कोरोना वायरस अब भारत आ चुका है। देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना वायरस के मरीज मिले हैं। इसके अलावा देश के कई अन्य इलाकों में भी कोरोना वायरस के मरीजों की खबर आ रही है। यह तो सभी को पता है कि कोरोना वायरस का डॉक्टर के पास कोई इलाज नहीं है। इससे पीड़ित मरीजों की मौत हो जाती है। कोरोना वायरस से बचाव के लिए भारत सरकार की आयुर्वेदिक चिकित्सा विशेषज्ञों ने कई गाइडलाइन जारी की है। इन सबके बीच एक और तरीका है जब आप खुद को किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचा सकते हैं। यह अवसर केवल 1 दिन होलिका दहन के दिवस मिलेगा।
वायरस को खत्म करने और संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए ही होलिका दहन किया जाता है
होलिका दहन शरद ऋतु की समाप्ति के बाद वसंत ऋतु के आगमन के अवसर पर किया जाता है। भारत में यह काल पर्यावरण और मानव शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि करने वाला होता है। इन दिनों में संक्रमण तेजी से फैलता है। यदि इसे रोका नहीं गया तो हजारों लाखों लोग मर सकते हैं या गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं। भारत में हर साल होलिका दहन का वैज्ञानिक कारण यही है (यह केवल एक धार्मिक प्रसंग की याद में मनाया जाने वाला उत्सव नहीं है)। इसके जरिए हम अपने आसपास पनप रहे बैक्टीरिया को खत्म करते हैं और संक्रमण को फैलने से रोकते हैं।
कोरोना वायरस से बचने के लिए किस तरह की होली जलाएं और क्या करें
होली में जलाऊ लकड़ी और गाय के गोबर के कंडो का उपयोग किया जाता है। इसके जरिए कम से कम 145 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान पैदा किया जाता है। जब होलिका की आग धधकने लगती है तब उसकी साथ परिक्रमा की जाती है। आपको बस इतना ही करना है। यह सुनिश्चित करना है कि आपके क्षेत्र की होलिका में जलाऊ लकड़ी और गोबर के कणों के अलावा और कुछ ना हो। इसके बाद जब वह ठीक प्रकार से जलने लगे तब उसकी 7 परिक्रमा करनी है। इसके पीछे साइंटिफिक लॉजिक यह है कि शरीर के भीतर मौजूद बैक्टीरिया 145 डिग्री फारेनहाइट के ताप से मर जाए। और होलिका के आसपास पर्यावरण भी शुद्ध हो जाए।
होलिका दहन के बाद दूसरे दिन सुबह रंग गुलाल खेलने से पहले होली की राख को अपने माथे से लगाया जाता है। यदि 5 तरह की जलाऊ लकड़िया और देसी गाय के गोबर के कंडे मिलाकर होली जलाई गई तो उसकी राख बिल्कुल वैसा ही प्रभाव करती है जैसा कि नागा साधुओं के शरीर पर लिपटी हुई भस्म। यह संक्रमण को दूर करने वाली है।