मध्यप्रदेश विधानसभा में शक्ति परीक्षण की घड़ी आ गई है | शक्ति परीक्षण के नतीजे लगभग सबको मालूम है,पर कोई भी आश्वस्त नहीं है कि यह प्रक्रिया होगी की नहीं |विधानसभा की कार्यसूची में केवल राज्यपाल के अभिभाषण और धन्यवाद ज्ञापन का जिक्र किया गया था। इससे राज्यपाल लालजी टंडन नाराज हो गये । कार्यसूची जारी होने के कुछ ही देर बाद उन्होंने मुख्यमंत्री कमलनाथ को खत लिख कर कमलनाथ को मिलने के लिए बुलाया । इसमें कहा गया था कि विश्वास मत के दौरान मतों का विभाजन हाथ उठाकर किया जाए। विधानसभा सचिवालय ने मत गणना करने वाली मशीन को खराब बताया था | राज्यपाल ने विधानसभा सचिव को इस कारण फटकार भी लगाई| देर रात हुई इस मुलाकात के बाद कमलनाथ ने कहा-वे फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हैं, पर फैसला विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति लेंगे। इससे पहले बेंगलुरु में बंधक बनाए गए विधायकों को रिहा किया जाए।
उधर जनता के चुने प्रतिनिधि अपने दलों में बंधकों की तरह यहाँ-वहां है | राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान भी ये किसी योजना के तहत ही सदन में लाये जाने के आसार दिख रहे हैं | वैसे भी राज्यपाल का अभिभाषण, सदन की कार्यवाही नहीं होती| सत्र प्रारम्भ का समारोह होता है |तब तो विधायक अपने दलों की योजना के अनुसार सदन में आते रहेंगे. जाते रहेंगे | सामान्य शिष्टाचार, इस अवसर पर पंचदश विधानसभा के लिए निर्वाचित सारे विधायकों के सदन में रहने की मांग करता है, पर ये शिष्टाचार कई जगह और मध्यप्रदेश विधानसभा के सदन में भी कई बार टूटा है |
देश का राजनीतिक माहौल करवट बदल रहा है | मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्यों को लेकर चल रहा घटनाक्रम, राजनीतिक दलों में प्रवेश, राज्यसभा चुनाव के दौरान कुछ अन्य राज्यों में एक दल के विधायकों के इस्तीफे, कुछ राज्यों में नई और पुरानी पीढ़ी के नेताओं की आपसी खींचतान के संघर्ष में बदलने का अंदेशा करवट बदलता तो ठीक था ऐसे बदलेगा इसका अंदेशा ही डरा रहा है | कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस सहित कुछ अन्य पार्टियों के युवा चेहरे भारतीय जनता पार्टी में दिखाई पडे़ं। कारण साफ़ है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के बुजुर्ग नेता संन्यास की उम्र में भी राजसत्ता का मोह पाले बैठे हैं। मैं या मेरा परिवार ही मध्यप्रदेश सरकार की इस दशा का एक प्रमुख कारण रहा है | कांग्रेस को दृष्टिपात करना चाहिए जिस दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया भोपाल थे, उसी दिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा आलाकमान पर दबाव बना रहे थे कि कुमारी शैलजा की जगह उनके पुत्र को राज्यसभा टिकट दिया जाए। वह सफल भी रहे। अब अगर भाजपा शैलजा को अपने पाले में लाने की कोशिश करे, तो आश्चर्य नहीं। वह पढ़ी-लिखी हैं और दलित परिवार से आती हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों में दलित नेतृत्व का अभाव है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने के बाद ऐसे कई सवाल हवा में मंडराने लगे हैं। कांग्रेस में युवा असंतुष्टों की तादाद अच्छी-खासी है।
समय का चक्र उल्टा घूमता दिखता है। १९६७ याद है, जब इंदिरा गांधी की अगुवाई में युवा नेता संगठित हो रहे थे, तब कांग्रेस निर्णायक तौर पर विभाजन का शिकार हुई थी। मोरारजी देसाई, निजलिंगप्पा, नीलम संजीव रेड्डी, के कामराज जैसे तमाम दिग्गज कांग्रेस (ओ) में थे। उसके सामने थी कांग्रेस(आई) अर्थात् कांग्रेस (इंदिरा)। नई कांग्रेस ने पुराने धुरंधरों को धूल चटा दी थी। दिल्ली से चली हवा राजस्थान महारष्ट्र का रुख कर रही है | गुजरात तो केंद्र में काबिज दल को राज्यसभा में मजबूत करने की ही जुगत में है |
तब इंदिरा जी पचास की थीं। आज राहुल ४९ के हैं। अंतर इतना है लोहा लेने की बजाय २०१९ की पराजय के बाद उन्होंने मैदान छोड़ दिया। उनके पलायन से कांग्रेस के अंदर पुराने बनाम नए का द्वंद्व तेजी से पनपा, और जिसमें पुरानों के हाथ लॉटरी लग गई। सच है राजनीति में सिद्धांत कहाँ होते है मै, मेरा भाई, मेरा बेटा फार्मूला बन गया, परिणति राजनीति के दो विपरीत किनारे मध्यप्रदेश में मिले | होना इसका उल्टा चाहिए था। उदहारण साफ है अशोक गहलोत दिल्ली में डेरा डाले थे, सचिन पायलट राजस्थान में तलवार भांज रहे थे। ज्योतिरादित्य मंदसौर में किसानों की लड़ाई लड़ रहे थे और कमलनाथ तब सिर्फ होने की रस्म निभा दिख रहे थे। इन दोनों के साथ जनता को उम्मीद थी कि पायलट और सिंधिया मुख्यमंत्री होंगे, पर जो हुआ, वह सबके सामने है। आगे जो होंगा, जल्दी सामने आएगा |
आज तो मध्यप्रदेश सरकार का सवाल है, महामिहम राज्यपाल द्वरा कल भेजा पत्र बहुत कुछ कहता है | राज्यपाल सदन में आयेंगे,अभिभाषण देंगे, सदन से विदा हो जायेंगे| जब तक अभिभाषण होता है आसंदी कोई व्यवस्था नहीं देती है | समारोह के बाद विधानसभा की कार्यवाही शुरू होगी और शक्ति परीक्षण के बाद जो स्थिति बनेगी , वो निर्णायक होगी | आदेश आसंदी का होगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।