भोपाल। जिस बात का अंदेशा था वो ही होने लगा, बल्कि तेजी से होने लगा। विज्ञान की भाषा में यह क्रिया की प्रतिक्रिया है राजनीति वैसे भी नियमों से कहाँ चल रही है, इन दिनों। विज्ञान का यह नियम क्रिया और प्रतिक्रिया में समानता की बात करता है। राजनीति यह अनुपात कभी भी किसी नियम से नहीं बंधता। एक जमाने में यह अनुपात 1:2 होता था अब यह अनुपात 1:50 हो गया है। इस बिगड़ते अनुपात के कारण कभी सरकार “कमलनाथ सरकार” की संज्ञा पाती है तो कभी वह “शिवराज सरकार” हो जाती है। राग द्वेष न बरतने की कसम खाने वाले, यही सब करते हैं। दोष दर्शन और प्रतिशोध में समय बीतता जाता है। इस सब में ‘मध्यप्रदेश की सरकार” का लोप हो जाता है।
नई सरकार को पिछली सरकार के आने और जाने के समय अपनाई पद्धति को बदलना होगा। बहुत से काम जो 15 महीने पहले छूट गये थे, उन्हें पूरा करने में सरकार लगेगी तो कुछ बदलेगा। पिछली सरकार कोई प्रगति की कहानी लिखती उससे पहले वो किस्सा हो गई। आज सत्तारूढ़ सरकार के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं | आज राज्य की सामाजिक आर्थिक विकास की समीक्षा करने पर स्थिति स्पष्ट है कि प्रदेश मानव विकास के मानकों पर देश एवं समान परिस्थितियों वाले राज्यों की तुलना में पिछड़ रहा है। गरीबी उन्मूलन आकड़े और स्वास्थ्य सूचकांकों को राष्ट्रीय स्तर के समकक्ष लाना एक प्रमुख चुनौती है। सर्वेक्षण के अनुसार शिक्षा और पोषण के क्षेत्र मे भी राज्य की स्थिति बेहतर नहीं है। एक सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश में प्रति व्यक्ति आय देश एवं समान परिस्थिति वाले राज्यों की तुलना में कम है। मध्यप्रदेश को कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों की श्रेणी में रखा जाता है।
बीते वित्त वर्ष 2018-19 के प्रचलित मूल्य पर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 90 हजार नौ सौ 98 रूपए थी, जो देश की प्रति व्यक्ति आय एक लाख 26 हजार छह सौ 99 रूपयों का मात्र 71.8 प्रतिशत है। देश के प्रमुख राज्यों में बिहार, झारखंड, ओड़िसा और उत्तरप्रदेश को छोड़कर शेष राज्यों की प्रति व्यक्ति आय मध्यप्रदेश से अधिक है।कोई भी सरकार इस दिशा में काम नहीं करती। उसका अधिकांश समय अपने प्रतिद्वन्दी की आलोचना में जाता है।
एक अन्य सर्वेक्षण के मुताबिक देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्तियों का अनुपात 21.92 प्रतिशत है और मध्यप्रदेश में यह 31.65 प्रतिशत है। देश में उत्तरप्रदेश और बिहार राज्यों को छोड़कर मध्यप्रदेश में सर्वाधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे है, जिनकी संख्या दो करोड़ 34 लाख से अधिक है।
मध्यप्रदेश में केवल 30 प्रतिशत लोग खाना बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल करते हैं। राज्य में सिर्फ 23 प्रतिशत घरों में नल द्वारा पानी आता है।कृषि मजदूरी की दर 210 रूपए देश के अन्य राज्यों की तुलना में न्यूनतम है। मध्यप्रदेश में.मनरेगा में 8.25 लाख परिवार दर्ज हैं, जो व्यापक गरीबी का सूचक है।
मध्यप्रदेश में प्रति हजार जीवित जन्म पर शिशु मृत्यु दर 47 है, जो देश के अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर 33 प्रति हजार है।मध्यप्रदेश में मातृत्व मृत्यु दर प्रति एक लाख प्रसव पर 173 है, जो राष्ट्रीय दर 130 और अधिकतर राज्यों की तुलना में बहुत अधिक है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर 77 (वर्ष 2011 का आंकड़ा ) है, जो कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में असम को छोड़कर सर्वाधिक है। मध्यप्रदेश में 52.4 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से पीड़ित हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों के पद बड़ी संख्या में रिक्त हैं।
राजधानी भोपाल में राजनीतिक बदलाव के साथ ही दो नगर निगम गठन की संभावनाएं समाप्त हो गईं हैं। भोपाल मास्टर प्लान का ड्राफ्ट भी वापस होने के आसार दिख रहे हैं। नगरीय आवास एवं विकास विभाग दो निगम गठन की अधिसूचना वापस ले सकता है। इस हेतु जोर अजमाइश शुरू हो गई है। इसी से जुड़ा महपौर निर्वाचन भी है। इसके लिए नगरपालिक निगम अधिनियम में संशोधन करना होगा। दो निगम गठन की फाइल माह से राजभवन में विचाराधीन है और दूसरी हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई थी। लम्बे इंतजार के बाद भोपाल मास्टर प्लान का ड्राफ्ट जारी हुआ है। भाजपा समर्थित बिल्डर लॉबी मास्टर प्लान के इस ड्राफ्ट में बदलाव के लिए कमर कस रही है। सरकार काम करे पर नागरिकों को महसूस हो सरकार मध्यप्रदेश की है। विधान सभा में बहुमत से ज्यादा जरूरी “जनमत अर्थात जनता का विश्वास” है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।