नई दिल्ली। “सांडों की लड़ाई में बागड़ का सत्यनाश”,कोरोना तो बागड़ [बाउंड्री] तोडकर पूरी दुनिया में फ़ैल गया सबसे ज्यादा मानसिक कष्ट भारत के गरीब को हुआ है और आगे क्या होगा किसी को कुछ पता नहीं। भारत की सरकार सारी नहीं, बहुत सारी बातें कर रही है। इन बहुत सारी बातों मेंचीन के प्रति एक चुप्पी का रवैया भी है भारत का विरोध जितना मुखर होना चाहिए था वैसा नहीं है। सोशल मीडिया पर इस बात की मांग उठती है सरकार उसके जवाब में “रामायण” “महाभारत” को जनता की मांग बता देती है। बहुत सारी जानकारी यहाँ-वहाँ बिखरी-छितरी है उसी में से कुछ सरकार को नज्र है| गौर फरमाएं, भारत के उस गरीब की खातिर जो इन दिनों रोजी-रोटी महरूम है और इस कोरोना आंतक के चलते सडक पर आ गया है।
जैसे यूएस एडवोकेसी ग्रुप ‘फ्रीडम वाच’ और ‘बज फोटोज़’ ने चीन के विरुद्ध टेक्सास डिस्ट्रिक्ट कोर्ट 20 में ट्रिलियन डॉलर के हर्जाने का दावा ठोका है। अमेरिकी वकील लैरी क्लेमन ने चीन सरकार, चीनी आर्मी, वुहान इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी, उसके डायरेक्टर शी चेंगली, 54 साल की महिला बायोकेमिकल एक्सपर्ट मेजर जनरल चन वेई को कोरोना वायरस फैलाने का दोषी बताया है। आप भले ही यह कहें कि यह ट्रंप प्रशासन की शह पर हुआ है, अमेरिका क्या दुनिया की कोई भी अदालत बिना सुबूत के मुकदमा दर्ज नहीं करती। दूसरी तरफ एक चीनी अदालत में भी टेक्सास की तरह अमेरिका के विरुद्ध मुकदमा दायर करने की तैयारी चल रही है। इससे पहले चीन 13 अमेरिकी पत्रकारों को देश निकाले का आदेश दे चुका है।
देखिये उन खबरों को जो 18 मार्च, 2020 को वाल स्ट्रीट जर्नल, वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयार्क टाइम्स के इन 13 पत्रकारों को चीन से निकालने की घोषणा है | चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि इन्हें हांगकांग और मकाउ स्पेशल ज़ोन से भी काम करने की अनुमति नहीं होगी। इससे पहले फरवरी के आखि़र में अमेरिका, पांच चीनी पत्रकारों को ‘फॉरेन मिशन’ का आरोप चस्पां कर निकाल चुका था। यह सांडो की लड़ाई का एक हिस्सा है। वैसे भी ‘जर्नलिस्ट वीज़ा’ के बगैर विदेशी पत्रकारों को काम करने की अनुमति चीन में नहीं है। एक साल की अधिकतम अवधि वाले इस वीज़ा की हर साल चीन का विदेश मंत्रालय समीक्षा करता है, उस आधार पर उसे नवीनीकरण की अनुमति मिलती है। चीन इससे पहले 2019 में वाल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर चुन हान वोंग, 2015में फ्रेंच वीकली ल-ओब्स की पत्रकार ऊर्सला गोथियर और 2012 में अल ज़ज़ीरा की पत्रकार मेलिसा चन को देश से निकाल चुका है। ये निर्णय चीन की गोपनीयता की नीति के तहत होते हैं |
पिछले सप्ताह निकाले इन १३ पत्रकारों का कसूर यह है कि इन्होंने चीनी चक्षुरोग विशेषज्ञ डॉ. ली वेनलियांग के बारे में ख़बर छापी थी, कि डॉ. ली वेनलियांग कोरोना वायरस की चपेट में आने के कारण फरवरी के शुरू में मर गये थे। ३४ साल के डॉ. ली वेनलियांग को जनवरी, 2020 में स्थानीय शासन ने अफवाह फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। वायरस सार्स के चीन में फैलने की ख़बर दुनिया को बताने में टाइम मैगज़ीन की बड़ी भूमिका थी। तब भी एक चीनी डॉक्टर चियांग यांगयोंग व्हिसल-ब्लोवर के रूप में नमूदार हुए थे। टाइम मैगज़ीन की पेइचिंग स्थित संवाददाता सुज़न जैक्स को इसी कारण चीन से निकाला दिया गया था।
इस लड़ाई का एक आर्थिक पक्ष भी है। 2019 के वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम में चीन ने जानकारी दी थी कि उसकी अर्थव्यवस्था 22.37 ट्रिलियन डॉलर की है। हल ही में चीनी समाचारपत्र पीपुल्स डेली ने अपने संपादकीय में लिखा कि 2020 के शुरुआती दो महीनों में औद्योगिक आउटपुट वैल्यू 11.5 ट्रिलियन युआन की थी। यानी, चीनी की ‘स्थिति सामान्य हो रही है’। वैसे चीन के कुल निर्यात का 17.2 प्रतिशत यूरोपीय संघ को और 16.7 प्रतिशत अमेरिकी बाज़ारों को जाता है। चीन को भरोसा है कि कोरोना संकट के बाद आसियान देशों को 14.4 प्रतिशत निर्यात से वह रिकवर कर लेगा। एशिया में जापान और दक्षिण कोरिया के बाद भारत का नंबर चीनी निर्यात के बॉटम लाइन में है। बावज़ूद इसके, अमेरिका-चीन के बीच दुष्प्रचार युद्ध सीधा-सीधा उसके निर्यात को प्रभावित करेगा, इस आशंका को दुनिया का कोई भी अर्थशास्त्री ख़ारिज़ करने की स्थिति में नहीं है।
अब अमेरिका की बात। कनाडा और मैक्सिको के बाद, चीन अमेरिकी निर्यात का तीसरा बड़ा मार्केट है। 2019 के आखि़र तक अमेरिका और चीन 555.25 अरब डॉलर का व्यापार कर रहे थे। उसमें से अमेरिका 106.63 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट चीन को कर रहा था। इनमें सिविलियन एयरक्राफ्ट के पार्ट्स, कंप्यूटर चिप्स, सोयाबीन, माल ढुलाई वाले मोटरव्हीकल, मशीनरी पार्ट्स, सर्जरी के सामान और तेल शामिल हैं। ये अमेरिकी कंपनियां ट्रंप-शी के युद्ध में किसी नुकसान को क्यों झेलें? एक बड़ा प्रश्न है।
अब भारत की बात। इस बड़ी लड़ाई में शी ट्रम्प की भारत से दोस्ती और भारत का एक बड़ा बाज़ार है जो दोनों को दिखता दोनों हर कीमत पर भारत के बाज़ार और मानव शक्ति पर कब्जा करना चाहते हैं। भारत इतनी दोस्ती निभा रहा है कि जन जाने पर भी चुप है। भारत को डटकर बोलना चाहिए, और उन सब की खातिर बोलना चाहिए जो आज दरबदर है। अपने नुकसान की भरपाई की आवाज़ भी जोर से बुलंद करना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।