भोपाल। भारतीय वन सेवा के अधिकारी कैप्टन अनिल खरे पर आरोप है कि उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले की फाइल मंत्रालय के रिकॉर्ड से गायब कर दी। इस मामले में कैप्टन अनिल खरे संदिग्ध है। मामला प्रधान मुख्य वन संरक्षक अनिल श्रीवास्तव को आवंटित सरकारी मकान का किराया 5.50 लाख रुपए से घटाकर ₹72000 करने का है। कहा जा रहा है कि इस तरह का फैसला सिर्फ कैबिनेट द्वारा लिया जा सकता है लेकिन अनिल खरे ने फाइल पर साइन कर के आदेश जारी कर दिए। जब मामले में आपत्ति आई तो फाइल गायब हो गई। घटनाक्रम के समय अनिल खरे वन विभाग में सचिव थे।
भ्रष्टाचार की फाइल मंत्रालय से गायब, अनिल खरे से जवाब तलब
प्रधान मुख्य वनसंरक्षक अनिल श्रीवास्तव को मकान किराए में छूट देने की फाइल मंत्रालय से गायब हो गई है। करीब छह माह पहले वन विभाग के तत्कालीन सचिव कैप्टन अनिल खरे ने श्रीवास्तव को किराए में छूट देने का निर्णय लिया था। उनका किराया साढ़े पांच लाख से घटाकर 72 हजार रुपये कर दिया गया। इस फैसले के आधार पर आधा दर्जन से ज्यादा आईएफएस अफसरों ने मकान किराए में छूट की अर्जी (अपील) लगा दी है। इन मामलों में फैसला लेने के लिए वन सचिवालय के अफसरों ने फाइल तलाश की, तो पता चला कि तत्कालीन सचिव खरे ने फाइल मंगाई थी, जो लौटी ही नहीं। अब उनसे फाइल के विषय में पूछताछ की जा रही है। खरे वर्तमान में मप्र राज्य लघु वनोपज संघ में पदस्थ हैं।
मामला क्या है
वर्तमान में PCCF अनिल श्रीवास्तव का वर्ष 2008 में इंदौर से खंडवा तबादला हुआ था। वे वहां मुख्य वनसंरक्षक बनाए गए थे। तबादले के बाद 19 माह तक श्रीवास्तव ने इंदौर के नवरतनबाग स्थित सरकारी मकान नहीं छोड़ा। यह मामला वर्ष 2016 में तब खुला, जब इंदौर में व्हीके वर्मा वन संरक्षक पदस्थ हुए।
वर्मा ने बाजार दर से किराया वसूली का नोटिस श्रीवास्तव को थमा दिया और शासन को आदेश की प्रति भेज दी। श्रीवास्तव ने तत्कालीन वनसंरक्षक वर्मा के इस फैसले को CCF INDORE के सामने चुनौती दी। अपील में उन्होंने आरोप लगाया कि वनसंरक्षक ने किराए की गणना गलत तरीके से की है। उन्होंने उस मकान को सहायक वन संरक्षक स्तर का बताया, जिसमें वे रह रहे थे।
CCF ने भी इस अपील को खारिज कर दिया। इसके खिलाफ श्रीवास्तव ने शासन में अपील की और विभाग के तत्कालीन सचिव कैप्टन अनिल खरे ने CCF INDORE के आदेश को निरस्त करते हुए श्रीवास्तव के मकान का किराया 5.50 लाख से कम करके 72 हजार रुपये कर दिया।
तत्कालीन सचिव ने अपने आदेश में मकान को E की बजाय F टाइप और इसमें तत्कालीन वन बल प्रमुख की सहमति होना बताया। जबकि वन बल प्रमुख ने सहमति नहीं दी थी। बताया जाता है कि सचिव के रूप में कैप्टन अनिल खरे ने श्रीवास्तव को किराए में छूट लाभ इसलिए दिया, क्योंकि खरे, श्रीवास्तव के अधीनस्थ रहकर काम कर चुके हैं। मामले की शिकायत EOW से भी हुई है।
किराया कम करने के अधिकार सिर्फ कैबिनेट को
जानकार बताते हैं कि ऐसे मामलों में किराया राशि कम करने का अधिकार सिर्फ कैबिनेट को है और विभाग के तत्कालीन सचिव ने कैबिनेट के अधिकारों को अतिक्रमण करते हुए निर्णय ले लिया। सामान्य प्रशासन विभाग के नियम कहते हैं कि तबादले के बाद कोई भी अधिकारी उसे आवंटित सरकारी मकान में सिर्फ तीन माह रह सकता है। इस अवधि के बाद भी अफसर मकान खाली नहीं करते हैं तो उसने बाजार दर से किराया वसूले जाने का प्रावधान है।
एचएस मोहंता, सचिव, वन विभाग का बयान
ऐसा कुछ हुआ है, मुझे जानकारी नहीं है। लेकिन ऐसे मामलों में जिम्मेदार अफसर से वसूली होती है।