तीफा सौंप, न जाने किस परितोषिक के लालच में चल पड़े। अगर इस्तीफे स्वीकार हो गये तो वे उस मतदान से वंचित होंगे जो राज्यसभा के लिए होना है और उनका मत का मूल्य जनमत पर आधारित है।
कमलनाथ सरकार हर दिन आर्थिक बदहाली का रोना रोती थी, जरा सोचिये विधानसभा की रिक्त हो रही सीटों पर होने वाले उप चुनाव का खर्च कहाँ से आएगा ? चूना तो राज्य के नागरिकों को ही लगेगा और वो भी बिना किसी कारण के। विधायक सांसद के रूप में शपथ लेते ही पेंशन की हकदारी पर विचार का समय आ गया है | ऐसे लोगों को पेंशन और अन्य सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए, जो स्तर की पूर्ण अवधि के बीच मात्र इन कारणों से इस्तीफा दे देते हैं कि उन्हें मंत्री नहीं बनाया जा रहा या मुख्यमंत्री और मंत्री उन्हें तव्वजों नहीं देते। इस बार ऐसे नेताओं की तादाद अधिक है। जनता को भी विचार करना चाहिए ऐसे रणछोड़ दासों को फिर से न चुने।राजनीतिक दलों को भी ऐसे लोगों को टिकट देने से परहेज बरतना चाहिए।
प्रदेश में सियासी घमासान के बीच कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह का बड़ा बयान आया है| लक्ष्मण सिंह ने कहा कि अब विपक्ष में बैठने की तैयारी करनी चाहिए. मजबूती के साथ लड़ेंगे और जनता की आवाज उठाएंगे. जनता से कहेंगे 5 साल का अवसर मिलना था लेकिन नहीं मिला, लेकिन एक बार फिर मौका दीजिये| लक्ष्मण सिंह भी दोनों दलों में ली का आस्वादन कर चुके हैं। दिग्विजय सिंह के ये लघु भ्राता इन दिनों अपनी ही सरकार के खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं। सर्वविदित है ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया| भला है वो चुनाव हारे हुए हैं, नहीं तो फिर एक और लोकसभा उप चुनाव प्रदेश की जनता को झेलना होता ।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद मध्य प्रदेश के छह मंत्रियों सहित 22 विधायकों ने विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है| इसके बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राज्यपाल को खत लिखकर छह मंत्रियों को हटाने के लिए कहा है। 22 उपचुनाव के खर्च में एक अच्छा अस्पताल, कालेज, और कुछ नहीं तो कुछ गावों को पीने का पानी तो उपलब्ध कराया ही जा सकता है।
वैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोमवार को ही कांग्रेस छोड़ दी थी जिसके साथ ही मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर संकट गहरा गया| कमलनाथ सरकार के अल्पमत में आ गई है। राज्य में कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं और उसे चार निर्दलीय, बसपा के दो और समाजवादी पार्टी के एक विधायक का समर्थन हासिल था| भाजपा के 107 विधायक हैं और अन्य दलों से समर्थन की जुगत बिठाई जा रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे त्यागपत्र में सिंधिया ने कहा, 'अपने राज्य और देश के लोगों की सेवा करना मेरा हमेशा से मकसद रहा है. मैं इस पार्टी में रहकर अब यह करने में अक्षम में हूं.' भाजपा में आकर वे सक्षम कैसे हो जायेंगे यह भी प्रश्न है। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने एक बयान में कहा, 'कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण सिंधिया को तत्काल प्रभाव से निष्कासित करने को स्वीकृति प्रदान की|" ऐसी स्वीकृति और अस्वीकृति का क्या मोल है? प्रश्न जनता द्वरा सौपी गई जिम्मेदारी के निर्वहन का है, जिसमें ये दल असफल हैं |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।