यह तो हम सभी जानते हैं कि पीला रंग दूर से दिखाई दे जाता है। इसीलिए स्कूल बस पीले रंग की होती है। टैक्सी पर भी पीला रंग होता है। सवाल यह है कि जब बहुत सारे एक्सीडेंट रेल की पटरियों पर भी होते हैं, तो फिर ट्रेन का रंग पीला क्यों नहीं होता। ट्रेन की बोगियों का रंग नीला लाल क्यों होता है। क्या दोनों तरह की बोगियों में कुछ और भी अंतर है। आइए जानते हैं:
ट्रेन के नीले और लाल डिब्बों का निर्माण कहां होता है
आपने ध्यान दिया होगा की ट्रेन के डिब्बों को रंग या तो नीला होता है या फिर लाल। नीले रंग के डिब्बों में हम सभी यात्रा करते है और दूसरे कोच लाल या सिल्वर रंग के होते है। आइए जानते हैं ट्रेन की बोगियों के रंग के पीछे क्या लॉजिक है। सरल जवाब यह है कि नीले रंग के कोच को इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में बनाया जाता है इसलिये इसे इंटीग्रल कोच के नाम से भी जाना जाता है। लाल और सिल्वर रंग के कोच को एलएचबी (Link Hoffman Bush) कहा जाता है।
ट्रेन के नीले और लाल डिब्बों में क्या अंतर होता है
एचएलबी कोच का उपयोग तेज गति के लिये किया जाता है जैसे शताब्दी एक्सप्रेस, गतिमान एक्सप्रेस और राजधानी एक्सप्रेस आदि। जिसकी सामान्य गति 160 किलोमीटर से 200 किलोमीटर/घंटा होती हैं। इसके विपरीत नीले रंग के कोच का उपयोग माध्यम गति की ट्रेनों में किया जाता हैं। जिसकी सामान्य गति 70 किलोमीटर से 140 किलोमीटर/घंटा होती हैं। इतनी गति में ये दोनो कोच आसानी से यात्रियो को मंजिल तक पहुंचा देते है।
ट्रेन के नीले और लाल डिब्बों में सबसे खास बात क्या है
एलएचबी कोच के डिब्बे आसानी से पटरी से नहीं उतरते और ये एल्युमिनियम तथा स्टेलनेस स्टील एंटी टेलीस्कोपिक सिस्टम के द्वारा बनाये जाते है। वही अगर आईसीएफ कोच के बारे में बात करे तो इसे बनाने में माइल्ड स्टील का प्रयोग किया जाता है। ये कोच बड़े झटके भी आसानी से झेल लेते है। जिसकी वजह से एक्सीडेंट कि आशा बहुत ही कम हो जाती है। जबकि एलएचबी कोच में डिब्बों को जल्दी रोकने के लिये डिस्क ब्रेक लगाये जाते है।
ट्रेन के नीले और लाल डिब्बों के पहियों क्या अंतर होता है
अगर कोच के व्हील के बारे में बात करे तो एलएचबी का व्हील आईसीएफ कोच से छोटा रखा गया हैं। इससे अधिक स्पीड पर ट्रेन को सुदृढ़ रख दुर्घटनाओ की संभाव्यता को अल्प किया जाता हैं। एलएचबे कोच को 5 लाख किलोमीटर चलने के बाद रिपेयर कि जरुरत होती है। जबकि आईसीएफ कोच में 2 से 4 लाख किलोमीटर चलने के बाद इनके रिपेयर की जरूरत होती हैं।
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