नई दिल्ली। वैसे तो हम भारतीयों की यह आदत रही है कि संकट के समय एकजुट हो जाते हैं ।सचमुच यह समय एकजुटता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्वीकारने और उसके पीछे चलने का है। समूचे राष्ट्र को यह संकल्प होगा कि हम वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए दिशा-निदेशों का पालन करेंगे । ‘इस बार समाज रक्षा का तरीका पृथक है, समाज की रक्षा के लिए खुद को फौरी तौर पर समाज से अलग लेने का है। वैज्ञानिकों के बाद प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि घर से बाहर तभी निकलें, जब बहुत जरूरी हो। आज 22 मार्च ‘जनता कर्फ़्यू’ का दिन है, इसकी उद्देश्य पूर्ति में सरकार के कठोर कदम से ज्यादा हमारी जागरूकता जरूरी है।
आने वाले तीन हफ्ते घर से बाहर निकलने से पहले सोचें कि क्या घर से निकलना बेहद जरूरी है? घर में रहने के नाम पर अक्सर घबराहट फैलती है और लोग जमाखोरी करने में जुट जाते हैं। अमेरिका जैसे विकसित देश में यह देखा गया है कि वहां भी स्टोर के स्टोर खाली हो गए। ऐसी गैर-जिम्मेदाराना हरकतें न सिर्फ दहशत बढ़ाती हैं बल्कि गरीबो की सुलभता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। भारत में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो रोज कुआं खोद कर पानी पीते हैं। जरूरी है कि उनकी आवश्यकता का हर सामान दुकानों पर मौजूद रहे, न कि हमारे भंडार-गृहों में।जब होटल और रेस्टोरेंट बंद हैं, तो मान लीजिए कि आपको खाद्यान्न की कमी नहीं होगी | उसका ख्याल करें जिसके पास भंडार तो क्या सर छिपाने की जगह तक नहीं है | केंद्र और राज्य सरकारों ने भी इसके लिए मुकम्मल इंतजामात किये हैं। हमें उनके काम कठिन नहीं बनाना चाहिए। हमें मानना और जानना होगा कि कोई भी व्यवस्था जैसे चिकित्सकीय व्यवस्था इतनी पूर्ण नहीं होती है कि वह अनावश्यक बोझ सह सके। ऐसे में जब देश और दुनिया महामारी के शिकार लोगों की सेवा सुश्रुषा में लगी हो, तो उस व्यवस्था पर गैरजरूरी भार डालना अपराध होगा। हमें इससे बचने की जरूरत है।
शोध का अपना संसार और निष्कर्ष होते हैं |कुछ शोध बताते हैं कि यह महामारी साल से दो साल तक खिंच सकती है। इसकी वजह यह है कि अभी यह प्रसार की स्थिति में है। चीन, जहां यह थमती नजर आ रही है, वहां भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि इसका दोबारा आक्रमण नहीं होगा। महामारियों का इतिहास बताता है कि वे जा -जाकर लौटती हैं। जहां नहीं पहुंची होती हैं, वहां तब उनका हमला होता है, जब शुरुआती संक्रमण के शिकार देश उससे मुक्त हो रहे होते हैं। हमारे देश में यह कहकर भी कोरोना की गंभीरता को हलका करने के प्रयास किये जा रहे हैं कि गरमी के साथ यह वायरस मर जाएगा। यह ठीक है कि फ्लू के कुछ वायरस गरमी में नहीं पनपते हैं, पर कोरोना के साथ ऐसा ही होगा, ये कहना मुश्किल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैज्ञानिकों का मानना है कि भूमंडल के जिन हिस्सों में, 35 डिग्री के आसपास तापमान है, वहां भी इस वायरस ने अपना मारक असर दिखाया है।कुछ शोध पत्रों के अनुसार यह बीमारी अभी और पनपने वाली है, जिससे सुरक्षा के इंतजाम हर स्तर पर जरूरी हैं |
एक शोध में यह भी आशंका व्यक्त की गई है कि यह महामारी किसी भी विश्व युद्ध या पहले हुए प्राकृतिक प्रकोपों से ज्यादा व्यक्तियों को लील जाने वाली है। आश्चर्य नहीं कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पिछले दिनों अपनी एक पत्रकार-वार्ता में कहा कि वायरस की यह महामारी बहुत से लोगों का अपने प्रियजनों से विछोह करवा देगी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप जिस तरह अपनी समूची टीम के जवाब दिए वह भी अभूतपूर्व था। विश्व नेताओं का यह नया चेहरा अजनबी आशंकाओं को बल देता है। इसीलिए खुद की इच्छाओं पर संयम जरूरी है, क्योंकि इस वायरस के ग्रस्त कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपना नहीं बल्कि अपने संपर्क में आए तमाम लोगों को क्षति पहुंचाता है। अब तक आत्मघाती हमलावर ऐसा करते रहे हैं। उम्मीद है, आप उन मानवहन्ताओं की कतार में खुद को नहीं खड़ा करना चाहेंगे। फिर भारत तो सर्वे सन्तु निरामया का उपासक है | आज किसी के दुःख बांटने का समय नहीं है, आपके कारण किसी को दुःख न पहुंचे इस बात पर जोर देने का समय है | इस दुष्काल में अपने संयम का परिचय दीजिये, विनम्र अपील |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।