प्रदेश की कमलनाथ सरकार को गिराने-बचाने का खेल अब अंतिम चरण में है। मामला देश की सर्वाेच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट के पाले में है। गुरुवार को कोई फैसला आ सकता है। इधर राज्य सरकार ने ताबड़तोड़ फैसले लेना शुरू कर दिए हैं। खास लोगों को नियुक्तियों से नवाजा जा रहा है। इससे संकेत मिलने लगे हैं कि बिछी राजनीतिक बिसात में मुख्यमंत्री कमलनाथ कमजोर पड़ रहे हैं। बहुमत का दावा करने के बावजूद उन्होंने मान लिया है कि उनकी सरकार अब चंद दिनों की ही मेहमान है।
कमलनाथ के बयानों से भी हताशा झलकने लगी है
कमलनाथ के बयानों से भी हताशा झलकने लगी है। जैसे उन्होंने कहा कि वे कर्नाटक के मुख्यमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री से बात करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन बात ही नहीं हो पा रही। बागियों को मनाना तो दूर, उनसे संपर्क तक के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं। बागी विधायक बंधक हैं या अपनी मर्जी से बेंगलुरु में रुके हैं, यह खुलासा बाद में होगा लेकिन फिलहाल मैसेज यही है कि बागी विधायक सरकार गिरने से पहले मानने या वापस लौटने के लिए तैयार नहीं हैं।
इस तरह लगी नियुक्तियों की झड़ी
सरकार ने बीते दो-चार दिन में राजनीतिक नियुक्तियों की झड़ी लगाई है। पसंद के अफसरों ट्रांसफर-पोस्टिंग तेजी से हुई है। इसे सरकार के बढ़ते संकट से जोड़कर देखा जा रहा है। सबसे पहले 31 मार्च को रिटायर हो रहे मुख्य सचिव एसआर मोहंती को प्रशासन अकादमी भेजकर एम गोपाल रेड्डी को मुख्य सचिव बना दिया गया और 31 मार्च का इंतजार किए बगैर पदभार ग्रहण करा दिया गया। विवेक जौहरी पुलिस महानिदेशक बना दिए गए और उनका कार्यकाल भी बढ़ा दिया गया। नियुक्तियों में शोभा ओझा, जेपी धनोपिया, गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी, आनंद अहिरवार, आलोक चंसोरिया विभिन्न आयोगों के प्रमुख बन गए। रामू टेकाम और राशिद साहिल सिद्दीकी मप्र लोक सेवा आयोग के सदस्य बनें और महिला आयोग में सदस्यों की नियुक्तियां कर दी गर्इं। ये सभी संवैधानिक पद हैं। युकां नेता मनोज शुक्ला के पिता व कांग्रेस के सहकारी नेता सुभाष शुक्ला जिला सहकारी केंर्द्रीय बैंक के प्रशासक बना दिए गए। संवैधानिक पदों पर बैठाए गए इन लोगों को तब तक नहीं हटाया जा सकता, जब तक वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर लेते। ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी सरकारी वकीलों को हटाकर नए वकील नियुक्त कर दिए गए।
कई निर्णय लिए, कई पर फैसला शीघ्र
कमलनाथ सरकार सिर्फ नियुक्तियां ही नहीं कर रही, अन्य कई महत्वपूर्ण फैसले भी ले रही है, जबकि प्रदेश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इसकी वजह से कई योजनाओं व कार्यक्रमों को बंद करने की योजना थी। वचन पत्र के कई वायदे पूरे नहीं हो पा रहे थे। फिर भी अचानक 10 लाख कर्मचारियों, पेशनर्स को महंगाई भत्ता देने का निर्णय ले लिया गया। मैहर, नागदा एवं चाचौड़ा को नया जिला बनाने पर केबिनेट ने मुहर लगा दी। बुधवार की केबिनेट में और कई फैसले होने वाले थे लेकिन कई मंत्रियों के बेंगलुरु जाने के कारण उन्हें अगली बैठक के लिए टाल दिया गया। बेरोजगार युवाओं को 4 हजार रुपए बेरोजगारी भत्ता, अतिथि विद्वानों, अतिथि शिक्षकों, संविदा कर्मियों के नियमितीकरण के साथ किसानों को गेंहूं खरीदी पर 160 रुपए क्विंटल बोनस देने जैसे निर्णय शीघ्र हो सकते हैं।
एक साल से टूट रहा था सब्र का बांध
कमलनाथ सरकार जो अब कर रही है, इसका इंतजार जनता और कांग्रेस के नेता लंबे समय से कर रहे थे। मंत्रिमंडल विस्तार न हो पाने के कारण विधायकों में असंतोष बढ़ रहा था। राजनीतिक नियुक्तियों में देरी के कारण पार्टी के नेता नाराज थे। लेकिन सरकार सिर्फ गाइडलाइन बनाने में व्यस्त दिख रही थी। यदि सरकार ने पहले इस ओर ध्यान दे लिया होता तो शायद ये हालात निर्मित न होते। मुख्यमंत्री कमलनाथ सहित पूरी पार्टी को मालूम था कि मंत्रिमंडल विस्तार न होने के कारण समर्थन दे रहे निर्दलीय, सपा, बसपा के विधायकों के सब्र का बांध टूट रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक खुद को दरकिनार करने के कारण नाराज हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को जवाबदारी न दिए जाने के कारण उनके समर्थक मंत्री एवं विधायक लामबंद हो रहे हैं। बावजूद इसके सब हाथ पर हाथ धरे बैठे थे। अब जब सब हाथ से छूटता दिख रहा है तब ताबड़तोड़ फैसले हो रहे हैं।
बदल गई भाजपा नेताओं की चाल-ढाल
सरकार को लेकर चल रहे सियासी घमासान के बीच भाजपा नेताओं की चाल-ढाल बदल गई है। उनकी भाषा से लगने लगा है, मानो उनकी सरकार बन गई। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बुधवार को सीहोर में कहा कि वे चाहते तो पहले ही मुख्यमंत्री बन जाते लेकिन उन्हें मालूम था कि कांग्रेस सरकार अपने अंतर्विरोधों के कारण गिरेगी और सवा साल में ही यह नौबत आ गई। भाजपा नेता सरकार गिराने की पटकथा काफी पहले से लिख रहे थे लेकिन समय कब का चुना गया है, यह किसी को नहीं मालूम था। संभवत: योजना के तहत सरकार गिराने एवं राज्यसभा की दूसरी सीट जीतने के उद्देश्य से यह समय चुना गया। बहरहाल, प्रदेश का सियासी नाटक मप्र से लेकर कर्नाटक एवं दिल्ली तक चरम पर है। जनता की चिंता किसी को नहीं है। वह खुद को ठगा महसूस कर रही है। सत्ता की इस लड़ाई में सारे जमीनी काम ठप्प पड़े हैं। विकास अवरूद्ध है।
श्री दिनेश निगम 'त्यागी' भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं इन दिनों हरिभूमि को सेवाएं दे रहे हैं।