निर्भया : ये फांसी, न्याय व्यवस्था और समाज के सवाल | EDITORIAL by Rakesh Dubey

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नई दिल्ली। देश को दहला देने वाले निर्भया मामले के सभी चार दोषी आज सुबह का सूरज नहीं देख पाएंगे को सुबह 5:30 पर वे फांसी के फंदे पर लटका दिए जायेंगे | भारत में न्याय और निर्णय की यह घड़ी आठ साल बाद बमुश्किल आई है | न्याय में देर के कारण इस घृणित अपराध का विकल्प हैदराबाद का एक ऐसे ही मामले का पुलिस एनकाउंटर भी समाज में दिखा | भारतीय समाज को यह दोनों मामले कुछ सीख देंगे क्या ?

भारत की राजधानी दिल्ली के वसंत विहार इलाके में 16 दिसंबर, 2012 की रात 23 साल की पैरामेडिकल छात्रा निर्भया के साथ चलती बस में बहुत ही बर्बर तरीके से सामूहिक दुष्कर्म हुआ था | घटना के बाद उसे बचाने की हर संभव कोशिश हुई, पर उसकी मौत हो गयी| इस मामले में दिल्ली पुलिस ने बस चालक सहित छह लोगों को गिरफ्तार किया था| जिनमें एक नाबालिग भी था, जिसे तीन साल तक सुधार गृह में रखने के बाद रिहा कर दिया गया, जबकि एक आरोपी राम सिंह ने जेल में खुदकुशी कर ली|

फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सितंबर, 2013 में इस मामले में चार आरोपियों पवन, अक्षय, विनय और मुकेश को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनायी| मार्च, 2014 में हाइकोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा| मई, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी. मई, 2017 में ही देश की सर्वोच्च अदालत ने जिस फैसले की पुष्टि कर दी, उसके गुनहगारों को कल तक सजा नहीं मिली, आज वो दिन बमुश्किल आया| वैसे फांसी की तारीख 22 जनवरी तय हुई थी, पर न्यायिक दांव-पेच के कारण यह टल गयी और आज जैसे –तैसे मामला अंतिम अंजाम तक पहुंचा है| कई बार निर्भया की मां अदालत में फूट-फूट कर रोई, उन्होंने कोर्ट से कहा था कि मेरे अधिकारों का क्या? मैं भी इंसान हूं, मुझे सात साल हो गये, मैं हाथ जोड़ कर न्याय की गुहार लगा रही हूं| सब जानते हैं यह वह घटना है, जो महीनों तक देशभर के मीडिया की सुर्खियों में रह| इसे लेकर कई शहरों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे| जन आक्रोश को देखते हुए तत्काल जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति बनायी गयी थी और ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए रेप कानूनों में बदलाव कर कड़ा किया गया था| दुष्कर्म के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किये जाने की व्यवस्था हुई थी |

मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में चला, सजा भी सुनाई गयी, लेकिन गुनहगारों को सजा नहीं मिल पायी | जेल नियमों के अनुसार एक ही अपराध के चारों दोषियों में से किसी को भी तब तक फांसी नहीं दी जा सकती, जब तक कि वे दया याचिका सहित सभी कानूनी विकल्प नहीं आजमा लेता| लिहाजा, सभी दोषी एक-एक कर अपने विकल्पों का इस्तेमाल कर व्यवस्था की कमजोरी का फायदा उठाते रहे |

इससे आम आदमी के जहन में पूरी कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गये यह स्थिति किसी भी भी तरह समाज के लिए अच्छी नहीं है| परिणाम, हैदराबाद के बहुचर्चित रेप कांड में पकड़े गये चारों अभियुक्तों का पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया| इस एनकाउंटर ने ‘तत्काल न्याय’ से पूरी न्याय प्रणाली पर देशव्यापी बहस छेड़ दी | मुठभेड़ की खबर लगते ही लोग घटनास्थल पर पहुंचे और कुछेक लोग पुलिस पर फूल बरसाते भी नजर आये| दोनों ही प्रणाली समाज के सामने आज प्रश्न चिन्ह हैं? ऐसी घटनाओं से हमारी पूरी न्याय व्यवस्था पर संकट उत्पन्न होने का खतरा है, लेकिन इस सवाल का जवाब भी देना जरूरी है कि क्या दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध की शिकार बेटी को तुरंत न्याय पाने का अधिकार नहीं है?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2014 में अदालतों ने दुष्कर्म के 27.4 प्रतिशत मामलों में फैसले सुनाये थे| 2017 में ऐसे मामलों में फैसला सुनाने में गति में मामूली तेज हुई और 31.8 प्रतिशत हो गयी, लेकिन अपराधी सबूत मिटाने की गरज से दुष्कर्म पीड़िता को जला देते हैंऐसे मामले बड़े | देश में इस भांति के कुल 574 मामलों में से 90 प्रतिशत अब भी अदालतों में लंबित हैं|

बड़ी संख्या में लोगों का हैदराबाद प्रणाली के पक्ष में झुकाव देखने को मिला यह सामाजिक व्यवस्था की विफलता का भी संकेत है| पूरे देश और समाज को यह चिंतन करना होगा कि न्याय प्रणाली को दुरुस्त कैसे किया जाए? खासकर ऐसे मामलों में |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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