भोपाल। विधायकों के 22 इस्तीफेनुमा पत्र विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति की मेज पर हैं। सरकार क्या करे और कांग्रेस क्या करे सवाल पर मंथन जारी है, विधानसभा सचिवालय के वर्तमान और पूर्व अधिकारियों की पूछपरख जारी है। राज्यपाल के सचिवालय में भी कसमाकस का माहौल है। राज्य सरकार की सिफारिश और केंद्र के निर्देश के बीच महामहिम को रास्ता निकालना है। सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर कभी भी गुहार लग सकती है और विधानसभा सचिवालय, राज्यपाल सचिवालय के फैसले कसौटी पर आ सकते हैं। न्याय का सर्वमान्य सिद्धांत है, न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए। यह सरकार गिरेगी या संभलेगी, सवाल है। इतना अभी साफ है कि 22 विधायकों के इस्तीफे मंज़ूर हो जाने के बाद भी कमलनाथ सरकार खुद-ब-खुद नहीं गिर सकती।सरकार के गिरने के लिए ज़रूरी है कि कमलनाथ खुद इस्तीफा दें, या फ्लोर टेस्ट में वह बहुमत साबित करने में नाकाम रहें। इसके अलावा किसी महत्वपूर्ण विधेयक को सत्ता पक्ष पारित न करा सके।
विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति की भूमिका बेहद अहम हो गई है, क्योंकि अनुच्छेद 190 में इस्तीफों को मंज़ूरी देने या नहीं देने का अधिकार उनके पास ही है|कहने को विधानसभा सचिवालय को 22 विधायकों के इस्तीफेनुमा पत्र मिल चुके हैं, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष की इस बात में दम है कि वे “सभी विधायकों से व्यक्तिगत रूप से मिलने के बाद और तय प्रक्रिया के हिसाब से ही इस्तीफों पर फैसला लेंगे” सही बात है उन्हें इसका संवैधानिक अधिकार है और जब तक वे इस्तीफों पर फैसला न ले विधायकों की विधायकी बरकरार रहेगी”। विधानसभा अध्यक्ष ने नोटिस देकर बुलाया पर कुछ विधायक 13 मार्च को नहीं आयें।
अगर इस्तीफे स्वीकार नहीं होते हैं, तो बहुमत का आंकड़ा 228 सदस्यों के हिसाब से ही तय किया जाएगा, यानी बहुमत के लिए आवश्यक सदस्य संख्या ११५ ही रहेगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक विधानसभा अध्यक्ष को ७ दिन में फैसला लेना अनिवार्य है, सवाल यह है कि वे सात दिन विधायकों की अपने सामने कराई जाने वाली परेड से शुरू होंगे या इस्तीफे की तारीख से शुरू माने जाएंगे, यह तय करने का हक भी उन्ही को ही है।
सामान्य परिस्थितियों में भी स्वेच्छा से दिए गए इस्तीफे को लेकर विधानसभा अध्यक्ष का संतुष्ट होना ज़रूरी है| यदि अध्यक्ष को लगता है कि इस्तीफा दबाव डालकर दिलवाया गया है, तो वह प्रत्येक सदस्य से बात कर सकते हैं या प्रत्येक को अपने सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए भी कह सकते हैं। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इस्तीफों का ऊंट किस करवट बैठेगा।
महामिहम राज्यपाल की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण है। कांग्रेस खेमे में खबर है कि भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए कांग्रेस अपने शेष सभी सदस्यों से भी इस्तीफा दिलवा सकती है। ऐसी स्थिति में अनुच्छेद १८९ (२) कहता है - रिक्तता या अनुपस्थिति का असर, फैसले की संवैधानिकता पर नहीं पड़ेगा, अर्थात सामूहिक इस्तीफा सही विकल्प नहीं है।
इस्तीफों के फैसले के बाद सब महामहिम राज्यपाल पर निर्भर है कि वे सदन को भंग कर मध्यावधि चुनाव की सिफारिश करेंगे , या रिक्त सीटों पर उपचुनाव की सिफारिश करेंगे। अनुच्छेद 356 के तहत प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का फैसला हो रिक्त सीटों पर उपचुनाव करवाने की सिफारिश सारे खिलाडियों को खेलने का मजा आ जायेगा। उपचुनाव होने पर (बहुमत का आंकड़ा बढ़कर वापस ११६ हो जाएगा) भाजपा को सिर्फ दो सीटों पर जीतनाहोगा , जबकि कांग्रेस को सभी 24 सीटें जीतनी होंगी, जो बहुत आसान नहीं है।
विधानसभा के इस सत्र में १९ मार्च सबसे अहम दिन होगा, जब राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होगी, क्योंकि इस चर्चा के बाद ज़रूरी होने पर मतदान कराया जा सकता है। जो कांग्रेस और सरकार की ताकत का असली इम्तिहान होगा।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।